पोप: ईश्वर से सौंपी गई वस्तु का प्रयोग अधिक न्यायपूर्ण दुनिया बनाने के लिए करें

सच्चा धन ईश्वर और अपने पड़ोसियों के साथ मित्रता है। हर प्रकार का स्वार्थ दूसरों से अलगाव की ओर ले जाता है और "प्रतिस्पर्धा का ज़हर फैलाता है जो अक्सर संघर्ष को जन्म देता है।" हमें ईश्वर से प्राप्त वरदानों, खासकर, अपने जीवन का सावधानी और जिम्मेदारी से उपयोग करना चाहिए, क्योंकि हम उसके मालिक नहीं हैं। रविवार को देवदूत प्रार्थना का पाठ करने से पहले पोप लियो 14वें ने विश्वासियों को यही याद दिलाया, जहाँ 15,000 तीर्थयात्री उपस्थित थे।
वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवार 21 सितम्बर को, पोप लियो 14वें ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, शुभ रविवार।
सुसमाचार पाठ से आज हमने जो सुसमाचार सुना (लूक.16,1-13) हमें भौतिक चीजों के प्रयोग पर चिंतन करने के लिए प्रेरित करता है, खासकर, हमारा जीवन जो सबसे मूल्यवान सम्पति है उसका प्रबंधन किस प्रकार कर रहे हैं। कहानी में, हम एक कारिंदा या प्रबंधक को देखते हैं जिसे उसका स्वामी "हिसाब देने" के लिए बुलाता है। यह तस्वीर एक महत्वपूर्ण बात कहती है: हम अपने जीवन या जिन चीजों का आनंद लेते हैं, उनके मालिक नहीं हैं; सब कुछ हमें प्रभु द्वारा एक उपहार के रूप में मिला है, और उन्होंने यह विरासत हमारी देखभाल, हमारी स्वतंत्रता और जिम्मेदारी पर सौंपी है।
एक दिन हमें इस बात का हिसाब देना होगा कि हमने स्वयं को, अपनी सम्पत्ति को और पृथ्वी के संसाधनों की देखभाल किस प्रकार की, ईश्वर के समक्ष और मनुष्यों, समाज और सबसे बढ़कर, हमारे बाद आनेवालों के समक्ष।
दृष्टांत में प्रबंधक ने केवल अपना लाभ चाहा, और जब वह दिन आया, तब उसे हिसाब देना पड़ा और उससे प्रशासन छीन लिया गया, तो उसे सोचना पड़ा कि अपने भविष्य के लिए क्या करना चाहिए।
इस मुश्किल हालात में, उसे एहसास हुआ कि भौतिक वस्तुओं का संग्रह सबसे जरूरी चीज नहीं है, क्योंकि इस दुनिया की दौलत तो खत्म हो जाती है। इस तरह उसे एक बेहतरीन तरकीब सूझती है: वह अपने कर्ज़दारों को बुलाता है और उनका कर्ज "माफ" कर देता है। इस तरह वह अपना हिस्सा छोड़ देता है। वह अपनी भौतिक संपत्ति तो खो देता है, लेकिन उसे ऐसे दोस्त मिल जाते हैं जो उसकी मदद और सहारा देने के लिए तैयार रहते हैं।
इस कहानी का हवाला देते हुए, येसु हमें प्रोत्साहित करते हैं: "झूठे धन से अपने लिए मित्र बना लो जिससे उसके समाप्त हो जाने पर वे लोग परलोक में तुम्हारा स्वागत करें।" (पद 9)।
निःसंदेह, दृष्टांत का कारिंदा, इस संसार के झूठे धन का प्रबंधन करते हुए भी, अपने स्वार्थ के अकेलापन से मुक्त होकर, मित्र बनाने का रास्ता ढूँढ़ ही लेता है। तो, हम, जो शिष्य हैं और सुसमाचार के प्रकाश में जीते हैं, हमें उससे बढ़कर संसार की वस्तुओं और अपने जीवन का उपयोग सच्चे धन को ध्यान में रखकर करना चाहिए, जो प्रभु और अपने भाइयों एवं बहनों के साथ मित्रता है।
संत पापा ने चिंतन हेतु प्रेरित करते हुए कहा, प्रिय मित्रों, यह दृष्टांत हमें स्वयं से यह प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित करता है: हम भौतिक वस्तुओं, पृथ्वी के संसाधनों और ईश्वर द्वारा हमें सौंपे गए अपने जीवन का प्रबंधन कैसे कर रहे हैं? हम स्वार्थ की कसौटी पर चल सकते हैं, धन को सर्वोपरि मान सकते हैं और केवल अपने बारे में सोच सकते हैं; लेकिन यह हमें दूसरों से अलग कर देता है और प्रतिस्पर्धा का जहर फैलाता है जो अक्सर संघर्ष को जन्म देता है। या हम जो कुछ भी हमारे पास है उसे ईश्वर की ओर से एक उपहार के रूप में देख सकते हैं जिसका प्रबंधन किया जाना चाहिए, और इसे साझा करने, मित्रता और एकजुटता के नेटवर्क बनाने, अच्छाई को बढ़ावा देने, एक अधिक न्यायपूर्ण, अधिक समतापूर्ण और अधिक भ्रातृत्वपूर्ण विश्व के निर्माण के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
आइए, हम धन्य कुँवारी मरियम से प्रार्थना करें कि वह हमारे लिए मध्यस्थता करें और हमें न्याय एवं जिम्मेदारी के साथ, प्रभु द्वारा हमें सौंपी गई चीजों का अच्छी तरह से प्रबंधन करने में मदद करें।