नेपल्स विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिमण्डल से पोप फ्राँसिस

इटली के नेपल्स शहर स्थित फ्रेडरिक द्वितीय विश्वविद्यालय के दंत चिकित्सा विभाग के प्रतिनिधिमण्डल ने शुक्रवार को पोप फ्राँसिस का साक्षात्कार कर उनका सन्देश सुना।  

शानदार नैदानिक ​​परंपरा
सन्देश में पोप कहा, "नेपल्स विश्वविद्यालय की स्थापना की आठ सौवीं वर्षगाँठ मनाने पर मैं आपको सबको हार्दिक बधाई देते हुए खुश हूँ। यह शैक्षणिक संस्थान अभी भी स्वाबियाई सम्राट फ्रेडरिक द्वितीय के नाम से जारी है, जिन्होंने नेपल्स शहर में प्रथम स्टूडियुम जेनराले अर्थात् सामान्य अध्ययन की आधारशिला रखकर विश्व के सर्वाधिक प्राचीन  विश्वविद्यालयों में से एक की संस्थापना की थी।"  

दंत चिकित्सा विभाग के छात्र डॉक्टरों एवं प्राध्यापकों से पोप ने कहा, "आप जो वर्षगांठ मना रहे हैं वह विशेष रूप से आप डॉक्टरों को उस शानदार नैदानिक ​​परंपरा को याद करने के लिए आमंत्रित करती है जिसके आप उत्तराधिकारी हैं और जिसे विश्वविद्यालय के आदर्श वाक्य में अच्छी तरह से संक्षेपित किया गया है जो ग्रीक हिप्पोक्रेट्स के पाठ को लैटिन स्क्रिबोनियस के अधिकार के साथ जोड़ता है: "पहला नुकसान न पहुँचाना, दूसरा सावधान रहना, तीसरा उपचार करना। सबसे पहले कोई नुकसान न पहुँचाना, फिर देखभाल करना और फिर ठीक करना"। सन्त पापा ने कहा कि यह एक उत्तम कार्यक्रम है जो सदैव समसामयिक रहता है।

भले समारी के सदृश
पोप ने कहा, "नुकसान न पहुँचायें: यह अनुस्मारक अनावश्यक लग सकता है, लेकिन इसके बजाय यह एक स्वस्थ यथार्थवाद का अनुपालन है: सबसे पहले तो यह रोगी की पीड़ा को और अधिक न बढ़ाने के बारे में है। फिर, ध्यान रखें: एक सर्वोत्कृष्ट सुसमाचार प्रचार कार्य है, जो भले सामरी के सदृश है; लेकिन इस कार्य को "ईश्वर की  शैली" के साथ किया जाना आवश्यक है, जो है, निकटता, करुणा और कोमलता। इसके अलावा, चिकित्सक यह भी ध्यान में रखें कि अखण्ड व्यक्ति का इलाज किया जाता है, न कि केवल एक हिस्से का।"

पोप ने कहा कि चिकित्सकों का अन्तिम लक्ष्य चंगाई प्रदान करना है, जिसमें चिकित्सक वह काम करते हैं जो स्वयं प्रभु येसु ख्रीस्त ने किया था, इसमें वे येसु ख्रीस्त के समान हो सकते हैं, जिन्होंने लोगों की सभी प्रकार की बीमारियों और दुर्बलताओं को ठीक किया। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा पुस्तक का उल्लेख कर दन्त चिकित्सकों से सन्त पापा ने कहा,  "आप उन लोगों के प्रति किए गए अच्छे काम से खुश रहें जो पीड़ित हैं।"  

मानवीय गरिमा और नैतिकता ध्यान में रहे
पोप ने कहा, "शास्त्रीय ज्ञान आज तीव्र गति से विकसित हो रही तकनीकी से मिलता है, जिसे कभी भी नैतिकता के बिना आगे नहीं बढ़ना चाहिए क्योंकि इसमें मानवीय गरिमा की उपेक्षा होगी, जो हर किसी के लिए समान है।"

उन्होंने कहा कि नैतिकता के अभाव में चिकित्सा नवजात जीवन, पीड़ित जीवन और निराश्रित जीवन की भलाई के लिए ख़ुद को समर्पित करने के बजाय स्वतः को बाजार और विचारधाराओं के हितों के लिए बेचने का जोखिम उठाती है। उन्होंने कहा, "डॉक्टर के अस्तित्व का लक्ष्य बीमारी और पीड़ा का इलाज करना है और उन्हें सदैव यही करना चाहिये। किसी भी जीवन को त्यागना नहीं चाहिए।"

पोप ने चिकित्सकों के काम की योग्यता और निरंतरता के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया और उनका आह्वान किया कि वे एक ऐसे विज्ञान को विकसित करें जो हमेशा व्यक्ति की सेवा के प्रति समर्पित रहे।