पोप पियो सप्तम की द्विशताब्दी पर पोप का सन्देश
पोप फ्राँसिस ने इटली के चेसेना- सारसिना धर्मप्रान्त के धर्माध्यक्ष के नाम एक सन्देश प्रकाशित कर प्रभु सेवक पोप पियो सप्तम की दूसरी शताब्दी पर धर्मप्रान्त के प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित की हैं।
पोप पियो सप्तम काथलिक कलीसिया के 251 वें परमाध्यक्ष थे, जो सन् 1800 से 1823 तक सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु पद पर रहे थे।
सन्देश में पोप फ्राँसिस ने लिखाः प्रभु सेवक पोप पियो सप्तम के निधन की द्विशताब्दी की महत्वपूर्ण वर्षगांठ मेरे लिए आपके प्रति, प्रिय भाई, और सम्पूर्ण चेसेना-सारसिना धर्मप्रान्त के पूरे नागर और कलीसियाई समुदाय के प्रति हार्दिक बधाई देने का एक सुअवसर है, जो सार्वभौमिक काथलिक कलीसिया के एक शानदार पुत्र, साहसी पुरोहित और कलीसिया के विचारशील रक्षक की स्मृति को तरोताज़ा करती है। इस द्विशताब्दी की पहलों में भाग लेनेवाले सभी विश्वासियों के प्रति मैं आभार व्यक्त करता तथा अपनी प्रार्थनाओं में आप सबके समीप रहने का आश्वासन देता हूँ।
पोप ने लिखा, अपने इस श्रद्धेय पूर्वज के जीवन को दोबारा पढ़ने पर हम उनके गहन विश्वास, नम्रता, मानवता और दया के व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं। वे लिबेर्ता एक्लेसिया (कलीसिया की स्वतंत्रता) को रोकने वाले लोगों के सामने अपनी क्षमता और विवेक के साथ दृढ़तापूर्वक खड़े रहे तथा सुसमाचारी स्पष्टवादिता के साथ 23 वर्षों तक काथलिक कलीसिया के शीर्ष रूप में उन्होंने एक अपार आध्यात्मिक विरासत हमारे लिये छोड़ी जिसके लिये हमारे मन में कृतज्ञता और प्रशंसा की भावनाएं उभरती हैं।
पोप ने कहा कि उस शताब्दी में राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के बावजूद, उन्होंने खुद को ईश्वर की इच्छा के प्रति अर्पित कर दिया, ईश्वर पर भरोसा रखते हुए, अनुकरणीय विनम्रता के साथ उन्होंने निर्वासन के अपमान को स्वीकार किया और कलीसिया की भलाई के लिए प्रभु को अपना सब कुछ अर्पित कर दिया।
पोप पियो सप्तम कियारामोंटी एक दूरदर्शी बुद्धिवाले के व्यक्ति थे, जिन्होंने पहले चेसेना के बेनेडिक्टिन मठ में और उसके बाद रोम में सान पाओलो फुओरी ले मुरा में खुद को स्थापित किया और इस प्रकार ईश शास्त्र विज्ञान की अकादमिक दुनिया को महान योगदान दिया।
पोप फ्रांसिस ने लिखा, निश्चित रूप से, यदि हम उस ऐतिहासिक युग पर विचार करें जिसमें पोप पियो सप्तम रहते थे, तो हम उस महान प्रज्ञा पर ध्यान दिए बिना नहीं रह सकते जिसकी वजह से वे उन लोगों के बीच "शांति के राजदूत" बनने में सक्षम बने जो अस्थायी शक्ति का प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने लिखाः एक विवादास्पद राजनैतिक परिदृश्य का सामना करते हुए, जिसने सालुस आनिमारुम (आत्माओं की मुक्ति) को चुनौती दी थी, उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति की शांति के साथ, जो सदैव ईश्वरीय हस्तक्षेप पर भरोसा करता है, "झुंड के संरक्षक और मार्गदर्शक" के रूप में अपने मिशन में असफल न होने के लिए सब कुछ किया। इसके अतिरिक्त, समस्त प्रतिबंधों के बावजूद, प्रभु येसु मसीह के आशीर्वचनों की भावना के अनुसार, बिना किसी डर के मसीह के सुसमाचार की सांत्वनादायी शक्ति की घोषणा करना जारी रखा, जिसमें सन्त मत्ती रचित सुसमचार के अनुसार, शांति निर्माताओं को ईश्वर की संतान कहा गया है।
चेसेना- सारसिना धर्मप्रान्त के धर्माध्यक्ष को सम्बोधित सन्देश के अन्त में पोप फ्रांसिस ने लिखाः प्रिय भाई, मैं इस धर्मप्रान्त के विश्वासियों को आपके प्रिय साथी नागरिक, प्रेरितवर सन्त पेत्रुस के इस सम्मानित उत्तराधिकारी के जीवन और प्रेरितिक कार्यों को पर्याप्त रूप से ज्ञात करने का काम सौंपता हूं, ताकि वे दूसरों की सेवा में समान जुनून पैदा कर सके तथा एक सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण के लिये शांति को आशा, सम्मानजनक संवाद और ख्रीस्तीय मेल-मिलाप के मार्ग के रूप में इंगित करते रहें।