पोप लियोः ईश्वर की ओर चलें और एक दूसरे को प्रेम करें

पोप लियो 14वें ने अपने परमधर्माध्यक्षीय काल की शुरू मिस्सा बलिदान से करते हुए एक साथ चलने, प्रेम, एकता और भाईचारा स्थापित करने का आहृवान किया।

पोप लियो 14वें ने संत पेत्रुस की प्रेरिताई परमधर्मपीठीय कार्यकाल की शुरूआत यूख्रारीस्तीय धर्मविधि का अनुष्ठान करते हुए किया।

पोप लियो ने अपने प्रवचन के शुरू में कृतज्ञतापूर्ण हृदय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा कि संत अगुस्टीन ने लिखा है, “हे प्रभु तूने हमें अपने लिए बनाया है और हमारा हृदय तब तक अधीर है जब तक वह तुझ पर आराम न करें।”

इन दिनों हम एक गहरी अनुभूति से होकर गुजरे हैं। पोप फ्रांसिस की मृत्यु ने हमारे हृदयों को दुःखों से भर दिया। उन कठिन परिस्थितियों में, हमने अपने को चरवाहे के बिना भेड़ों के रूप में पाया जिसकी चर्चा हम आज के सुसमाचार में सुनते हैं। यद्यपि पास्का रविवार को, हमने अपने को उनके अंतिम प्रेरितिक आशीर्वाद से पोषित किया, और पास्का के परिदृश्य में हमने इस बात का अनुभव किया कि ईश्वर अपने लोगों का परित्याग कभी नहीं करते हैं, बल्कि उन्हें उनकी बिखरी परिस्थिति में एकत्रित करते और उनकी रक्षा करते हैं, उसी भांति जैसे “चरवाहा अपनी भेड़ों की रक्षा करता है।”

कार्डिनलमंडल की मनोभावने

विश्वास के इस मनोभाव में, कार्डिनलमंडल ने कॉनक्लेव की शुरूआत की। विभिन्न पृष्ठभूमियों और अनुभवों से आते हुए, उन्होंने रोम के धर्माध्यक्ष, संत पापा की नियुक्ति हेतु अपनी इच्छाओं को ईश्वर की हाथों में समर्पित किया, एक चरवाहे हेतु जो ख्रीस्तीय विश्वास की विरासत को सुरक्षित रख सके, वहीं भविष्य की ओर निगाहे रखते हुए विभिन्न सवालों, विचारों और वर्तमान दुनिया की चुनौतियों का सामना कर सके। अपनी प्रार्थनाओं में हमने वाध्य यंत्र की भांति पवित्र आत्मा के सहचर्य का अनुभव किया, जिससे हमारे हृदय के तार सिर्फ एक सुर से तरंगित हो सकें।

नम्रता में एक चाह
पोप लियो ने नम्रता के भाव व्यक्त करते हुए कहा कि बिना किसी योग्यता के मेरा चुनाव हुआ और अब भय तथा कंपन में मैं आप सभों की ओर एक भाई स्वरुप आता हूँ, जो आपके विश्वास और आपके आनंद का सेवक बनना चाहता है, जिससे मैं प्रेम के मार्ग पर आपके साथ चल सकूँ, क्योंकि मेरी चाहता है कि हम सभी एक परिवार के रुप में एकजुट रहें।

येसु की प्रेरिताई
पोप ने “प्रेम और एकता” येसु के द्वारा संत पेत्रुस को दिये गये प्रेरिताई के दो आयामों पर चिंतन करते हुए कहा कि आज का सुसमाचार हमें गलीलिया के झील में ले चलता है जहाँ येसु ने पिता से मिली अपनी प्रेरिताई की शुरूआत मानवता के एक मछुवारे स्वरुप की थी जिससे वे उसे बुराई और मृत्यु के सागर से खींच निकालें। समुद्र तट पर चलते हुए उन्होंने पेत्रुस और अन्य प्रथम शिष्यों को मनुष्य के मछुवारे होने का निमंत्रण दिया, और अब पुनरूत्थान के उपरांत यह उनके ऊपर निर्भर करता है कि वे अपनी प्रेरिताई को जारी रखें, अपने जालों को बरांबार फेंके जिससे वे सुसमाचार की आशा को दुनिया के समुद्र में ला सकें, जीवन के सागर में अपनी नाव ले चलें जिससे सभी ईश्वरीय आलिंगन का अनुभव करे।

