नाबालिगों की सुरक्षा के लिए परमधर्मपीठीय आयोग का अधिवेशन

पोलैण्ड के क्राकोव शहर में नाबालिगों की सुरक्षा के लिए गठित परमधर्मपीठीय आयोग ने शुक्रवार को अपनी शरदकालीन पूर्ण सभा का समापन किया।
पोलैण्ड के क्राकोव शहर में नाबालिगों की सुरक्षा के लिए गठित परमधर्मपीठीय आयोग ने शुक्रवार को अपनी शरदकालीन पूर्ण सभा का समापन किया, जिसमें कलीसिया के भीतर सुरक्षा को आगे बढ़ाने पर केंद्रित पांच दिवसीय संवाद, रणनीतिक योजना और मनन-चिंतन शामिल रहा।
29 सितंबर से 3 अक्टूबर तक आयोजित इस सम्मेलन में आयोग के सदस्य, विशेषज्ञ और क्षेत्रीय प्रतिनिधि विश्व पत्र "प्रेडिकाते इवांजेलियम" में उल्लिखित अधिदेश को आगे बढ़ाने के लिए एकत्रित हुए। इस वर्ष की शुरुआत में अध्यक्ष नियुक्त किए गए महाधर्माध्यक्ष थिबॉल्ट वर्नी के नेतृत्व में यह पहली पूर्ण सभा थी।
महाधर्माध्यक्ष थिबॉल्ट वर्नी
पूर्णकालिक सभा का उदघाटन करते हुए महाधर्माध्यक्ष वर्नी ने कलीसिया की पहचान और मिशन के अभिन्न अंग के रूप में सुरक्षा के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता का आह्वान किया। उन्होंने चार रणनीतिक उद्देश्यों को रेखांकित किया: सार्वभौमिक सुरक्षा संस्कृति को बढ़ावा देना, सार्वभौमिक दिशानिर्देश के माध्यम से एक साझा भाषा विकसित करना, वार्षिक रिपोर्ट के माध्यम से क्षेत्रीय नेटवर्क को मजबूत करना और नागरिक संस्थानों के साथ संवाद को प्रोत्साहित करना।
महाधर्माध्यक्ष वर्नी ने पीड़ितों और उत्तरजीवियों की बात सुनने, पारदर्शिता को बढ़ावा देने और जवाबदेही पर बल दिया। उन्होंने आयोग के सदस्यों को "साहस और करुणा के साथ" कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया, और अनसुलझी सुरक्षा चुनौतियों की तात्कालिकता और कलीसिया से नैतिक स्पष्टता और प्रेरितिक देखभाल की वैश्विक अपेक्षा पर ज़ोर दिया।
पीड़ितों पर ध्यान
आयोग ने उन्नत नयाचार और प्रभावकारी प्रशिक्षण के माध्यम से पीड़ितों और उत्तरजीवियों की आवाज को केन्द्र में रखने की अपनी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की। सभा में चर्चाएं "मनपरिवर्तन और न्याय" पर केंद्रित थीं, जो उपचार के आवश्यक तत्वों के रूप में सत्य, न्याय, क्षतिपूर्ति और संस्थागत सुधार पर जोर देने वाली एक संरचना है।
एक दूसरे से सीखें
महाधर्माध्यक्ष वर्नी ने इस तथ्य भी ध्यान केन्द्रित किया गया कि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अपनाई जानेवाली रणनीतियाँ मूल्यवान सबक प्रदान कर सकती हैं। उन्होंने कहा, "यह सुनने और पीड़ितों के साथ विनम्रतापूर्वक चलने के बारे में है। पीड़ितों की बात सुनकर ही हम समस्याओं का समाधान पा सकते हैं, क्योंकि कलीसिया समाज से अलग नहीं है—वह समाज के साथ चलती है; वह समाज में समाहित है। सुरक्षा की इस संस्कृति को समाज के साथ संवाद में जीना चाहिए, दूरदर्शिता और सुरक्षा के संदर्भ में उससे सीखना चाहिए।"
उन्होंने कहाः "हमें एक-दूसरे से सीखते रहना चाहिए और कभी एक-दूसरे का विरोध नहीं करना चाहिए। धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों और धार्मिक सभाओं के साथ सहायकता और भाईचारे का सहयोग महत्वपूर्ण है।”