समावेशिता और दिव्यांगता पर जी7 को पोप फ्राँसिस का संबोधन
समावेशिता और दिव्यांगता पर जी7 को संबोधित करते हुए पोप ने कहा कि हम सभी अलग-अलग होते हुए भी एक जैसे हैं।
पोप फ्राँसिस ने समावेशिता एवं दिव्यांगता पर जी-7 के वैश्विक नेताओं से दिव्यांग लोगों की गरिमा, समावेशिता और सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने का आग्रह किया, तथा न्याय, सार्वभौमिक पहुंच और एकजुटता पर जोर दिया।
17 अक्टूबर को वाटिकन में जी7 समावेशन और दिव्यांगता शिखर सम्मेलन के मंत्रियों को संबोधित करते हुए, पोप फ्राँसिस ने एक अधिक न्यायपूर्ण और समावेशी दुनिया के निर्माण के लिए उनकी प्रतिबद्धता के लिए गहरा आभार व्यक्त किया।
इटली के मध्य उम्ब्रिया क्षेत्र में तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन के बाद यह मुलाकात हुई, जो बुधवार को सोलफान्यानो चार्टर पर हस्ताक्षर के साथ संपन्न हुआ। यह दस्तावेज दिव्यांग लोगों के एकीकरण हेतु एक मजबूत प्रतिबद्धता व्यक्त करता है, जिसमें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आठ प्राथमिकताएँ निर्धारित की गई हैं।
पोप ने कहा कि ये सिद्धांत न केवल कलीसिया की मानवीय गरिमा की दृष्टि से गहराई से जुड़े हैं, बल्कि ऐसे समाज को आकार देने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं जो हर व्यक्ति को सार्वभौमिक मानव परिवार के हिस्से के रूप में महत्व देता है।
पोप ने एक किस्सा सुनाते हुए कहा: "एक बार, विकलांग लोगों के बारे में बात करते हुए, किसी ने मुझसे कहा: 'सावधान, क्योंकि हम सभी में किसी न किसी तरह की विकलांगता है।' हम सभी में। यह सच है।"
वैश्विक प्राथमिकता
अपने संबोधन में पोप फ्राँसिस ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से दिव्यांग लोगों को शामिल करने को प्राथमिकता देने का आग्रह किया और उपस्थित सभी लोगों को याद दिलाया कि उनकी समान गरिमा को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, "समावेशी विश्व के निर्माण के लिए न केवल संरचनाओं को अनुकूलित करने की आवश्यकता है, बल्कि मानसिकता में भी बदलाव की आवश्यकता है।" उन्होंने सार्वभौमिक पहुंच का आह्वान करते हुए यह सुनिश्चित किया कि सभी भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक बाधाएं दूर हो जाएं, ताकि व्यक्ति अपनी प्रतिभाओं का विकास कर सकें और जीवन के किसी भी चरण में आमहित में योगदान दे सकें।
न्याय के लिए
इसके बाद पोप फ्राँसिस ने इस बात पर जोर दिया कि दिव्यांग लोगों के लिए सेवाएँ और सुविधाएँ प्रदान करना केवल सामाजिक सहायता का कार्य नहीं है, बल्कि न्याय का मामला है। उन्होंने कहा कि सभी राष्ट्रों की जिम्मेदारी है कि वे समावेशी समुदाय बनाएँ जो हर व्यक्ति के समग्र विकास को बढ़ावा दे। उन्होंने सम्मानजनक रोजगार और सांस्कृतिक एवं खेल आयोजनों में भागीदारी के अवसर प्रदान करने के आवश्यक महत्व को दोहराया, चेतावनी दी कि इन क्षेत्रों से किसी को बाहर करना "भेदभाव का एक गंभीर रूप है।"
एक उपकरण के रूप में प्रौद्योगिकी
पोप फ्राँसिस ने समावेश को आगे बढ़ाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर भी प्रकाश डाला, इस बात पर जोर दिया कि इसे सभी के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि प्रौद्योगिकी का उपयोग समझदारी से किया जाना चाहिए, ताकि असमानताओं को गहरा करने के बजाय उन्हें पाटा जा सके। उन्होंने कहा, "प्रौद्योगिकी को आमहित की ओर निर्देशित किया जाना चाहिए," और "मिलने-जुलने एवं एकजुटता की संस्कृति की सेवा में रखा जाना चाहिए।"
संकट के समय
अपने संबोधन के अंत में, पोप फ्राँसिस ने उन तात्कालिक मानवीय संकटों पर प्रकाश डाला जो सबसे कमजोर लोगों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं, जिनमें विकलांग व्यक्ति भी शामिल हैं। उन्होंने विकलांग लोगों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप रोकथाम और आपातकालीन प्रतिक्रिया की एक व्यापक प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संघर्ष या प्राकृतिक आपदा के समय कोई भी पीछे न छूट जाए।
अंत में, असीसी के संत फ्राँसिस की भावना पर चिंतन करते हुए, पोप फ्राँसिस ने जी7 प्रतिभागियों को आशा और प्रतिबद्धता की भावना के साथ अपना काम जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अंत में कहा, "एक साथ मिलकर, हम एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर सकते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा को पूरी तरह से पहचाना और सम्मानित किया जा सके।"