छोटानागपुर के प्रेरित ईश सेवक फाo कॉन्स्टेंट लीवन्स के आगमन की 140वीं वर्षगांठ

जमगाई ग्राम में स्थित छोटानागपुर के प्रेरित ईश सेवक फाo कॉन्स्टेंट लीवन्स येo सo के आगमन के स्मरण में संस्थापित तीर्थस्थल पर ईश सेवक फाo कॉन्स्टेंट लीवन्स येo सo के आगमन की 140वीं वर्षगांठ मनाई गयी। इस उपलक्ष्य पर रांची महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विंसेंट आईंद की अगुवाई में समारोही मिस्सा बलिदान अर्पित किया गया।
रविवार 23 मार्च 2025: रविवार को रांची महाधर्मप्रांत के हुलहुंडू पल्ली के अंतर्गत जमगाईं में स्थित तीर्थस्थल पर छोटानागपुर के प्रेरित ईश सेवक फाo कॉन्स्टेंट लीवन्स के आगमन की 140वीं वर्षगांठ मनाई गई। इस अवसर पर हज़ारों विश्वासी तीर्थयात्री के रूप में आए एवं प्रार्थना समारोह में शामिल हुए। तीर्थस्थल पर तीर्थयात्रियों के लिए पापस्वीकार संस्कार की भी व्यवस्था की गई थी।
रांची महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष विंसेंट आईंद ने इस अवसर पर समारोही मिस्सा बलिदान की अगुवाई की। उन्होंने मिस्सा बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि "छोटानागपुर के प्रेरित ईश सेवक फाo कॉन्स्टेंट लीवन्स ने एक मिशनरी बन कर शिक्षा, न्याय एवं विश्वास का आग जलाया और"आग जलती रहे" का नारा दिया। उसी आग को हमारे जीवन में जलाए रखने की जिम्मेदारी हम प्रत्येक की है।" उन्होंने यह भी बताया कि उनके आगमन से ही हमारे आदिवासियों की ज़मीन बची रही, हम शिक्षित हो पाए हैं और हम अपना अस्तित्व संभाल कर रख पाने में सक्षम हुए हैं। दो दिनों से बारिश होने के बावजूद हज़ारों की संख्या में ख्रीस्त विश्वासी इस समारोह में शामिल हुए। महाधर्माध्यक्ष विंसेंट आईंद ने लोगों के विश्वास एवं उत्साह की सराहना की। जमगाईं एवं हुलहुंडू पल्ली के सभी लोगों को उनके अथक प्रयास एवं कार्य के लिए कृतज्ञता व्यक्त की।
छोटानागपुर के प्रेरित ईश सेवक फाo कॉन्स्टेंट लीवन्स के आगमन के 140वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित तीर्थयात्रा एवं समारोही मिस्सा बलिदान में महाधर्माध्यक्ष विंसेंट आईंद, रांची येसु धर्मसंघ के प्रोविंशियल फाo अजीत कुमार खेस्स , टीo ओo आरo रांची के प्रोविंशियल फाo मनोज वेंगातनम, हुलहुंडू के पल्ली पुरोहित फाo विंसेंट मिंज, तीर्थस्थल के निर्देशक फ़ाo एडविन मिंज, 55 पुरोहितगण, धर्मबहनें एवं हज़ारों की संख्या में ख्रीस्तीय विश्वासी उपस्थित रहे।
छोटानागपुर के प्रेरित ईश-सेवक फा. लीवन्स की संक्षिप्त जीवनी (1856-1893)
