पोप : हम आशा में एक साथ यात्रा करें

पोप फ्रांसिस ने चालीसा के अपने संदेश में व्यक्तिगत और सामुदायिक मन परिवर्तन की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए एक साथ चलने और अपने में परिवर्तन लाने का आहृवान किया।
पोप फ्रांसिस ने वर्ष 2025 के चालीसा संदेश में कहा कि हम विश्वास और आशा में, माथे पर राख लगाते हुए पश्चाताप की धर्मविधि का अनुष्ठान करते और चालीसा काल की वार्षिक यात्रा शुरू करते हैं। कलीसिया, हमारी माता और शिक्षिका, हमें अपने हृदयों को ईश्वर से मिलने वाले कृपाओं हेतु खोलने का निमंत्रण देती है, जिससे हम परम आनंद में पास्का पर्व अर्थात मृत्यु पर येसु ख्रीस्त के विजय को माना सकें जिसे संत पौलुस घोषित करते हुए कहते हैं, “मृत्यु का विनाश हुआ, विजय प्राप्त हुई। मृत्यु कहाँ हैं तेरी जीतॽ मृत्यु कहाँ है तेरा दंशॽ वास्तव में, येसु ख्रीस्त जो क्रूस पर चढ़ाये गये और पुनर्जीवित हुए, हमारे विश्वास का केंद्र बिन्दु हैं और पिता के द्वारा हमारे लिए की गई प्रतिज्ञा की आशा, जो प्रिय पुत्र में पहले ही पूरी हुई है, जो हमारे लिए अनंत जीवन हैं।
चालीसा के इस काल में, जैसे कि हम जयंती वर्ष की कृपा में अपने को सम्मिलित करते हैं, पोप फ्राँसिस आशा में एक साथ तीर्थयात्रा करते हुए व्यक्तिगत और सामुदायिक मनफिराव हेतु अपने चिंतन प्रस्तुत करते हैं।
हमारी यात्रा इतिहास के जुड़ी है
सर्वप्रथम तीर्थ के बारे में पोप कहते हैं कि इस जयंती का शीर्षक है आशा के तीर्थायात्री, यह हमें चुनी हुई इस्रराएली प्रजा की लम्बी यात्रा की याद दिलाती है जिसे वे प्रतिज्ञात देश की ओर करते हैं। गुलामी से स्वतंत्रता के इस कठिन मार्ग में हम ईश्वरीय इच्छा और उनके निर्देशन को पाते हैं, जो अपनी प्रजा को प्रेम करते और उनके प्रति सदैव विश्वासी बने रहते हैं। उन भाई-बहनों के बारे में विचार किये बिना, जो हमारे समय में अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों और हिंसा से भागते हुए, अपने लिए और अपने प्रियजनों के लिए एक बेहतर जीवन की चाह रखते हैं, निर्गमन ग्रंथ के दृश्यों पर विचार करना हमारे लिए कठिन लगता है। परिवर्तन का पहला निमंत्रण हमारे लिए इस भांति इस बात की अनुभूति से आती है कि हम सभी इस जीवन में तीर्थयात्री की भांति हैं, हममें से हर कोई रुककर इस पर चिंतन करने को बुलाया जाता है। क्या मैं सचमुच में एक यात्रा कर रहा हूँ या मैं स्थिर हूँ, आगे नहीं बढ़ रहा हूँ, भय और अपनी निराशा भऱी स्थिति के कारण या अपने आरामदायक स्थिति से आगे बढ़ने में आना-कानी करता हूँॽ क्या मैं अपने पापों की स्थितियों और परिस्थितयों को अपने पीछे छोड़ने की चाह रखता हूँ जो मेरे सम्मान को खत्म करते हैंॽ संत पापा कहते हैं कि चालीसा काल में, यदि हम कुछ प्रवासियों या परदेशियों के जीवन पर विचार करते हुए, उनके जीवन के अनुभवों से संग सहानुभूति रखना सीखते हैं और ईश्वर की योजना को जानने की कोशिश करते हैं कि वे हमसे क्या चाहते हैं जिससे हम पिता के निवास की ओर अपनी यात्रा को बेहतर बना सकें, तो यह हमारे लिए एक अच्छा अभ्यास होगा। यह हम सभी यात्रियों के लिए अंतःकरण की जाँच हेतु एक अच्छा संदर्भ प्रस्तुत करता है।
