पोप लियो 14वें : एक-दूसरे को भाई मानना सभी तरह के कट्टरपंथ को तोड़ना है
वाटिकन पब्लिशिंग हाउस ने पोप लियो 14वें की नई किताब प्रकाशित की, जिसका शीर्षक है “द पावर ऑफ द गॉस्पल (सुसमाचार की शक्ति) : क्रिश्चियन फेथ इन 10 वर्ड्स (ख्रीस्तीय विश्वास 10 शब्दों में)।” लोरेंत्सो फाज़िनी द्वारा एडिट की गई यह किताब पोप के हस्ताक्षेप और भाषणों का संग्रह है, साथ ही एक प्रकाशित भूमिका भी है, जिसके हिन्दी अनुवाद को नीचे प्रस्तुत किया जा रहा हैं।
दस शब्द। दस शब्द ज्यादा नहीं हैं, लेकिन वे ख्रीस्तीय जीवन की समृद्धि पर बातचीत शुरू कर सकते हैं। इसलिए, इसे शुरू करने के लिए, मैं इन 10 शब्दों में से तीन चुनना चाहूँगा, ताकि जो लोग ये पेज पढ़ेंगे उनके साथ एक काल्पनिक संवाद की शुरुआत हो सके: ख्रीस्त, सहभागिता, शांति। पहली नजर में, ऐसा लग सकता है कि ये शब्द एक-दूसरे से जुड़े नहीं हैं, और एक साथ नहीं चलते। लेकिन ऐसा नहीं है। इन्हें एक ऐसे रिश्ते में बुना जा सकता है जिसे मैं आपके साथ और गहरा करना चाहूँगा, प्यारे पाठको, ताकि हम मिलकर इसकी नई बात और क्षमता को समझ सकें।
सबसे पहले, ख्रीस्त को प्राथमिकता। हर बपतिस्मा प्राप्त इंसान को उनसे मिलने का उपहार मिला है, और वह उनकी रोशनी और कृपा से छुआ गया है। विश्वास यही है: किसी अलौकिक ईश्वर तक पहुँचने की बहुत बड़ी कोशिश नहीं, बल्कि, येसु का हमारे जीवन में स्वागत करना, यह जानना कि ईश्वर का चेहरा हमारे दिलों से दूर नहीं है। प्रभु न तो कोई जादूगर हैं और न ही कोई अजनबी। वे येसु में हमारे करीब आए, उस आदमी में जो बेथलेहम में पैदा हुआ और जो यरूशलेम में मरा, फिर जी उठा और आज जिंदा है। आज! और ख्रीस्तीय धर्म का रहस्य यह है कि वही ईश्वर हमारे साथ एक होना चाहते हैं, हमारे पास रहना चाहते हैं, हमारा दोस्त बनना चाहते हैं। इस तरह, हम उनके समान बन जाते हैं।
संत अगुस्टीन लिखते हैं : “भाइयो और बहनो, क्या आप समझते हैं कि हम पर ईश्वर की कृपा है; क्या आप इसे जान सकते हैं? हैरानी से भर जाइये, खुश होइये और आनंदित हो जाइये; हम मसीह बन गए हैं। क्योंकि अगर वे सिर है, तो हम अन्य अंग हैं: वे और हम मिलकर एक पूरा इंसान बनते हैं”। (1) ख्रीस्तीय धर्म, येसु की इंसानियत के अनुभव के जरिए ईश्वरीय जीवन में हिस्सा लेना है। उनमें, ईश्वर अब कोई विचार या पहेली नहीं हैं, बल्कि एक ऐसे इंसान हैं जो हमारे करीब हैं। संत अगुस्टीन ने यह सब अपने मन-परिवर्तन के दौरान अनुभव किया, मसीह के साथ दोस्ती की ताकत को सीधे तौर पर महसूस किया, जिसने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया: “और जब मैं आपको ढूंढ रहा था तो मैं कहाँ था? और आप मुझसे पहले थे, लेकिन मैं खुद से भी दूर चला गया था; मैंने न तो खुद को पाया, आपको तो बिल्कुल नहीं”! (2)
