पोप : सृष्टि की देखभाल एक नैतिक और धार्मिक मुद्दा

पोप फ्रांसिस ने सृष्टि की देखभाल के लिए, विश्व प्रार्थना दिवस 2024 का संदेश जारी करते हुए मानवता में रूपांतरण की अपील की ताकि हम युद्ध के विनाशकारी प्रभावों को पहचान सकें और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास पर नैतिक सीमाएँ निर्धारित कर सकें।

मानवता द्वारा प्रकृति के प्रति किए जा रहे दुरुपयोग के लिए सच्चे रूपांतरण की आवश्यकता है और यह हमें अपनी जीवनशैली बदलने का आहृवान करता करता है। उक्त बातें पोप फ्रांसिस ने 1 सितंबर, 2024 को आयोजित होने वाले सृष्टि की देखभाल हेतु विश्व प्रार्थना दिवस के अपने संदेश में कही, जिसे 27 जून गुरुवार को प्रकाशित किया गया।

'आशा में सृष्टि के संग कार्य करें'
इस वर्ष विश्व प्रार्थना की विषयवस्तु है, "आशा में सृष्टि के साथ कार्य", जो संत पौलुस के द्वारा रोमियों के नाम लिखे गये पत्र  (8:19-25) से लिया गया है,  जहाँ वे हमें आत्मा के अनुसार जीने का अर्थ बतलाते, और मुक्ति की निश्चित आशा पर हमारा ध्यान क्रेन्द्रित कराते है जो विश्वास से पैदा होती है, मुख्यतः  मसीह में जीवन की नवीनता से।

27 जून को पोप फ्रांसिस द्वारा हस्ताक्षरित संदेश को नौ खंडों में विभाजित किया गया है, जो हमारे सामान्य घर की देखभाल करने की हमारी जिम्मेदारी पर प्रकाश डालते हैं। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि, ख्रीस्तीयों के रुप हम कैसे विश्वास और करूणा में बन रहते हुए, पर्यावरण की देखभाल करने हेतु बुलाये गये हैं, यह स्वतंत्रता में लिया जाने वाला कार्य है, जो येसु के प्रेममय आज्ञा पालन में पूरा होता है।

अपनी गलती से गुलाम
"सृष्टि अपने में मानव की भांति उसकी गलती के कारण ही गुलाम बना दी गई,। पोप इस संदर्भ में  दुःख व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मानव "अपने स्थायी अर्थ और उद्देश्य को पूरा करने में असमर्थ है जिसके लिए ईश्वर ने उसकी सृष्टि की है।"

उन्होंने कहा कि पर्यावरण "विघटन और मृत्यु के अधीन है, जो प्रकृति के मानवीय दुरुपयोग से और भी बढ़ गया है।" फिर भी, वे आश्वस्त कराते हुए कहते हैं कि "मसीह में मानवता का उद्धार सृष्टि के लिए भी एक निश्चित आशा है, क्योंकि, 'सृष्टि स्वयं नश्वरता के बंधन से मुक्त हो जाएगी और परमेश्वर की संतानों की शानदार स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।'"

सतर्क और बदलाव के लिए तैयार रहना
पोप ने कहा "हम आशापूर्ण और दृढ़ प्रतीक्षा में येसु के महिमामय पुनः आने की प्रतीक्षा करते हैं। यह पवित्र आत्मा है जो इसके लिए हमें  विश्वासी समुदाय की भांति  सतर्कता में बनाये रखते हैं।" उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा, "आत्मा निरंतर हमारा मार्गदर्शन करता है और हमें परिवर्तन हेतु निमंत्रण देता है, जहाँ हम अपने  जीवनशैली में बदलाव के लिए बुलाये जाते हैं जिससे हम पर्यावरण के विनाश का विरोध कर सकें और उस सामाजिक जीवन में शामिल हो सकें जो वास्तविक बदलाव की संभावना का गवाह है।"

एआई पर नैतिक सीमाएँ निर्धारण अत्यावश्यक
पोप आगे कहते हैं कि सृष्टि के साथ आशा करना और कार्य करने का अर्थ है नेक हृदयी लोगों, सभी नर-नरियों के साथ मिलकर चलना। इस तरह, हम “मानव शक्ति, उसके अर्थ और उसकी सीमाओं के सवाल" पर पुनर्विचार करने में एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।

इस संदर्भ में, पोप कहते हैं कि "कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास पर नैतिक सीमाएँ निर्धारित करने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि इसकी क्षमता का उपयोग शांति और समग्र विकास की सेवा करने के बजाय मानवता और प्रकृति पर प्रभुत्व के लिए किया जा सकता है," जैसा कि उन्होंने विश्व शांति दिवस 2024 के संदेश में अपने विचारों के उदृधृत किया है।

युद्ध के विनाशकारी प्रभाव
पोप दुनिया में व्याप्त बुराई के बार में चिंता करते हुए कहते हैं, “क्यों इतना अधिक अन्याय, युद्ध की स्थिति जहाँ बच्चे मारे जा रहे हैं,  शहरें नष्ट हो रहे हैं, पर्यावरण को प्रदूषण का शिकार होना पड़ रहा है और धरती माता को अपमानित और अपने में तबाह हो रही है?" वे कहते हैं कि "संपूर्ण ब्रह्मांड और उसमें रहने वाला प्रत्येक प्राणी अपनी वर्तमान स्थिति पर काबू पाने और अपनी मूल स्थिति को बहाल करने के लिए अधीरता से कराहता और तड़पता है।"

प्रकृति पर कब्ज़ा, उसमें हेरफेर और उसमें हावी न हों
पोप ने मानवीय प्रवृति के संबंध में कहा कि हम "प्रकृति पर कब्ज़ा करने और उस पर हावी होने, उसपर अधिकार जताने, अपनी इच्छानुसार उसपर हेरफेर करने में लगे हैं, यह और कुछ नहीं अपितु "मूर्तिपूजा का एक रूप है, मनुष्य का एक प्रोमेथियस संस्करण, जहाँ वह तकनीकी शक्ति के नशे में धुत होकर अहंकार से पृथ्वी को "अपमानित" करते हुए अपने को ईश्वर की कृपा से वंचित करता है।” संत पापा हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि सृष्टि "स्थिर या अपने आप में बंद नहीं है," बल्कि "लगातार अपने भविष्य की ओर प्रगति करती है।" सृष्टि की रक्षा करना, "न केवल एक नैतिक मुद्दा है, बल्कि एक ऐसा मुद्दा है जो अत्यंत धार्मिक है, क्योंकि यह वह मिलन स्थन है जहाँ हम मनुष्य और ईश्वर के रहस्य को एक दूसरे से संयुक्त होता पाते हैं।" संत पापा ने कहा कि हम स्वतंत्र हैं, क्योंकि ईश्वर ने हमें अपनी छवि में बनाया है जिसे हम येसु ख्रीस्त के रुप में देखते हैं  परिणामस्वरूप,  हम स्वयं मसीह में सृष्टि के "प्रतिनिधि" हैं।"

भविष्य दांव पर
पोप कहते हैं कि सृष्टि "ईश्वर के बच्चों के प्रकटीकरण" की प्रतीक्षा कर रही है, क्योंकि यह "प्रसव पीड़ा की तरह" पीड़ित है। वे चेतावनी देते हुए कहते हैं कि, "न केवल हमारे सांसारिक जीवन दांव पर है, बल्कि उसे से बढ़कर, अनंत जीवन में हमारा भविष्य भी।"