यूरोप महादेश के बेल्जियम में पश्चिमी फ्लैंडर्स प्रदेश में मोर्सलेड नामक एक गाँव है। इसी गाँव में जोन लीवन्स और बारबारा डेपूयित नामक एक धर्मी दम्पति रहते थे। यह एक साधारण परिवार था और खेती-बारी द्वारा उनकी जीविका चलती थी। इसी परिवार में सातवीं संतान के रूप में फादर कॉन्स्टेंट लीवन्स का जन्म 11 अप्रैल 1856 ई. में हुआ। बाद में इस परिवार में और चार संतान हुए। इस तरह माता-पिता, पाँच पुत्र और छः पुत्रियों से मिलकर 11 सदस्यों का एक बड़ा परिवार बना। इनका परिवार गाँव के अन्य परिवारों के लिए आदर्श था क्योंकि वे बड़ा परिवार होने पर भी बड़े मेल-प्रेम से एक दूसरे की परवाह करते हुए श्रद्धा एवं प्रेम से रहते थे। इनके परिवार में रोज दिन शाम के समय एक-साथ पारिवारिक प्रार्थना होती थी। इसी का फल रहा कि आगे चलकर ईश-सेवक फादर कॉन्स्टेंट लीवन्स, महान मिशनरी छोटानागपुर के प्रेरित कहलाए:
कोन्सटन्ट लीवन्स का बचपन
सात साल की उम्र में कोन्सटेंट लीवन्स पल्ली के निकट सिस्टरों के विद्यालय से प्रारंभिक पढ़ाई शुरू हुई। 11 साल की उम्र में अच्छी तैयारी करके इन्होंने पहला परमप्रसाद ग्रहण किया। इसी वर्ष उनकी माँ की तबीयत बिगड़ी और उनका देहांत हो गया। उसकी माँ उसके लिए पूरी दुनिया थी इसलिए उसकी मृत्यु लीवन्स को पूरी तरह से झकझोर दिया। वह माता के वियोग में विद्यालय जाना बन्द कर दिया। वह घर में रहकर घर और खेतों के कामों में मदद करने लगा। पशुओं को चराना, उन्हें दाना पानी देना और गोशालों की साफ-सफाई करना उनकी निदचर्या बन गई। हर काम वह खुशी से करता था। कोई भी काम उसे बोझ या भारी नहीं लगता था। खुले खेतों में काम करने और पेड़ों की छाया में मवेशियों की देख-रेख करते हुए उन्हें प्रकृति से अद्भुत लगाव हो गया था। इसी कारण अकेले रहने पर भी उन्हें अकेलापन का एहसास नहीं होता था। अवसर मिलने पर वह अपने हम उम्र के बच्चों को उदारतापूर्वक धर्म की शिक्षा दिया करता था। कभी-कभी उन्हें घोड़ों की देखभाल करने का मौका मिला। इसका लाभ लेते हुए वह घुड़सवारी सीखने का प्रयास भी करता था। इसी तरह दो तीन साल बीत गये।
कॉन्स्टेंट लीवन्स के लिए ईश्वर की योजना
ईश्वर की योजना विचित्र होती है। उनकी पल्ली में अम्पे नामक एक नया पल्ली पुरोहित का आगमन हुआ और उन्होंने अपने पल्ली वासियों को अपने प्रवचनों से बहुत प्रभावित किया। उन्होंने नवयुवकों को पुरोहित बनने के लिए चुनौती दी। उनके प्रवचन से प्रभावित होकर फादर कॉन्स्टेंट लीवन्स के मन में पुरोहित बनने की लालसा जगी। जब यह बात उनके पल्ली के अन्य पुरोहितों तक आयी तो वे बहुत खुश हुए और उन्होंने पढ़ाई फिर से जारी करने की सलाह दी। इतना ही नहीं उनकी पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद की व्यवस्था भी कर दी। इस तरह तीन साल बाद फिर से वह अपनी पढ़ाई शुरू किया। प्रारंभ में उन्हें बहुत दिक्कत हुई, पर पुरोहित बनने की ललक, उनको लगातार लगे रहने के लिए प्रेरित करता रहा। साथ ही वह खूब प्रार्थना करता था। धीरे-धीरे उनकी पढ़ाई-लिखाई में सुधार हुई और कुछ वर्षों के अंतराल वह अपने को इस काबिल कर लिया कि उन्हें कई पुरस्कार भी मिले। वह सेमेनरी गया जहाँ उन्होंने अपनी पुरोहित बनने की पढ़ाई प्रारंभ की।