पोप : लोभ हृदय की एक बीमारी है
पोप फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन माला में लोभ की बुराई पर चर्चा करते हुए उसे हृदय की बीमारी कहा।
पोप फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर पोप पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एव बहनों सुप्रभात।
हम गुणों और अवगुणों पर अपनी धर्मशिक्षा माला में आगे बढ़ते हुए आज लोभ के बारे में जिक्र करेंगे जो मनुष्य को धन के प्रति असक्त बना देता और उदरता के मार्ग में रोड़ा बनता है।
यह अकूत धन संपत्ति से संबंधित पाप मात्र नहीं है बल्कि यह दूसरों की सीमा लंघने की एक बुराई भी है, इसका संबंध बैंक बैलेन्स से नहीं है। यह पर्स, थैली की नहीं बल्कि हृदय की एक बीमारी है।
मानव में असक्ति एक विकार
मरूभूमि के आचार्यों ने इसका विश्लेषण करते हुए कहा कि यह कैसे मठवासी को भी अपना शिकार बना सकता है, जो बहुतायत में अपनी पैतृक धन-संपत्ति का परित्याग करने के बाद भी, अपने कक्ष के अकेलेपन जीवन में भी कुछ थोड़े मूल्यवान चीजें के प्रति अपने को असक्त पाते हैं- वे उन्हें किसी को नहीं देते, किसी से साझा करना नहीं चाहते और यहाँ तक कि उन्हें छोड़ने की इच्छा तक नहीं रखते हैं। यह छोटी चीजें के प्रति असक्ति है। वे चीजें उनके लिए एक तरह से पूजित वस्तुएं बन जाती हैं जिसे वे अपने से दूर करना नहीं चाहते हैं। यह उनमें एक तरह से बच्चों के समान प्रतिगमन की स्थिति को व्यक्त करता है जो अपने खिलौने से चिपक कर,“यह मेरा है, यह मेरा है” कहते हैं। यह असक्ति हमारी स्वतंत्रता को खत्म कर देती है। ऐसी स्थिति में हम सच्चाई के संग एक विकारपूर्ण संबंध को पाते हैं जो वस्तुओं की बलपूर्वक जमाखोरी और मनोविकारी संग्रहण का कारण बनती है।
पोप फ्रांसिस ने कहा कि इस बीमारी के उचार हेतु मठवासियों ने - मृत्यु पर चिंतन को एक कठोर सुझाव स्वरूप प्रस्तुत किया है, जो अपने में एक अति प्रभावकारी है। एक व्यक्ति इस दुनिया में चाहे कितनी ही चीजें क्यों न जमा कर ले, एक बात तो सर्वविदित है कि वे हमारे कफन में नहीं रखे जायेंगे। यह हमारे लिए इस बुराई की अर्थहीनता को व्यक्त करता है। चीजों के संग हमारा संबंध जिसे हम अपने में संबंध स्थापित करते हैं, वे हमारे लिए सिर्फ दृश्यमान हैं, क्योंकि हम दुनिया के मालिक नहीं हैं। यह पृथ्वी जिसे हम प्रेम करते हैं वास्तव में, हमारा नहीं है, हम यहाँ एक अपरिचित और तीर्थयात्रियों की तरह भ्रमण करते हैं।
सुरक्षा की चाह
ये सरल विचार हमें लालच की मूर्खता को समझने में मदद करते हैं जिसका संबंध हमारे आंतरिक रुप से है। यह मृत्यु के भय को अपने से दूर करना है। यह हममें सुरक्षाओं की खोज करती है जिसे जब हम अपने हाथों में पकड़ने की कोशिश करते यह अपने में छूट जाती है। संत पापा ने कहा कि हम उस मूर्ख व्यक्ति के दृष्टांत की याद करें जो फसलों के प्रचुर उत्पादन में अपने भंडार को तोड़कर बड़ा करने का विचार करता है जिससे वह अपनी सारी फसल बखार में जमा कर सके। उस व्यक्ति ने सारी चीजों का हिसाब किया, भविष्य के लिए योजना बनायी। वह यद्यपि उसने जीवन में निश्चित परिवर्तन, मृत्यु पर विचार नहीं किया। सुसमाचार हमें कहता है, “मूर्ख, इसी रात तुम्हारे प्राण ले लिये जायेंगे, और तुमने जो संग्रहित किया वह किसका होगाॽ”
पोप ने कहा कि दूसरी जगह यह सेवा हमें चोरों के द्वारा प्राप्त होती है। सुसमाचार में हम इसे कई बार पाते हैं यद्यपि उनका कार्य हमारे लिए निन्दनीय लगता है, यह एक हितकारी चेतावनी बन सकती है। येसु इस भांति अपने पर्वत प्रवचन में कहते हैं, “पृथ्वी पर अपने लिए पूँजी जमा नहीं करो, जहाँ मोरचा लगता है, कीड़े खाते हैं, और चोर सेंध लगा कर चुराते हैं। स्वर्ग में अपने लिए पूँजी जमा करो, जहाँ न तो मोरचा लगता है, न कीड़े खाते हैं और न चोर सेंध लगा कर चुराते हैं।” पुनः मरूभूमि के आचार्य हमें एक कहानी के माध्यम बतलाते हैं कि एक चोर मठवासी के कक्ष से उसकी चीजें चुरा लेता है। जब वह उठता है तो अपने में घटित हुई घटना से विचलित नहीं होता, लेकिन वह उस चोर की खोज करता और जब उसे पाता तो चोरी की गई चीजों को मांगने के बदले वह उसे अन्य बची हुई दूसरी चीजें भी दे देता है यह कहते हुए, “तुम इन्हें लेना भूल गये।”