इसके अलावा, ख्रीस्त समन्वय की शुरुआत हैं। उनकी पूरी जिदगी में एक पुल बनने की इच्छा झलकती हैं: मानव और पिता के बीच एक पुल, जिन लोगों से वे मिले उनके बीच एक पुल, उनके और पिछड़े लोगों के बीच एक पुल। कलीसिया ख्रीस्त का एक समन्वय है जो पूरे इतिहास में व्याप्त है, एक ऐसा समुदाय जो एकता में विविधता को जीता है।
अगुस्टीन एक बगीचे की छवि का इस्तेमाल विश्वासियों के एक ऐसे समुदाय की सुंदरता दिखाने के लिए करते हैं जो अपनी विविधता को एक बहुलता बनाता है, एकता के लिए कोशिश करता है और जो भ्रम की गड़बड़ी में नहीं पड़ता: “भाइयो और बहनो, प्रभु के उस बगीचे में, हाँ, इसमें निश्चित रूप से न केवल शहीदों के गुलाब शामिल हैं, बल्कि कुँवारियों की लिली, और शादीशुदा लोगों की आइवी लता, और विधवाओं के बैंगनी फूल भी शामिल हैं। प्यारे लोगों, ऐसा कोई भी इंसान नहीं है जिसे अपने बुलावे से निराश होने की जरूरत है; मसीह ने सभी के लिए दुःख उठाया। उनके बारे में यह बहुत सच लिखा गया है: ‘जो चाहते हैं कि सभी लोग बच जाएँ, और सच्चाई को स्वीकार करें।’” (1 तिम. 2:4)(3)
यह विविधता एक मसीह में एकता बन जाता है। येसु हमें हमारे अपने व्यक्तित्व, हमारी संस्कृति और भौगोलिक मूल, हमारी भाषा और हमारे इतिहास के बावजूद एक करते हैं। वे अपने दोस्तों के बीच जो एकता बनाते हैं, वह अजीब तरह से फलदायक है और सभी से बात करती है: “और यह उन सभी से है जो भाइयों के बीच मेल-जोल बनाए रखते हैं और अपने पड़ोसियों से प्यार करते हैं, जिनसे कलीसिया बनती है”। (4)
आज की दुनिया में, जो कई युद्धों से चिन्हित है, ख्रीस्तीय इस मेल-मिलाप, भाईचारे और सामीप्य के गवाह बन सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए। यह सिर्फ हमारी ताकत पर निर्भर नहीं करता, बल्कि ऊपर से मिला एक उपहार है, उस ईश्वर का तोहफा जिसने वादा किया था कि उनकी आत्मा हमेशा हमारे साथ रहेगी: “इसलिए अगर हम कलीसिया से प्यार करते हैं तो हमारे पास पवित्र आत्मा है”। (5) कलीसिया, जो अलग-अलग लोगों का घर है, इस बात की निशानी हो सकती है कि हम हमेशा के झगड़े में जीने के लिए मजबूर नहीं हैं और एक मेल-मिलाप वाली, शांतिपूर्ण एवं मेल-जोलवाली इंसानियत के सपने को पूरा कर सकते हैं। यह एक ऐसा सपना है जिसकी नींव हैं: येसु, उसकी एकता के लिए पिता से प्रार्थना। और अगर येसु ने पिता से प्रार्थना की, तो हमें उनसे और भी ज्यादा प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि वे हमें शांतिवाली दुनिया का तोहफा दें। और अंत में, ख्रीस्त एवं समन्वय से शांति प्राप्त होगी, जो ताकत के गलत इस्तेमाल या हिंसा का नतीजा नहीं है, और न ही नफरत या बदले से जुड़ी है।
ये मसीह ही हैं जो अपने दुःखभोग के घावों के साथ अपने शिष्यों से मिलते हैं और कहते हैं, “तुम्हें शांति मिले।” संतों ने देखा है कि प्यार युद्ध को हरा सकता है, सिर्फ अच्छाई ही धोखे को खत्म कर सकती है और अहिंसा सत्ता के गलत इस्तेमाल को खत्म कर सकती है।