पोप : येसु में दूसरों के लिए आशा का द्वार बनें

पोप फ्रांसिस ने ख्रीस्त जयंती के जागरण समारोही मिस्सा में येसु में आशा बनाये रखते हुए दूसरों के लिए आशा का द्वार बनने का संदेश दिया।

पोप फ्रांसिस ने ख्रीस्त जयंती का रात्रि जागरण समारोही यूख्रारिस्तीय बलिदान संत पेत्रुस के महागिरजाघर में अर्पित किया।

पोप ने अपने प्रवचन में कहा कि प्रभु का एक दूत, रात के अंधकार चमकती ज्योति में चरवाहों को आनंद का संदेश सुनाया,“देखों मैं तुम्हें सभी लोगों के लिए बड़े आनंद का सुसमाचार सुनता हूँ। आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिए एक मुक्तिदाता, प्रभु मसीह का जन्म हुआ है।” गरीबों के लिए आश्चर्य के बीच और दूतों के गीतों में, धरती में हम स्वर्ग को खुला पाते हैं, ईश्वर अपने को हमारी तरह एक बनाते हैं, वे हमारे बीच उतरकर आते जिससे वे हमें ऊपर उठा सकें और हमें पिता के आलिंगन में वापस ले सकें।

हमारी आशा जीवित है
यही हमारी आशा है। एम्मानुएल, ईश्वर हमारे साथ हैं। अनंत महान ईश्वर हमारे लिए छोटा बनते हैं, दिव्य ज्योति अंधकारमय दुनिया में चमकती है, ईश्वर की स्वर्गीय महिमा को हम एक बालक के छोटेपन में इस पृथ्वी पर पाते हैं। यदि ईश्वर हमारी हृदयरूपी छोटी चरनी में भी आते हैं तो हम कह सकते हैं, की आशा खत्म नहीं हुई है, हमारी आशा जीवित है, और यह हमारे पूरी जीवन को सदैव ढ़क देती है।

प्रिय भाइयो और बहनों, पवित्र द्वार को खोलते हुए हमने एक नये जंयती वर्ष का उद्घाटन किया है, हममें से प्रत्येक जन इस रहस्यात्मक कृपा की घटना में प्रवेश कर सकता है। यही वह रात है जहाँ हम दुनिया के लिए आशा के द्वार को खुला पाते हैं, यही वह रात है जहाँ ईश्वर हम प्रत्येक जन से कहते हैं, “तुम्हारे लिए  भी आशा है।”

ईश्वर का निमंत्रण
इस उपहार का स्वागत करने के लिए हमें भी आश्चर्य में चरवाहों के संग बेतलेहम जाने को निमंत्रण देता है। पोप ने कहा कि सुसमाचार हमें कहता है कि स्वर्गदूत के संदेश सुनने के उपरांत वे “शीघ्रता से चल पड़े।” यह हमारे लिए खोई हुए आशा को पाने की निशानी है, जिसे हम अपने अंदर नवीन बनाते हैं, हम इसे अपने समय और दुनिया की हताशी में बिना देर बोने को कहे जाते हैं। हम देर न करें, हम न रूकें, लेकिन हम अपने को आनंद के सुसमाचार से आकर्षित होने दें।

हम परिवर्तन लायें
पोप ने कहा कि हम बिना देर किये, सचेत हृदय से, मिलन हेतु तैयार, आशा को हमारे जीवन में परिभाषित करने की योग्यता लिए हम ईश्वर को देखने चलें जो जन्म लिये हैं। ख्रीस्तीय आशा, प्रतीक्षा का कोई सुखद अंत नहीं है बल्कि यह हमारी पीड़ित और करहाती धरती में ईश्वरीय एक प्रतिज्ञा का स्वागत करना है। अतः यह हमें देरी नहीं करने को कहती है, यह हमें अपनी आदतों में पड़े रहने को नहीं, न ही सुस्तीपन और चलता है मनोभावना को धारण करने को अग्रसर करती है। यह हमें जैसे कि संत अगुस्टीन कहते हैं, कहती है कि हम उन चीजों से दूर हों जो हमारे लिए उचित नहीं हैं औऱ हम अपने में परिवर्तन लाने का साहस करें, यह हमें सच्चाई की खोज में तीर्थयात्री बनने को कहती है। यह हमें वे नर औऱ नारियाँ  बनने को कहती है जो अपने को ईश्वर के सपने से विचलित होने देते हैं, एक नयी दुनिया के सपने से, जहाँ शांति और न्याय विराजती है।

आशा की मांग
हम चरवाहों के उदाहरण से सीखें- इस रात जो आशा पैदा होती है वह गतिहीन लोगों के आलस्य और उन लोगों के उदासीनता को बर्दाश्त नहीं करती है जो अपने स्वयं में आराम से जीवनयापन करते हैं, यह उन लोगों के झूठे विवेक को स्वीकार नहीं करती है जो खुद से समझौता करने के डर से अपने कार्य को करने हेतु निष्ठावान नहीं होते हैं। यह उन्हें नहीं स्वीकारती जो केवल अपने बारे में सोचते हैं, यह उन लोगों के शांत जीवन को स्वीकार नहीं करती है जो गरीबों के खिलाफ होने वाली बुराई और अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाते हैं। इसके विपरीत, ख्रीस्तीय आशा, हमें उस राज्य के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने को आमंत्रित करती है जो प्रस्फुटित होता और बढ़ता है, यह हमसे जिम्मेदारी और हमारी करुणा में इस आशा की प्रतिज्ञा को साहस में आगे ले जाने की मांग करती है।

एक प्रार्थना
पोप ने कहा कि इस दुनिया में हमारे जीवन की स्थिति और मानसिकता की चर्चा करते हुए एक नेक पुरोहित अपनी ख्रीस्त जयंती प्रार्थना में लिखते हैं। “ हे प्रभु, मैं तुझ से थोड़ी प्रताड़ना की मांग करता हूँ, कुछ विचलित करने वाली चीजें, कुछ पीड़ा की। ख्रीस्त जंयती में मैं अपने में असंतुष्टि का अनुभव करूँ। खुशी लेकिन साथ ही असंतोष की अनूभूति। तेरे कार्य हेतु खुशी, लेकिन मेरे प्रत्युत्तर के लिए असंतुष्टि। कृपया हमसे झूठी शांति को दूर कर और हमारी “चरनी” जो सदैव भरी रहती है, इसमें कांटों का एक गुच्छा डाला।  हमारे हृदयों में “कुछ और बड़ी चीजों” की चाह उत्पन्न कर।”

एक विशेष कामना
ख्रीस्तीय आशा विशिष्ट रुप में  यह “कुछ और चीज” की कामना है जो हमें बिना देरी आगे ले चलती है। वास्तव में, ख्रीस्तीय के शिष्यों स्वरुप हमें उनमें अपनी सबसे बड़ी आशा को पाने की मांग की जाती है, जिससे हम दुनिया के अंधाकर में तीर्थयात्रियों की भांति बिना देर अपने कार्यो को करें।