एक्वाडोर के दो मिशनरी तथा भारत के एक धर्माध्यक्ष नये पूजनीय

22 मई को पोप लियो 14 वें ने दो धर्माध्यक्षों एवं एक धर्मबहन को कलीसिया की वेदी पर सम्मानित किये जाने से सम्बन्धित आदेशों को अनुमोदन प्रदान कर दिया।

वाटिकन स्थित परमधर्मपीठीय सन्त प्रकरण परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल मारचेल्लो सेमेरारो के साथ गुरुवार की मुलाकात में, पोप लियो 14 वें ने 1987 में इक्वाडोर के मूल निवासियों द्वारा मारे गए एक स्पानी धर्माध्यक्ष एवं कोलोम्बिया की एक धर्मबहन तथा भारत के एक धर्माध्यक्ष को कलीसिया की वेदी पर सम्मानित किये जाने से सम्बन्धित आदेशों को अनुमोदन प्रदान कर दिया।

मूलनिवासियों की सेवा में  
धर्माध्यक्ष आल्लेसान्द्रो लाबाका ऊगार्ते का जन्म 1920 में स्पेन के बैज़ामा में हुआ था। कैपुचिन धर्मसमाज में शपथें ग्रहण करने के उपरान्त सन् 1945 ई. में आप पुरोहित अभिषिक्त किये गये थे तथा चीन में सुसमाचार प्रचार कार्य के लिये प्रेषित किये गये थे किन्तु माओवादी शासनकाल के दौरान उन्हें चीन से निष्कासित कर दिया गया था।

चीन से आपने एक्वाडोर का रुख किया जहाँ कई वर्षों तक एक्वाडोर के मूलनिवासियों, और विशेष रूप से, तागेरी देशज लोगों के बीच पल्ली पुरोहित रूप में सेवा अर्पित करते रहे और 1984 में धर्माध्यक्ष अभिषिक्त किये गये।

एक्वाडोर में तेल की खदानों में काम करते ग़रीब आदिवासी श्रमिकों के अधिकारों के लिये संघर्ष करनेवाले धर्माध्यक्ष ऊगार्ते तथा उनकी सहयोगी धर्मबहन कोलोम्बिया की सि. आगनेस वेलासकेज़ की हत्या 1987 में कर दी गई थी।            

धर्माध्यक्ष मातेओ माकिल
इसी बीच पोप लियो 14 वें ने भारत के काथलिक धर्माध्यक्ष मातेओ माकिल के विषय में प्रस्तुत आज्ञप्ति को भी मान्यता दे दी है। धर्माध्यक्ष माकिल धन्य कुँवारी मरियम की भेंट को समर्पित धर्मसंघ के संस्थापक हैं। आपका जन्म केरल में सन् 1851 में तथा पुरोहिताभिषेक सन् 1865 में हुआ था। सन् 1889 में आप कोट्टायम धर्मप्रान्त के प्रतिधर्माध्यक्ष नियुक्त किये गये थे तथा1896 में आप चंगनाचेरी के अपोस्टोलिक विकर के पद पर नियुक्त किये गये थे।

1892 में आपने धन्य कुँवारी मरियम की भेंट को समर्पित धर्मसंघ की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य किशोरियों की शिक्षा था।

शांति निर्माता धर्माध्यक्ष
केरल में उस समय दो समुदायों के बीच तनाव बने रहते थे जो कभी-कभी हिंसक भी हो उठते थे। ये थे चंगनाचेरी के उत्तर में निवास करनेवाले जो ख़ुद को सन्त थॉमस के उत्तराधिकारी मानते थे तथा दक्षिण निवासी जो ख़ुद को मेसापोटेमिया के आप्रवासी घोषित करते थे। इनके बीच सुलह करने के लिये धर्माध्यक्ष माकिल केरल के शांतिनिर्माता रूप में विख्यात हो गये थे, जिसके परिणामस्वरूप सन्त पापा पियुस दसवें ने सन् 1911 में चंगनाचेरी प्रतिधर्माध्यक्षीय पीठ को दो प्रेरितक पीठों में विभक्त कर दिया था।

शांतिनिर्माता धर्माध्यक्ष मातेओ माकिल का निधन एक बीमारी के उपरान्त सन् 1914 ई. में हो गया था।