क्रिसतुस विवित के पाँच साल बाद : भारतीय युवाओं में आशा और दृढ़ता
पोप फ्राँसिस के प्रेरितिक प्रबोधन क्रिसतुस विवित के प्रकाशन के पाँच साल बाद, भारत के युवा क्या महसूस करते हैं इसे जानने के लिए हमने 2018 के एक सिनॉड प्रतिभागी से बात की।
“युवा, विश्वास और बुलाहटीय आत्मपरख” विषय पर 3-28 अक्टूबर 2018 में आयोजित धर्मसभा की 15वीं महासभा में एकत्र सैकड़ों धर्माध्यक्षों में, 34 युवाओं को ऑडिटर के रूप में भाग लेने का अवसर मिला था।
उन युवाओं में से एक थे पर्सिवल होल्ट। जो उस समय भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीसीबीआई)
में राष्ट्रीय युवा आयोग के भारतीय काथलिक युवा आंदोलन (ICYM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। वे आज भी इस जिम्मेदारी को आगे बढ़ा रहे हैं।
उन्होंने 25 मार्च को क्रिसतुस विवित की पाँचवीं वर्षगाँठ के अवसर पर वाटिकन न्यूज को बतलाया कि भारत के युवाओं में क्या परिवर्तन हुआ है और वे किस आशा एवं दृढ़ता से आगे बढ़ रहे हैं एवं कलीसिया से क्या उम्मीद करते हैं।
प्रश्न : पोप के प्रेरितिक प्रबोधन क्रिसतुस विवित का संदेश भारत के युवाओं में कितना पहुँच पाया है?
भारत में इसे काफी युवाओं तक पहुँचाया गया है। 2018 में जब सिनॉड समाप्त हुआ उसके बाद क्रिसतुस विवित पब्लिश हुआ था। तो भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के युवा आयोग और उनके साथ जितने भी संगठन हैं उसमें मैं भी शामिल था, हमने हर धर्मप्रांत में क्रिसतुस विवित बंटवाया था और काफी हद तक रीजन एवं धर्मप्रांतों में जा जाकर उसके बारे में शेयर किया था। इस प्रकार काफी प्रयास किया गया था कि जितना हो सके, बिशप्स, फादर्स, सिस्टर्स, कॉन्ग्रीगेशन्स, पल्लियों, संस्थानों के माध्यम से जमीनी स्तर से युवाओं तक क्रिसतुस विवित पहुँचाया जाए। संक्षेप में पोप फ्राँसिस जो कहना चाह रहे हैं, जो दर्शा रहे हैं या जो उम्मीदें हैं, उसको पहुँचाया जाए, तो काफी हद तक युवाओं को इसे पहुँचाया गया है और ये जारी है।
प्रश्न : इसका अभी क्या परिणाम दिखाई दे रहा है?
इसका परिणाम युवाओं में जो दिखाई पड़ रहा है उनमें से एक है कि युवाओं में थोड़ा डर था और असुरक्षा थी कि चर्च में हमारा क्या रोल है वो कम हुआ, मुख्य रूप से। उनमें साहस बढ़ा है और सोच बदली है कि हम भी कलीसिया में उतने ही जिम्मेदार हैं, उतने ही महत्वपूर्ण हैं। और हमारा विश्वास भी उतना ही मायने रखता है। और हमें कुछ करना है हमारी भी एक आवाज है। और हमारा भी कर्तव्य बनता है विश्वास के प्रति और कलीसिया के प्रति। ये बहुत बड़ा बदलाव है जिसको मैंने खुद इस वर्षों में अनुभव किया है। लेकिन काम अभी भी जारी है। जब मैं युवाओं से मिलता हूँ तो दिखता है कि हमें अब पारिश कौंसिल में बोलने दिया जाता है। या बिशप से बात होती है और हम डायसिस में ज्यादा शामिल हैं। कलीसिया के निर्णय लेने में अधिक सहभागिता है।
दूसरा बदलाव है, धर्माध्यक्षों में, पुरोहितों में और धर्मसमाजियों में भी युवाओं को देखने के नजरिये में बदलाव आया है। उससे पहले यह नहीं सोचा जाता था कि युवाओं को डायसिस की संरचना में शामिल करना है। अब युवाओं को शामिल करने की रूचि जागी है, एक बदलाव आया है कि डायसिस समिति हो, राष्ट्रीय स्तर पर हो या पल्ली ही हो उनका शामिल होना जरूरी है। ये दो चीजें हैं जो मेरे ख्याल से बड़े बदलाव आये हैं मेरे ख्याल से।
और बाकी चीजें इधर-उधर पहल करने में और स्वतंत्रतापूर्वक कुछ चीजों में आगे बढ़ने में बदलाव आया है।
प्रश्न : भारत में विभिन्न समस्याओं के बीच युवा विश्वास में अपने आपको कैसे पाते हैं वे अपने विश्वास में कैसे मजबूत बने रहकर सकते हैं?
काथलिक युवाओं का विश्वास मजबूत है। डर उनमें बिलकुल नहीं है कि हम ईसाई हैं और डरने की कोई आवश्यकता है। मुझे याद है कि 2018 -19 में युवाओं पर हमले हुए हैं लेकिन वे डरे नहीं, डटे रहे और बोला कि हम इस चीज पर नहीं हटेंगे। अगर युवा पलायन कर रहे हैं तो वे विश्वास के कारण से पलायन नहीं कर रहे हैं किसी दूसरे कार्यों से ऐसा कर रहे हैं। वे देश को छोड़कर जाना नहीं चाहते हैं।
प्रश्न : पोप फ्राँसिस ने युवाओं को ख्रीस्त के साथ संयुक्ति से मिलने वाले आनन्द को बांटने की सलाह दी थी युवा इसे ठोस रूप में किस तरह कर पा रहे हैं।
अलग-अलग तरीके से योगदान दे रहे हैं। ईसाई सर्कल में मित्रता, भाईचारा बढ़ाने के माध्यम से दे रहे हैं। सामान्य रूप से समाज में एक अच्छा उदाहरण बने रहने का प्रयास करते हुए। युवाओं के लिए कुछ चुनौतियाँ भी हैं, अलग तरीके से पेश आने में। मैं देखता हूँ कि वे शांति, प्रेम और न्याय के लिए काम करते हैं। मूल्यों को बनाये रखने के लिए काम करते हैं बुराई के खिलाफ आवाज उठाकर और अच्छाई के लिए खड़े होकर। इन सब में मैं देख रहा हूँ कि युवाओं का काफी योगदान है। समाज के प्रति, राष्ट्र-निर्माण और राजनीति के प्रति रूचि जागी है।