कलीसिया का बुलावा, एक साथ चलना
दूसरे बिन्दु एक साथ यात्रा करने के बारे में पोप फ्रांसिस कहते हैं कि कलीसिया अपने में एक साथ चलने हेतु बुलाई जाती है जो सिनोडलिटी को व्यक्त करती है। ख्रीस्तीय एक दूसरे के अगल-बगल चलने हेतु बुलाये जाते हैं, वे अकेले कभी नहीं चलने को कहे जाते हैं। पवित्र आत्मा हमें अपने में खोये रहने को प्रेरित नहीं करते बल्कि अपने जीवन की सारी बातों को पीछे छोड़ते हुए ईश्वर और अपने भाई-बहनों की ओर चलने को प्रोत्साहित करते हैं। एक साथ चलने का अर्थ हमारे लिए एकता को मजबूत करना है जहाँ हम ईश्वर की संतान स्वरुप एक बनाये गये हैं। इसका अर्थ एक दूसरे की बगल में चलना है, दूसरे को बिना धक्का दिये या कुचले, बिना किसी अडम्बर या ईर्ष्या के, किसी को अपने से अलग किये बिना या पीछे छोड़ते हुए। आइए हम सभी एक दिशा में चलें, एक लक्ष्य की ओर, एक दूसरे के प्रति प्रेम और धैर्य में बने रहते हुए।
आत्म परख की जरुरत
पोप ने कहा कि इस चालीसा में, ईश्वर हमें अपने जीवन की परख करने को कहते हैं- क्या हम, अपने परिवार में, कार्य स्थल में और जहाँ हम समय व्यतीत करते हैं, एक दूसरे के संग चलने के योग्य होते हैं, उन्हें सुनते, अपने में खोये रहने और केवल अपनी जरुरतों तक ही सीमित रहने के प्रलोभन से बाहर निकलते हैं। हम धर्माध्यक्षगण पुरोहित, समर्पित लोग और लोकधर्मी ईश्वर की उपस्थिति में अपने से पूछें कि क्या हम ईश्वर के राज्य की सेवा में, एक दूसरे के संग सहयोग करते हैं। क्या हम अपने ठोस कार्य के माध्यम दूसरों के स्वागत हेतु खुला रखते हैं। हम दूसरों को समुदाय का अंग होने की अनुभूति प्रदान करते या हम उन्हें अपने से दूर करते हैं। इस भांति यह हमारे लिए अपने में परिवर्तन लाने का बुलावा है, सिनोडलिटी हेतु एक बुलाहट।
पुनरूत्थान हमारी आशा का आधार
आशा में एक साथ चलने पर प्रकाश डालते हुए पोप फ्रांसिस कहते हैं कि हमसे एक प्रतिज्ञा की गई है। आशा हमें कभी निराश नहीं करती है,यह हमारे लिए जयंती वर्ष का मूलभूत संदेश है, यह हमारी चालीसा यात्रा का केन्द्र बिन्दु हो जो हमें पास्का विजयी की ओर अग्रसर करता है। पोप बेनेदिक्त 16वें हमें अपने विश्व प्रेरितिक पत्र “स्पे सालभी” में बतलाते हैं, मानव को शर्तहीन प्रेम की जरुरत है। उसे अपने में यह निश्चितिता की आवश्यकता है, जो कहती है,“न ही मृत्यु, न जीवन, न दूतगण, न ही सिद्धांत, न वर्तामन की चीजें, न ही भविष्य में होने वाली घटनाएं, न ही शक्तियाँ, न ऊचाईयाँ, न ही गहराईयाँ और न ही सृष्टि की कोई भी चीज, हमें येसु ख्रीस्त- ईश्वर के प्रेम से कभी अलग कर सकती है।