पोप लियोः करूणा में जीवन बदलने - एकता निर्माण की शक्ति है

पोप लियो 14वें ने गरीबों की सेवा हेतु स्थापित ओपेरा सन फ्रांसिस्को के सदस्यों से मुलाकात की और उन्हें करूणा में सेवा, स्वागत का जीवनयापना करते हुए मानवीय गरिमा को बढ़ावा देने के द्वारा समाज में ईश्वर के प्रेम का साक्ष्य देने का संदेश दिया।
पोप लियो ने सोमवार को गरीबों की सेवा हेतु गठिन ओपेरा सैन फ्रांसिस्को के सदस्यों का स्वागत करते हुए अपने जीवन को मानवीय सेवा में समर्पित करने और ईश्वरीय प्रेम के साक्षी बनने का आहृवान किया।
उन्होंने मिलान स्थित इस संस्था के एक प्रतिनिधिमंडल को संबोधित किया जो लगभग सात दशकों से हर साल 30,000 से अधिक लोगों को मनावीय सेवा, भोजन, कपड़े, चिकित्सा, सेवा और सहायता प्रदान करते आ रहे हैं।
पोप ने प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों से कहा, " मैं आपसे मिलकर बहुत खुश हूँ। लगभग सत्तर वर्षों से आपकी संस्था ने 'ज़रूरतमंद लोगों की सहायता और सेवा के कार्य जारी रखते हुए ख्रीस्तीय परंपरा, विशेष रूप से फ्रांसिस्कन परंपरा, और कलीसिया की शिक्षा और धर्मसिद्धांत के अनुरूप व्यक्ति के पूर्ण मानवीय विकास को बढ़ावा देने' की प्रतिबद्धता को बरकरार रखा है।"
कापुचिन भिक्षु फ्रा सेसिलियो मारिया कॉर्टिनोविस के हृदय से उत्पन्न हुए इस पहल की याद करते हुए, संत पापा लियो ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार “वह सुन्दर साहसिक कार्य जिसके आप आज साक्षी और नायक हैं” विश्वास और उदारता से अभिव्यक्त हुआ।
करूणा की तीन आयाम
अपने संबोधन में पोप ने ओपेरा संत फ्रांसिसको के तीन आयामों सेवा, आतिथ्य और प्रोत्साहन पर बल दिया।
सेवा
“सेवा का अर्थ है, उन्होंने कहा, दूसरों की ज़रूरतों के लिए मौजूद रहना। वर्षों से आपकी विविध और असंख्य सेवा को देखना अपने में कितना अद्भुत है जो आप की ओर आते हैं... हर साल तीस हज़ार से ज़्यादा लोगों को विभिन्न तरीकों से सहायता प्रदान करना अपने में अनोखा है।”
स्वागत
उन्होंने आगे कहा कि सहायता के साथ-साथ स्वागत करना भी हमारे लिए ज़रूरी है: “दूसरों के लिए अपने जीवन में, हृदय में जगह बनाना, समय देना, उनकी बातों को सुनना, समर्थन करना और प्रार्थना करना स्वागत के भाव को अभिव्यक्त करते हैं। यह आँखों में देखने, हाथ मिलाने, झुकने कर मिलने के भाव की अव्यक्ति है, जो संत पापा फ्रांसिस के हृदय के भाव थे जो उन्हें अति प्रिय थे।
प्रोत्साहन
अंत में, पोप ने प्रोत्साहन के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि यह लोगों को स्वतंत्रता और गरिमा में बढ़ने में मदद करना है- “हम इसमें उपहार की निःस्वार्थता और व्यक्तियों की गरिमा के प्रति सम्मान की भावना को पाते हैं, जहाँ व्यक्ति सिर्फ लोगों की भलाई की चाह रखता है...बदले में बिना कुछ पाने की आशा किए और न ही कोई शर्त लगाए। ठीक वैसे ही जैसे ईश्वर हममें से प्रत्येक के साथ करते हैं, वे एक रास्ता दिखाते हैं, वे हमें उस मार्ग में बढ़ने हेतु सभी तरह से मदद करते हैं, लेकिन फिर भी वे हमें स्वतंत्र छोड़ देते हैं।"
उन्होंने संत जॉन पॉल द्वितीय के शब्दों को याद करते हुए कहा, “यह प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा और रचनात्मकता को प्रभावी ढंग से विकसित करने से संबंधित है, जहाँ हम व्यक्ति को अपनी बुलाहट में और इस प्रकार उसमें निहित ईश्वर के आह्वान का जवाब देने की क्षमता को पाते हैं।”
कलीसिया और समाज की प्ररिताई
पोप लियो ने कहा कि यह वह कार्य है जिसे कलीसिया आपको सौंपती है, उन लोगों की भलाई हेतु जो आपके और समाज के द्वारा प्रबंधित संरचनाओं के आस-पास इकट्ठा होते हैं।” अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान करते हुए, संत पापा ने प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को उनके कार्य और साथ-साथ चलते हुए साक्ष्य देने के लिए धन्यवाद दिया।