ईश्वर के अनंत-शर्तहीन प्रेम से स्पर्श
पेत्रुस कैसे इसे आगे ले सकते हैं? सुसमाचार इसकी चर्चा करते हुए कहा है कि यह केवल तब संभव हो सकता है जब वह ईश्वर के अनंत और शर्तहीन प्रेम से स्पर्श किया जाता हो, यहाँ तक की अपनी असफलता और परित्याग की परिस्थितियों में भी। यही कारण है जब येसु पेत्रुस को संबोधित करते हैं जिसे सुसमाचार यूनानी भाषा में अगापो वर्णित करता है, जो हमारे लिए ई्श्वर के प्रेम की अभिव्यक्ति है, जहाँ ईश्वर बिना तोलमोल और अपनी चिंता किये अपने को हमारे लिए बलिदान करते हैं। वहीं पेत्रुस के द्वारा उपयोग किया गया क्रिया हमारे लिए मित्रवत प्रेम की चर्चा करता है जिसे हम एक दूसरे के लिए पाते हैं।

इसके परिमाण स्वरुप जब येसु पेत्रुस से पूछते हैं, “सिमोन, योहन के पुत्र क्या तुम मुझे प्रेम करते हो? यह हमारे लिए पिता के प्रेम की ओर इंगित कराता है। यह ऐसा प्रतीत होता है मानो येसु उसे कहते हैं, “यदि तुम ईश्वर के प्रेम को जानते और उसे अनुभव करते हो जो कभी असफल नहीं होता, तो तुम मेरे मेमनों की देख-रेख करने के योग्य होगे। केवल ईश्वर पिता के प्रेम में, अपने जीवन को समर्पित करते हुए तुम अपने भाई-बहनों को अधिक प्रेम करने के योग्य होगे।

“अधिक प्रेम” करने का बुलावा
संत पापा ने कहा कि पेत्रुस को इस भांति “अधिक प्रेम” और भेड़शाला हेतु अपने जीवन को अर्पित करने की जिम्मेदारी मिली। पेत्रुस की प्रेरिताई आत्म-समर्पित प्रेम से ही चिन्ह्ति होती है, क्योंकि रोम की कलीसिया प्रेम दान की अध्यक्षता करती है और इस सच्ची निशानी को हम ख्रीस्त के प्रेम दान में पाते हैं। यह कभी भी बलपूर्वक, धार्मिक प्रचार या शक्ति के माध्यम से दूसरों को वश में नहीं करना है। बल्कि, यह हमेशा केवल प्रेम करना है जैसा कि येसु ने किया।

सेवा के मनोभाव
संत पेत्रुस स्वयं हमें बतलाते हैं- “येसु वे पत्थर हैं जिसका परित्याग निमार्ताओं ने किया और अब वह कोने का पत्थर बन गये हैं।” उससे भी बढ़कर यदि पत्थर येसु हैं तो पेत्रुस को झुंड की रखवाली करनी चाहिए, लेकिन बिना तानाशाह के प्रलोभन में पड़े और न ही लोगों पर प्रभुता जताते हुए जिन्हें उन्हें सौंपा गया है। ठीक इसके विपरीत, वह विश्वास में अपने भाई-बहनों की सेवा करने हेतु बुलाये और उनके संग चलने को कहे जाते हैं क्योंकि वे सभी जीवित पत्थर हैं, जिन्हें बपतिस्मा द्वारा ईश्वर के आत्मा में भातृत्वमय निवास का निर्माण करने की जिम्मेदारी मिली है, जहाँ विभिन्नता वास करती है। संत अगुस्टीन के शब्दों में, “कलीसिया का निर्माण उन सभों के द्वारा होता है जो अपने भाई-बहनों के संग एकता में रहते और अपने पड़ोसी को प्रेम करते हैं।”