पोप : सिमियोन और अन्ना, आशा के तीर्थयात्री
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पोप फाँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में सिमियोन और अन्ना के जीवन पर चिंतन प्रस्तुत किया जो विश्वास और आशा तीर्थयात्री हैं।
पोप फ्रांसिस रोम के जेमेल्ली अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहते हैं। अस्पताल में रहने के बावजूद उन्होंने आमदर्शन समारोह की अपनी धर्मशिक्षा माला को प्रकाशित करते हुए धर्मग्रंथ के बुजुर्गों- सिमियोन और अन्ना पर चिंतन किया।
पोप ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला के अपने संदेश में लिखा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, हम येसु ख्रीस्त, हमारी आशा की सुन्दरता को उनके मंदिर में समर्पित किये जाने के रहस्य पर चिंतन करते हुए करेंगे।
ईश प्रज्ञा की निष्ठा
सुसमाचार लेखक संत लूकस, येसु की बाल्यावस्था का जिक्र करते हुए, संहिता में ईश्वर के नियमों के अनुपालन में मरियम और योसेफ की अक्षर-सा आज्ञाकारिता को प्रस्तुत करते हैं। वास्तव में, इस्रराएल में यह जरूरी नहीं था कि बच्चे को मंदिर में समर्पित किया जाये, लेकिन वे जो ईश्वर के वचनों के अनुरूप अपने जीवन को संचालित करते थे और उसकी पूर्णत का अनुभव अपने में करते, तो वे इसे एक महत्वपूर्ण बात समझते थे। इसे हम नबी सम्मुएल की माता के संबंध में देख सकते हैं जो अपने में निसंतान थी, ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसे पुत्र रत्न प्राप्त हुआ, वह उसे ईश मंदिर में सदा के लिए ईश्वर को समर्पित करने हेतु ले जाती है।
संत लूकस इस भांति येसु के प्रथम पूजन कार्य की चर्चा करते हैं जो येरूसालेम शहर में होता है, जो उनके पूरे प्रेरितिक कार्य का केन्द्र-बिन्दु है, अतः वे अपने कार्यों के निष्पादन हेतु वहाँ जाने का निर्णय करते हैं।
मरियम और योसेफ की उदारता
मरियम और योसेफ येसु को अपने परिवार, लोगों और ईश्वर तक सीमित नहीं रखते हैं। वे उनकी देख-रेख करते हैं उन्हें विश्वास तथा पूजा-अर्चना का पाठ पढ़ाते और आध्यात्मिकता में बढ़ने हेतु मदद करते हैं। वे स्वयं अपने को एक बुलाहट की समझ में अपने को विकसित होता पाते हैं – यह दर्द के बिना नहीं होता है- जो उन्हें अपने से परे ले चलता है।
ईश मंदिर
पोप फ्रांसिस अपनी धर्मशिक्षा माला में कहते हैं कि ईश मंदिर, “प्रार्थना का एक घर है”, जहाँ हम पवित्र आत्मा को साँसों स्वरुप पाते हैं जो एक बुजुर्ग व्यक्ति, सिमियोन के हृदय में अपनी बातों को व्यक्त करते हैं, जो विश्वासी भक्तों के समुदाय आशा और प्रतीक्षा के एक अंग हैं, वे नबियों के द्वारा इस्राएल को किए गए ईश्वरीय प्रतिज्ञा को पूरा करने की इच्छा को अपने में वहन करते हैं। सिमियोन मंदिर में ईश्वर के अभियंजित की उपस्थिति का एहसास करते हैं, वे अपने लोगों में मध्य छाये अंधकार के बीच में एक ज्योति को चमकता हुआ पाते हैं। वे उस बालक से मिलने जाते हैं जो हमारे लिए जन्म लिया है, जिसके बारे में इसायस नबी ने भविष्यवाणी की, वह एक पुत्र है जो हमारे लिए “दिया गया है” वह “शांति का राजकुमार” है। सिमियोन बालक को गले गाते हैं जो छोटे और निसहाय उनके कंधों में आराम करते हैं। लेकिन वास्तव में, वे उनमें अपनी सांत्वना और पूर्णतः का अनुभव करते हैं। वे इसे हृदय के उद्गार स्वरुप एक भजन में व्यक्त करते हैं जो कलीसिया के लिए दिन के अंत की प्रार्थना बन गई है- “प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शांति के साथ विदा कर, क्योंकि मेरी आंखों ने उस मुक्ति को देखा है, जिसे तूने सब राष्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है। यह गैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्रराएल का गौरव।”
विश्वास के साक्षी
पोप कहते हैं कि सिमियोन उन लोगों की खुशी को व्यक्त करते हैं जिन्होंने उन्हें देखा है, उन्हें पहचान है और जिन्हें वे सारी प्रज्ञा के लिए उद्धारकर्ता स्वरूप साझा करते हैं। सिमियोन विश्वास के एक साक्षी हैं जो इस उपहार को दूसरों को के संग बांटते हैं। वे उस आशा के साक्षी हैं जो निराश नहीं करती है, वे ईश्वर के साक्षी हैं, जो मनुष्य के हृदय को आनन्द और शांति से भर देता है। इस आध्यात्मिक सांत्वना से भरे, बुजुर्ग सिमियोन मृत्यु को अंत के रूप में नहीं, बल्कि पूर्णता, परिपूर्णता के रूप में देखते हैं, वे एक “बहन” की तरह उसका इंतज़ार करते हैं जो उसे नष्ट नहीं करती बल्कि उसे उस सच्चे जीवन से परिचित कराती है जिसका उसने पहले ही स्वाद चखा है और जिसमें वह विश्वास करता है।
अन्ना का साक्ष्य
उस दिन, केवल सिमियोन नहीं होते जो शरीरधारी बालक में मुक्ति के दर्शन करते हैं। यही बात अन्ना के साथ भी होती है, एक धर्मी नारी जिसकी आयु अस्सी साल से अधिक हो गई है, जो एक विधवा है जो पूरे समय मंदिर में सेवा और प्रार्थना के कार्यों में समर्पित है। वास्तव में, बालक को देख कर अन्ना इस्रराएल के ईश्वर की स्तुति करती है जिन्होंने उस छोटे बच्चे में अपने लोगों को बचाया है, वह उनके बारे में बड़ी उदारता से दूसरों को बतलाती है। दो बुजुर्गों के द्वारा मुक्ति का गान इस भांति हम पूरे विश्व और लोगों के लिए जयंती की घोषणा करता है। येरूसालेम के मंदिर में हम मुक्ति की आशा को पुनः प्रज्वलित पाते हैं क्योंकि ख्रीस्त हमारी मुक्ति की आशा वहाँ प्रवेश करते हैं।
प्रिय भाइयो और बहनों, हम सिमियोन औऱ अन्ना का अनुसारण करें जो “आशा के तीर्थयात्री” हैं, जिनमें हम स्पष्ट आँखों से देखने की क्षमता को पाते हैं, जो छोटी चीजों में ईश्वर की उपस्थिति को देखने के योग्य होते हैं। वे जानते हैं कि ईश्वर का स्वागत किस रुप में किया जाये जो हमारे भाई-बहनों के हृदयों में खुशी और आशा को पुनः प्रज्वलित करने को आते हैं।