इराक में ख्रीस्तीयों को अब भी असुरक्षा का डर सता रहा है
पोप फ्राँसिस की इराक की प्रेरितिक यात्रा के तीन साल बाद, मोसुल और अकरा के खलदेई महाधर्माध्यक्ष माइकल नजीब ने वाटिकन न्यूज से कहा कि ख्रीस्तीयों के लिए जारी कठिनाइयों के बावजूद, उस ऐतिहासिक यात्रा का फल धीरे-धीरे मुस्लिम-बहुल राष्ट्र में दिखना शुरू हो गया है।
5 मार्च 2021 को संत पापा फ्राँसिस ने इराक की अपनी प्रेरितिक यात्रा शुरू की थी, जो मध्य पूर्वी राष्ट्र में किसी पोप की पहली यात्रा थी।
अपनी चार दिवसीय यात्रा में पोप फ्राँसिस ने बगदाद के साथ-साथ ऊर के मैदान, अब्राहम के जन्म स्थान और नजफ़, नासिरिया, एरबिल, मोसुल और क़ाराकोश शहरों का दौरा किया था। और वहाँ के ख्रीस्तीय समुदाय तथा राजनीतिक एवं धार्मिक नेताओं से मुलाकात की थी।
यात्रा का मुख्य उद्देश्य इराक में घटते ईसाई समुदायों के लिए अपनी निकटता और आध्यात्मिक समर्थन प्रदान करना था, जो अभी भी तथाकथित इस्लामिक स्टेट समूह (आईएसआईएस) द्वारा चार साल के उत्पीड़न से जूझ रहा है, और साथ ही अंतरधार्मिक संवाद एवं समझ को प्रोत्साहित करना था।
लगभग 40 मिलियन लोगों के देश में, ख्रीस्तीय लोगों की आबादी दशकों से लगातार घट रही है, यह 2003 में लगभग 1.4 मिलियन से बढ़कर आज लगभग 250,000 हो गई है।
महाधर्माध्यक्ष नजीब ने बतलाया कि हालांकि पोप फ्रांसिस ने उन्हें सांत्वना दी और 2017 में आईएसआईएस की सैन्य हार के बाद प्रवासी इराकी ईसाइयों को पुनर्वास के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन कई लोग अभी भी झिझक रहे हैं, और कई परिवार चल रही असुरक्षा के कारण नीनवे मैदान और इराकी कुर्दिस्तान से पलायन कर रहे हैं।
उन्होंने विस्तार से बताया कि क्षेत्र में ख्रीस्तीयों को एक-दूसरे से लड़नेवाले स्थानीय नागरिक सेना से धमकी और संभावित हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, और उनके अधिकांश घर जो आईएसआईएस के कब्जे के दौरान नष्ट हो गए थे, अभी भी मलबे में हैं।
"ख्रीस्तीय ऐसे स्थानों पर अपना जीवन फिर से शुरू नहीं करना चाहते जो अभी भी उनके लिए असुरक्षित हैं और जिन्हें सरकार नियंत्रित नहीं कर सकती है।"
अयातुल्लाह अली अल-सिस्तानी से मुलाकात का सबसे साकारात्मक परिणाम
पोप फ्राँसिस की यात्रा का एक मुख्य आकर्षण इराक के शीर्ष शिया मौलवी, ग्रैंड अयातुल्ला अली अल-सिस्तानी के साथ उनकी मुलाकात और भाईचारा पर बयान था, जो अबू धाबी दस्तावेज़ का पूरक है, जिस पर पोप ने फरवरी 2019 में अल अज़हर के सुन्नी ग्रैंड इमाम, शेख अहमद अल-तैयब के साथ हस्ताक्षर किए थे।
महाधर्माध्यक्ष नजीब के अनुसार, यह आयोजन पोप फ्राँसिस की इराक यात्रा के सबसे सकारात्मक परिणामों में से एक है और ख्रीस्तीयों एवं मुसलमानों के बीच आपसी समझ की दिशा में एक और कदम है, इस तथ्य के आलोक में भी कि देश में शिया 60% से 65% मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उन्होंने कहा, “यह एक खूबलूरत मुलाकात थी जिसने कई गतलफहमियों को दूर किया। अब हम शत्रु के रूप में नहीं बल्कि मानवता में भाइयों के समान देखे जाते हैं।”
अंत में, इस्लामी चरमपंथियों के प्रति आज इराकी मुस्लिम नेताओं के रवैये के बारे में पूछे जाने पर,महाधर्माध्यक्ष नजीब ने कहा कि मुसलमानों को जल्द ही यह एहसास हो गया कि आईएसआईएस के कट्टरपंथी इस्लामवादी विचारधारा सच्चे इस्लाम का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और उन्होंने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा, "आईएसआईएस द्वारा समर्थित इस्लाम के इस रूप ने, एक ओर, सुन्नी और शिया मुस्लिम समुदायों के बीच मित्रता को ख़राब कर दिया है, वहीँ दूसरी ओर, इस्लाम का उपयोग अंतर-धार्मिक मित्रता को विकृत करने के लिए भी किया गया है।"