पोप : एकता और शांति के सूत्रधार पवित्र आत्मा

पोप फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में पवित्र आत्मा को एकता का सूत्रधार कहता।

पोप फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन के अवसर पर वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।

पवित्र आत्मा और कलीसिया पर अपनी धर्मशिक्षा माला के अंतगर्त आज हम प्रेरित चरित की पुस्तिका पर चिंतन करेंगे।

पवित्र आत्मा के आगमन की निशानियाँ
पेन्तेकोस्त के समय पवित्र आत्मा का आगमन हमारे लिए कुछ तैयारी भरी निशानियों का जिक्र करता है जहाँ हम वायु की कड़खड़ाहट और आग को जीभ के रुप में पाते हैं- लेकिन अंत में इसका वर्णन हम इस रूप में पाते हैं, “वे सभी पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये।” संत लूकस जिन्होंने प्रेरित चरित की पुस्तक लिखी इस बात पर जोर देते हुए यह सुनिश्चित करते हैं कि पवित्र आत्मा वे हैं जो हममें वैश्विकता और कलीसिया की एकता से सुदृढ़ करते हैं। पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होने का शीघ्र प्रभाव हमारे लिए प्रेरितों में विभिन्न भाषाओं को बोले जाने में परिल्क्षित होता हैं, वे अंतिम व्यारी की कोठरी से बाहर निकलते और भीड़ को येसु ख्रीस्त के बारे में बतलाने लगते हैं।

पवित्र आत्मा के दो कार्य
ऐसा करने के द्वारा, लूकस वैश्विक कलीसिया की प्रेरिताई पर जोर देना चाहते हैं जो हम सभों के बीच एकता की बात व्याँ करती है। हम पवित्र आत्मा को दो रुपों में एकता हेतु कार्य करते पाते हैं। पहला वे कलीसिया को अपने से बाहर ले चलते जिससे वह और अधिक लोगों का स्वागत करते हुए उन्हें जमा कर सकें, तो वहीं दूसरी ओर वे उन्हें वैश्विक एकता में सुसंगठित करते हैं। वे उसे दुनिया में फैलने और एकता में बने रहना सीखलाते हैं। वैश्विकता और एकता- ये कलीसिया के रहस्य हैं।

मनफिराव
हम इस पहले कार्य वैश्विकता को प्रेरित चरित के दसवें अध्याय, कोरनेलियुस के मनफिराव की घटना में पाते हैं। पेन्तेकोस्त के दिन, प्रेरितों ने यहूदियों और मूसा के नियमानुसार चलने वाले अनुयायियों के लिए ख्रीस्त को घोषित किया था। पहले पेन्तेकोस्त की भांति ही शतपति कोरनेलियुस के निवास में हम दूसरा पेन्तेकोस्त को पाते हैं, जो प्रेरितों को अपनी क्षितिज का विस्तार करने और यहूदियों और गैर-ख्रीस्स्तीयों के बीच की अड़चनों को दूर करने को अग्रसर करता है।

इस जातीय विस्तार में हम भौगोलिक विस्तार को संलग्न पाते हैं। पौलुस जैसे कि हम प्रेरित चरित में सदैव पढ़ते हैं, वे एशिया माइनर के नये प्रांत में सुसमाचार प्रचार करना चाहते थे। लेकिन हम इसके लिखित रुप में ऐसा पाते हैं कि इसके लिए पवित्र आत्मा उन्हें मना करते हैं। वह बेथुनिया में प्रवेश करने की चाह रखते हैं लेकिन पवित्र आत्मा उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं देते हैं। हमें आश्चर्यजनक रुप में इस मनाही के कारणओं का तुरंत पता चलता है, वहीं दूसरी रात को एक सपने में प्रेरित को यह बतलाया जाता है कि उन्हें मकेदूनिया जाना है। इस भांति सुसमाचार ने एशिया को छोड़कर यूरोप में प्रवेश किया।

पवित्र आत्माः एकता के आधार
पवित्र आत्मा का दूसरा कार्य जिन्हें हम एकता का निर्माण करता हुआ पाते हैं जो हमारे लिए प्रेरित चरित के अध्याय 15 में देखने को मिलता है जहाँ हम येरुसालेम की धर्मसभा की गतिविधियों को पाते हैं। यहाँ समस्या यह है कि कैसे सुनिश्चित किया जाये कि प्राप्त सार्वभौमिकता कलीसिया की एकता से समझौता न करे। पवित्र आत्मा एकता की स्थापना अचानक चमत्कारिक और निर्णायक कार्य के रुप में नहीं करते हैं जैसे कि उन्होंने पेन्तेकोस्त के दिन में किया। वे ऐसा बहुत-सी स्थितियों में भी करते हैं- विवेकपूर्ण ढ़ग से, मानवीय समय और विभिन्नताओं का सम्मान के आधार पर, लोगों और संस्थानों से परे जाते हुए प्रार्थना और प्रतिकार की स्थिति में भी। वर्तमान समय में हम इसे सिनोडल रुप कह सकते हैं। वास्तव में, येरुसालेम की धर्मसभा में यही होता है, जिसे हम मूसा की संहिता के अनिवार्य अनुपालन के संदर्भ में पाते हैं।

संत अगुस्टीन पवित्र आत्मा के द्वारा स्थापित की गई एकता को एक निशानी द्वारा प्रस्तुत करते हैं जो प्रसिद्ध बन गई है “जैसा कि आत्मा एक व्यक्ति के शरीर का अंग है वैसे ही पवित्र आत्मा येसु के शरीर के अंग हैं जो कि कलीसिया है। यह निशानी हमें कुछ महत्वपूर्ण बातों को समझने में मदद करती है। पवित्र आत्मा कलीसिया में एकता बाहर से स्थापित नहीं करते हैं, वे हमें एकता में बने रहने हेतु अपने को आज्ञा देने तक सीमित नहीं रखते हैं। वे स्वयं एकता के आधार हैं। ये वे हैं जो हमें एकता में स्थापित करते हैं।

हमेशा की तरह, हम एक विचार से अंत करेगे जो हमें कलीसिया, एक समुदाय स्वरुप सभों को अपने में समाहित करता है। कलीसिया की एकता लोगों के बीच की एकता है और यह चित्रकारिता के पट पर स्थापित नहीं होती बल्कि हमारे जीवन में होती है। हम इसे अपने जीवन में अनुभव करते हैं। हम सभी एकता की कामना करते हैं, हम हृदय की गहराई से इसकी कामना करते हैं, फिर भी इसे प्राप्त करना हमारे लिए कठिन होता है, यहाँ तक की वैवाहिक जीवन और परिवार में भी। एकता और एकमत अपने में सबसे कठिन चीजों में से एक है जिसे बनाये रखना और भी कठिन लगता है।

एकता की चाह
सभी कोई एकता की चाह रखते हैं लेकिन यह हमारे लिए कठिन होता है क्योंकि हर कोई अपनी इच्छा के अनुरूप, दूसरे व्यक्ति के विचारों की चिंता किये बिना कि वह क्या सोच रहा है, ऐसा करने की सोचता है। इस भांति एकता हमारे लिए और भी मायावी हो जाती है। पेन्तेकोस्त की एकता, जो पवित्र आत्मा से आती है, अपने में तब प्राप्त की जाती है जब कोई अपने को नहीं बल्कि ईश्वर को केन्द्र में रखता है। ख्रीस्तीय एकता का निर्माण इस भांति होता है जब हम दूसरों को अपनी ओर आने की प्रतीक्षा करने के बदले एक साथ मिलकर येसु की ओर आगे बढ़ते हैं।