तेबेह की ओर से शांति की अपील

फिलिस्तीन के अंतिम ख्रीस्तीय गांव पर कई सप्ताह तक चले हमलों के बाद, पवित्र भूमि के संरक्षक फादर इब्राहिम फाल्तस ने शांति के लिए भावुक अपील की है।
अरबी में तेबेह का अर्थ है “अच्छा”। लेकिन, फिलीस्तीनी गाँव में जिसके सभी निवासी ख्रीस्तीय हैं फिलहाल कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है।
सोमवार, 14 जुलाई को, पवित्र भूमि की ख्रीस्तीय कलीसियाओं के प्रमुखों, राजदूतों और वाणिज्यदूतों के साथ, तेबेह के निवासियों और पुरोहितों के प्रति अपनी निकटता एवं एकजुटता व्यक्त करने आए, जो हफ्तों से सैकड़ों इज्राएली निवासियों के भीषण हमलों का सामना कर रहे हैं। ये उनके घरों और जमीनों पर कब्जा करने की हिंसक कोशिश कर रहे हैं।
तेबेह में लगभग 1,500 निवासी हैं, जो लैटिन, ग्रीक ऑर्थोडॉक्स और मेलकाइट के अलग-अलग ख्रीस्तीय समुदायों से जुड़े हैं। उन्होंने एक साथ उपस्थित होकर, उन लोगों के भाईचारे पूर्ण समर्थन के लिए अपना आभार व्यक्त किया जो उनकी पीड़ा को सचमुच समझते हैं।
जैसे ही आप येरूसालेम के उत्तर से तेबेह पहुँचते हैं, गाँव एक जाना-पहचाना और स्वागत करनेवाला दृश्य प्रस्तुत करता है: तीन गिरजाघरों के घंटाघर ऊपर उठे हैं, एक शांतिपूर्ण और एकजुट समुदाय पर नजर रखते हैं। और लोगों की आवाजों से—वयस्कों, बुजुर्गों और बच्चों की—आप उनके डर, उनके दर्द और पिछले हफ्तों के तनाव को सुन सकते थे।
इस क्षेत्र में कई लोगों की मौत हुई है, कई लोग घायल हैं। लोग अपने घरों से भागने के लिए मजबूर हैं। इमारत ध्वस्त हो चुके हैं, खेत में आग लगा दिए गये हैं। ये निहत्थे नागरिकों के खिलाफ कायरतापूर्ण हमले हैं - वे लोग जो सैकड़ों वर्षों से अपने पूर्वजों के धर्म के प्रति वफादार रहे हैं, उस देश में जहां अभी भी येसु के समय की परंपराएँ मौजूद हैं।
फिर भी घृणा एवं बदला का एक शब्द भी उच्चारित नहीं, सिर्फ मदद के लिए हार्दिक अपील, ताकि वे अपनी मातृभूमि में शांति से जी सके।
पवित्र भूमि पीड़ित है—अपने प्रत्येक निवासी में, अपवित्र भूमि के प्रत्येक टुकड़े में, उस हिंसा में जो उसे लगातार घायल कर रही है। गज़ा में, नरसंहार जारी है। लोग कतार में खड़े होकर मर रहे हैं, सिर्फ़ खाना माँगने के लिए अपमानित हैं। बच्चे सिर्फ "बहन जल" के पास जाने के लिए मर रहे हैं, जो सभी के लिए जीवन और आराम का स्रोत है।
वेस्टबैंक में खासकर, बेतलेहेम में, रोजमर्रा की जिंदगी असहनीय होती जा रही है। स्थानीय ख्रीस्तीयों को सुरक्षा और विदेश में काम की तलाश में अपनी मातृभूमि छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। वे अपने घरों में रहना चाहते हैं, अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखना चाहते हैं। लेकिन लगातार उत्पीड़न और निवासियों बेरोकटोक बसने वालों के हमले, जो बिना किसी दंड के किए जाते हैं, और साथ ही आवाजाही पर लगातार कड़े होते प्रतिबंध, इसे असंभव बना देते हैं।
दमिश्क की कलीसिया में हाल ही में हुए नरसंहार और तेबेह तथा वेस्ट बैंक में जो कुछ हो रहा है, उसका मतलब यह नहीं कि जो हो रहा है वह एक 'धार्मिक युद्ध' है। हाँ, पवित्र स्थलों पर हिंसा का उल्लंघन और अपवित्रीकरण देखना हृदयविदारक है—लेकिन सबसे बढ़कर, हमें निर्दोष, असहाय मनुष्यों के जीवन की रक्षा और सुरक्षा करनी होगी।
पवित्र भूमि में जो कुछ हो रहा है उसकी गंभीरता सर्वविदित है। तस्वीरें और रिपोर्टें चौंकानेवाली और क्रोधित करनेवाली दोनों हैं। हम सभी को उम्मीद थी कि विगत दिनों की अंतर्राष्ट्रीय बैठकें इस स्थिति की बेतुकी पन को समाप्त कर देंगी—लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ बढ़ती मौतों को रोकने में असमर्थ प्रतीत होती हैं, और केवल हमारी साझा मानवता की विफलता को ही रेखांकित करती हैं।
वैश्विक समुदाय में आवश्यक जिम्मेदारी का अभाव है, और वह अक्सर स्वार्थ और पाखंड में बह जाता है।
शांति वार्ता आशा और निराशा के बीच झूल रही है। युद्धविराम की मांग करनेवालों को ईमानदारी और तत्परता के साथ ऐसा करना चाहिए, और उनका लक्ष्य हिंसा को रोकना होना चाहिए—उन लोगों को और अधिक कष्ट सहने से बचाना चाहिए जिन्होंने पहले ही बहुत कुछ सह लिया है।
भूख और प्यास का अंत हो। पूरी जनता को अपनी ही जमीन के एक छोटे से कोने में सीमित करने का लक्ष्य त्यागा जाए।
अरबी में तेबेह का अर्थ "अच्छा" होता है—और इस अंतिम पूर्णतः ख्रीस्तीय गाँव से भी उतना ही अच्छा संदेश आता है: पवित्र भूमि के सभी लोगों के लिए एकता और शांति। ख्रीस्तीय, जो अब ईसा मसीह की भूमि में अल्पसंख्यक हैं, दो हजार से भी ज्यादा वर्षों से उद्धारकर्ता के वादों को आगे बढ़ा रहे हैं। तेबेह पीछे नहीं हटा है—यह शांति के राजकुमार की भूमि में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की आशा में खुला, स्वागत करनेवाला और एकजुट बना हुआ है।