केरल में प्रवासियों के लिए आशा की ज्योति के वाहक
सिस्टर ग्रेसी थोम्ब्राकुडिल एससीएन ने विभिन्न धर्मों के लोगों की सेवा करना अपना मिशन बना लिया है जो एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करते हैं। वे उन्हें एक परिवर्तनकारी यात्रा में सहायता करते हैं जो उत्पीड़न से सशक्तिकरण की ओर ले जाती है। उनके उदाहरण ने कई अन्य धर्मसमाजियों, लोकधर्मियों और गैर-सरकारी संगठनों को प्रवासियों के मुद्दे को उठाने के लिए प्रेरित किया है।
परिवार में तीसरी संतान के रूप में जन्मी सिस्टर ग्रेसी थोम्ब्राकुडील, केरल से हैं और अब नाज़रेथ की चैरिटी की धर्मबहन (एससीएन) बन चुकी हैं।
अपने धर्मसंघीय जीवन के शुरू के वर्षों में सिस्टर ग्रेसी ने झारखंड के संथाली आदिवासी लोगों के साथ काम किया, उन्हें शिक्षित और सशक्त बनाया।
प्रवासियों की दुर्दशा
1990 के दशक के उत्तरार्ध में, भारत ने रोजगार और वित्तीय स्थिरता की तलाश में उत्तरी राज्यों से दक्षिण, विशेष रूप से केरल में प्रवासियों की महत्वपूर्ण वृद्धि देखी। हालाँकि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ने उनकी जरूरतों को पूरा किया, लेकिन उन्हें अक्सर स्थानीय निवासियों से भेदभाव का सामना करना पड़ा।
बहुत से लोग छोटे, भीड़ भरे अपार्टमेंट में रहते थे, जहाँ मलिकों द्वारा महंगी दरों पर न्यूनतम सुविधाएँ उपलब्ध होती थीं। वे अक्सर आगंतुकों पर प्रतिबंध लगाते, अचानक आकर यह सुनिश्चित करने के लिए चप्पलों की संख्या गिनते कि कोई अतिरिक्त व्यक्ति मौजूद तो नहीं है।
काम के दौरान ठेकेदार बहुत ज़्यादा काम की मांग करते और अक्सर छोटी-छोटी गलतियों के लिए गाली-गलौज करते थे। प्रवासियों को बिना आराम के दिन और सख्त समय-सीमा के साथ काम करने के लिए मजबूर किया जाता था, उन्हें आराम करने का कोई मौका नहीं मिलता था। कई प्रवासियों का वेतन काट लिया जाता था, जिससे वे असुरक्षित हो गए और नौकरी से निकाले जाने एवं अपमान के डर से, अपने परिवारों के अस्तित्व के लिए उत्पीड़न सहते थे।
प्रवासियों की पुकार का जवाब
इन आर्थिक प्रवासियों की पुकार पर ध्यान देते हुए, भारत में सेवारत येसु संघी पुरोहितों ने नाज़रेथ की धर्मबहनों के साथ मिलकर उनके लिए एक प्रेरिताई की शुरुआत की।
सिस्टर ग्रेसी को समाज सेवी नियुक्त किया गया और आदिवासी संस्कृतियों एवं भाषाओं, विशेष रूप से ‘संथाली’ तथा ‘हो’ के अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए, वे इन लोगों को उनके संकट से बचाने में जुट गईं।
अपने प्रयास के बल पर सिस्टर ग्रेसी काथलिक प्रवासियों को पवित्र मिस्सा एवं सांस्कृतिक उत्सवों में एकत्रित करने लगी। वे वर्ष 2015 से ही प्रवासियों की देखभाल कर रही हैं, चाहे उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें सरकारी योजनाओं के बारे ज्ञान मिले, स्वास्थ्य सेवा तक उनकी पहुंच हो, तथा कार्यस्थल या उनके निवास पर किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार की स्थिति में शिकायत दर्ज कराने की क्षमता हो।
आरम्भिक बदलाव
केरल राज्य में प्रवासियों के साथ अपने शुरूआती कार्य में, सिस्टर ग्रेसी ने प्रवासियों के बारे में स्थानीय लोगों की धारणा में एक आदर्श बदलाव को बढ़ावा दिया।
शुरू में इन प्रवासियों को स्थानीय मलयाली लोगों से भेदभाव का सामना करना पड़ता था जिसके कारण स्थानीय लोगों एवं प्रवासियों में भारी दरार दिखाई देता था।
इस वास्तविकता को देखते हुए, सिस्टर ग्रेसी ने एक मंच की स्थापना की जिसने स्थानीय निवासियों को, जो पहले निष्क्रिय पर्यवेक्षक थे, प्रवासियों के समर्थन में स्वयंसेवक के रूप में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने केरल के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया, स्थानीय पुरोहितों एवं धर्मसंघियों को प्रवासियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने में मदद की।
रास्ते में बाधाएँ
हाशिये पर पड़े लोगों के लिए अपने मिशन में, सिस्टर ग्रेसी को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। एक चुनौती प्रवासियों की बदलती संख्या है, जो काम की निरंतरता को प्रभावित करती है।
जब उन्होंने अपना काम शुरू किया तो कुछ ठेकेदार सिस्टर ग्रेसी और उनकी टीम से खुश नहीं हुए जो प्रवासियों के न्याय के लिए काम कर रहे थे।
फिर भी, कई वर्षों के सेवाकाल के बाद, प्रवासियों को स्वयं शिकायत दर्ज कराने का अधिकार मिल गया और उन्होंने किसी भी कीमत पर अन्याय बर्दाश्त न करने की सीख ले ली है।
प्रवासियों की माता
केरल में प्रवासियों को सिस्टर ग्रेसी में अपना घर मिल गया है, और वे कोझिकोड जिले के कई लोगों के लिए एक माँ और आशा की किरण बन गई हैं।
सिस्टर ग्रसी 28 अगस्त, 2024 को आमदर्शन के दौरान संत पापा फ्राँसिस के आह्वान का सार प्रस्तुत करती हैं। उस दिन संत पापा ने एक “नए और गहन दृष्टिकोण” का आह्वान किया था जो आशा की तलाश में सीमाओं को पार करनेवालों के चेहरों और कहानियों को गले लगाता है।