पोप : येसु का मार्ग, हृदय की ओर लौटना
पोप फ्रांसिस ने 07 दिसम्बर, संत पेत्रुस के महागिरजाघर में कार्डिनलों की नियुक्ति धर्मविधि की अगुवाई करते हुए 21 नये कार्डिनलों को कार्डिनलमंडल में सम्मिलित किया।
पोप ने इस समारोह के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि हम येसु के येरुसालेम प्रवेश करने पर थोड़ा चिंतन करें। यद्यपि उनका येरुसालेम जाना अपनी महिमा हेतु नहीं था। बल्कि यह ईश्वर की महिमा के लिए हुआ, जो उनके लिए मृत्यु के गर्त में उतरने का कारण बनता है। पवित्र शहर में वे जीवन देने हेतु क्रूस पर मार डाले जाते हैं। वहीं याकूब और योहन दूसरी ओर अपने स्वामी के प्रति एक अगल रूप को देखते और अपने लिए सम्मानजनक दो स्थानों की मांग करते हैं, “अपनी महिमा में आप हमें एक को दाहिनी और दूसरे को बांयी ओर बैठने की अनुमति दें।”
येसु का मार्ग
पोप ने कहा कि सुसमाचार हमारे लिए इस नाटकीय विरोधाभाव पर प्रकाश डालता है, येसु अपने लिए, एक ऊपर कठिन मार्ग का चुनाव करते हैं जो उन्हें कलवारी की ओर ले जायेगा, तो शिष्य अपने लिए पर्वत से नीचे एक समतल मसीह की महिमामय मार्ग के बारे में विचार करते हैं। हम इस विषय से भ्रमित न हों बल्कि नम्रता में इस तथ्य को स्वीकार करें कि मानव हृदय के संग ऐसी असंगतता होती है।
जीवन का प्रलोभन
हमारे संग भी ऐसा ही हो सकता है, हमारे हृदय भटक सकते हैं, हमें अपने में चमकदार चीजों से, शक्ति की चाह से मोहित हो सकते हैं। यही कारण है कि हमें अपने अंदर देखने की जरुरत है, हमें ईश्वर के सम्मुख नम्रता से खड़े होते हुए अपने को ईमानदारी से देखने की जरुरत है, जहाँ हम अपने से यह पूछें कि हमारा हृदय किस ओर जा रहा है? आज मेरा हृदय किस ओर अग्रसर है? शायद मैंने गलत राह का चुनाव किया है? संत अगुस्टीन इसके बारे में हमें सचेत कराते हैं- “क्यों खाली मार्ग का अनुसरण करना जो हमें गलत राह में भटका देता है। हम ईश्वर की ओर लौट आयें। वे हमारी प्रतीक्षा करते हैं। सर्वप्रथम हम अपने हृदय की ओर लौटें क्योंकि वहाँ हम ईश्वर के रुप को पाते हैं। ख्रीस्त मानव के अंतःस्थल में निवास करते हैं, और हृदय की उस गहराई में हम ईश्वर के रूप को नवीन बनाते हैं।”
हृदय की ओर लौटना
पोप ने कहा कि ईश्वर के मार्ग में लौटना इस भांति हमारे लिए अपने हृदय की ओर लौटना है। आज इस बात को, प्रिय भाइयो मैं विशेष रुप से आप लोगों के लिए कहना चाहूँगा जो नये कार्डिनलों के रूप में स्थापित किये जा रहे हैं। आपके हर कदम येसु के मार्ग में चलने का प्रयास हो। इसका अर्थ क्या है?
येसु के मार्ग में चलने का अर्थ सबसे पहले उनकी ओर लौटना और उन्हें सारी चीजों का क्रेन्द-विन्दु बनाना है। कभी-कभी हमारे आध्यात्मिक और प्रेरितिक जीवन के कार्यो में हम आकस्मिक चीज पर ध्यान देते और आवश्यक चीज को भूल जाते हैं। बहुत बार अनावश्यक चीजें हमारे लिए जरूरी बातों का स्थान ले लेती हैं, वाह्य दिखावा जरूरी चीजों को ढ़क देती हैं। हम हृदय में उतरे बिना उन कार्यों में गोते लगते हैं जिन्हें हम महत्वपूर्ण समझते हैं। इसके बदले हमें चाहिए कि हम उन चीजों के क्रेन्द में आयें, और छिछली बातों का परित्याग कर, येसु को अपने लिए धारण करें। “कार्डिनल” शब्द मूलरूप से हमें इस बात की याद दिलाती है क्योंकि यह दरवाजे को सुरक्षित करने, सहारा देने और मजबूती प्रदान करने हेतु लगाए गए कब्जे को संदर्भित करता है। संत पापा ने कहा कि प्रिय भाइयो येसु हमारे सच्चे सहायक हैं, हमारी सेवा “गुरूत्व का क्रेन्द” वह महत्वपूर्ण स्थल है जो हमारे जीवन को दिशा प्रदान करता है।
येसु के मार्ग में चलने का अर्थ
येसु के मार्ग में चलने का अर्थ मिलन हेतु एक जुनून उत्पन्न करना भी है। येसु कभी अकेले नहीं चले, पिता के संग उनका संबंध उन्हें दूसरों की जीवन स्थिति और दुःखों से अलग नहीं करता जिसे वे दुनिया में देखते हैं। इसके विपरीत, वे उन घावों की चंगाई, हृदयों के बोझ को दूर करने, पापों के दाग को धोने और गुलामी के बांधनों को तोड़ने आये। अपने मार्ग में येसु की मुलाकात उन चेहरों से हुई जो दुःख से ग्रस्ति थे और जिन्होंने अपनी आशा खो दी थी, उन्होंने गिरे हुए को उठाया और बीमारों को चंगा किया। अपने मार्ग में चलते हुए उन्होंने विलाप करने वालों के आंसू पोंछे, टूटे हृदयों को चंगाई प्रदान की और घावों की मलहम पट्टी की।