देवदूत प्रार्थना में पोप : ईश्वर के प्रतिदिन के चमत्कारों का अनुभव करें

अपने रविवारीय देवदूत प्रार्थना के दौरान, पोप फ्राँसिस ने दिन के सुसमाचार पाठ पर चिंतन किया, जिसमें प्रभु के रोटियों और मछलियों के चमत्कार का वर्णन किया गया है, तथा उन्होंने सभी विश्वासियों को आमंत्रित किया कि वे उन सभी तरीकों को पहचानें और उनके लिए धन्यवाद दें, जिनसे प्रभु हमें अपने दैनिक कृपाओं से भरते हैं।

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवार 28 जुलाई को पोप फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, शुभ रविवार।

आज की धर्मविधि का सुसमाचार पाठ हमें रोटियों और मछलियों के चमत्कार के बारे में बताता है (यो.6,1-15) एक चमत्कार, अर्थात् एक "चिन्ह", जिसके पात्र तीन भाव प्रकट करते हैं जिन्हें येसु अंतिम भोज में दोहराएंगे। ये भाव क्या हैं?

दान करना
सुसमाचार एक लड़के के बारे में बताता है जिसके पास पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ थीं (यो.6.9) यह एक ऐसा भाव है जिससे हमें लगता है कि हमारे पास देने के लिए कुछ अच्छी चीज है, और हम "हाँ" कहते हैं, भले ही हमारे पास जो है वह आवश्यकता से बहुत कम हो। यह रेखांकित करता है कि पवित्र मिस्सा में जब पुरोहित वेदी पर रोटी एवं दाखरस चढ़ाते हैं तो हरेक विश्वासी अपने आपको, अपने जीवन को चढ़ाता है।

पोप ने कहा, “यह एक ऐसा भाव है जो बहुत छोटा लग सकता है, अगर हम मनुष्यों की अपार जरूरतों से तुलना करेंगे, यह ठीक उसी तरह है जैसे हजारों लोगों की भीड़ के सामने पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ; लेकिन ईश्वर इसे सबसे बड़े चमत्कार का साधन बनाते हैं: जिसमें वे स्वयं, दुनिया के उद्धार के लिए हमारे बीच उपस्थित होते हैं।

धन्यवाद देना
इस तरह हम दूसरे भाव को समझते हैं। (यो.6,11) संत पापा ने कहा, “पहला भाव है दान देना, दूसरा है धन्यवाद देना। अर्थात्, प्रभु से नम्रता से, लेकिन खुशी के साथ कहना: "मेरे पास जो कुछ भी है प्रभु, वह आपका वरदान है, और आपको धन्यवाद देने के लिए मैं केवल वही वापस दे सकता हूँ जो आपने मुझे पहले दिया है, अपने पुत्र येसु मसीह के साथ, मैं वही जोड़ रहा हूँ।" यह वही है जो मैं कर सकता हूँ।''

पोप ने कहा कि हममें से हर कोई कुछ न कुछ जोड़ सकता है। मैं प्रभु को क्या दे सकता हूँ? छोटा बच्चा क्या दे सकता है? अपना छोटा प्यार।" और कह सकता है "ईश्वर, मैं आपसे प्यार करता हूँ"। हम गरीब लोग हैं: हमारा प्यार कितना छोटा है! लेकिन हम इसे प्रभु को दे सकते हैं, प्रभु इसे स्वीकार करते हैं।

बांटना
दान करना, धन्यवाद देना, और तीसरा भाव है बांटना। पवित्र मिस्सा में यह पवित्र परमप्रसाद है, जब हम एक साथ मसीह के शरीर और रक्त को ग्रहण करने के लिए वेदी के पास जाते हैं: तब सभी के दान के फल प्रभु में, सभी के लिए भोजन में बदल जाते हैं। परमप्रसाद का समय एक खूबसूरत पल है, जो हमें प्यार के हर भाव को अनुग्रह के उपहार के रूप में अनुभव करना सिखाता है, दोनों के लिए, जो देते हैं और उनके लिए भी जो लेते हैं।

चिंतन
भाइयो एवं बहनो, आइए अपने आप से पूछें: क्या मैं वास्तव में ईश्वर की कृपा से विश्वास करता हूँ कि मेरे पास अपने भाइयों को देने के लिए कुछ अनोखी चीज है, या क्या मैं गुमनाम रूप से "दूसरे लोगों की तरह" महसूस करता हूँ? क्या मैं दान की जानेवाली वस्तु का नायक हूँ? क्या मैं उन उपहारों के लिए प्रभु का आभारी हूँ जिनके द्वारा वह लगातार मुझे अपना प्रेम दिखाते हैं? क्या मैं दूसरों के साथ बांटने को मिलन और पारस्परिक संवर्धन के क्षण के रूप में अनुभव करता हूँ?”

तब पोप ने माता मरियम की याद कर कहा, “कुँवारी मरियम हमें हर पवित्र यूखरिस्त समारोह को विश्वास के साथ मनाने और हर दिन ईश्वर की कृपा के "चमत्कारों" को पहचानने एवं उनका अनुभव करने में मदद करें।

इतना कहने के बाद पोप ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्ररितिक आशीर्वाद दिया।