पोप - घमंड बुराइयों की रानी है

पोप फ्रांसिस ने विश्व के भिन्न देशों से आये हुए विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग बुधवारीय आमदर्शन समारोह में भाग लिया और घमंड पर धर्मशिक्षा दी।

पोप ने सबों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात। स्वास्थ्य संबंधी कारणों से आज की धर्मशिक्षा को मेरे सहायक मान्यवर पढ़ेंगे।  

गुणों और अवगुणों पर धर्मशिक्षा माला की कड़ी में आज हम अंतिम बुराई घमंड पर चर्चा करेंगे। प्राचीन यूनानी इसे एक शब्द में परिभाषित करते जिसे “अत्यधिक वैभव” के रुप अनुवाद किया जा सकता है। वास्तव में, घमंड अपने में स्वयं की प्रतिष्ठा, दंभ, दिखावा है। हम इसे अवगुणों की उस श्रृखंला में भी पाते हैं जिसकी चर्चा करते हुए येसु कहते हैं कि बुराइयाँ मनुष्य के हृदय से निकलती हैं। व्यक्ति जो अपने को अपनी असलियत से बढ़-चढ़ कर प्रस्तुत करता वह अपने में घमंडी है। ऐसा व्यक्ति अपने को दूसरों से अधिक पहचान दिये जाने की चाह रखता, सदैव अपनी अच्छाई की वाहवाही खोजता, दूसरों का तिरस्कार करता और उन्हें अपने से तुच्छ समझता है।

इस व्याख्या के अनुरूप हम यह देखते हैं कि घमंड अपने में अवगुण मिथ्याभिमान के निकट है जिसकी चर्चा हमने अपने विगत धर्मशिक्षा माला में की। यदि मिथ्याभिमान अपने में एक मानव अहम की बीमारी है जो बचनकने की भांति है तो वहीं उसकी तुलना में घमंड स्वयं में विनाश करने की क्षमता धारण करती है। मानव में बुराइयों का विश्लेषण करते हुए प्राचीन मठवासीगण बुराइयों में एक निश्चित क्रम को पाते हैं, जिसकी शुरूआत बड़ी बुराई जैसे कि पेटूपन से होते हुए एक अति विचलित करने वाले रक्षसी अवगुणों तक पहुंचती है। बुराइयों की कड़ी में घमंड सबसे बड़ी बुराई, बुराइयों की महारानी है। यह कोई संयोग की बात नहीं कि दांते अपनी डिवांन कोमेडी में इसे शुद्धिकरण स्थल में प्रथम स्थान पर रखते हैं- वे जो इस बुराई से ग्रस्ति हैं वे ईश्वर से दूर हैं, और एक ख्रीस्तीय हेतु किसी और भी संघर्ष से अधिक, इस बुराई से शुद्धिकारण के लिए अधिक समय और प्रयास की जरुरत होती है।

वास्तव में, इस बुराई में हम एक मूलभूत पाप को पाते हैं, जहाँ हम अपने को ईश्वर के बराबर होने की सोच रखते हैं। हम अपने पहले पुरखों में घमंड के इस पाप को देख सकते हैं जिसका जिक्र उत्पत्ति ग्रंथ हमारे लिए करता है। प्रलोभन हमें कहता है, “जब तुम उसे खाओगें तो तुम्हारी आंखें खुल जायेंगी और तुम ईश्वर की तरह हो जाओगे।” आध्यात्मिकता के लेखक विशेष रूप से हमारे दैनिक जीवन में घमंड के कारण होने वाले परिणामों के प्रति सजग कराते हैं। वे हम इस बात की ओर इंगित कराते हैं कि कैसे यह हमारे मानवीय संबंध में विखराव लाती है, इस बुराई का जहर किस तरह हमारे भ्रातृत्वमय संबंध को तोड़ देता है।

अतः हम यहाँ लक्षणों की एक लंबी सूची को पाते हैं जो घमंड के शिकार व्यक्ति के बारे में हमें बतलाता है। घमंड की इस बुराई को हम शारीरिक रुप में स्पष्ट देख सकते हैं घमंडी व्यक्त्ति अपने में अकड़बाज़ होता है, उसकी गर्दन तनी रहती है अर्थात वह उसे नहीं मोड़ता है। ऐसे व्यक्ति आसानी से तिरस्कारपूर्ण निर्णय के लिए प्रेरित होता है- वह बिना किसी कारण के, दूसरों पर अपरिवर्तनीय निर्णय देता है, जो उसे निराशजनक, अयोग्य और अक्षम लगते हैं। अपनी अकड़ में, वह इस बात को भूल जाता है कि सुसमाचार में येसु ने हमें कुछेक नौतिक नियमों को दिया है, लेकिन उनमें से एक पर वह समझौता नहीं करता है- कभी भी न्याय न करो। आप इस बात का तब अनुभव करते हैं कि आप का सामना किसी घमंडी से हुआ है जब आप उसे कोई  सकारात्मक बातें कहते या कोई तुष्टि हीन बातें बोलते तो वह उस बात की प्रतिक्रिया में बहुत सारी बातें कहने लगता है, मानों किसी ने उसके गौरव को चोट पहुंचाया हो- वह अत्याधिक क्रोधित हो जाता, चिल्लाने लगता और दूसरों के संग संबंध विछेद कर लेता तथा उनके संग एक बुरा बर्ताव करने लगता है।

हम घमंड़ से ग्रस्ति व्यक्ति के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। हम उनसे बातें नहीं कर सकते हैं, उन्हें सुधारने की बातें तो दूर क्योंकि वे अपने को स्वीकार ही नहीं करते हैं। हमें उनके संग धैर्यपूर्ण ढ़ंग से पेश आने की जरुरत है क्योंकि स्वतः ही एक दिन उनका घमंड चूर होगा। एक इतालवी कहावत कहती है,“घमंड घोड़े पर सवार होकर जाती और पैदल लौटकर आती है।” सुसमाचार में, येसु बहुत से घमंडी लोगों का सामना करते हैं, और वे बहुत बार उनकी बुराई का उजागर करते हैं जो उसे अच्छी तरह छुपाकर रखने की कोशिश करते हैं। पेत्रुस को हम पूरी निष्ठा का प्रदर्शन करता पाते हैं, “चाहे हर कोई आप परित्याग करे, मैं नहीं करूंगा।” लेकिन मौत के भय की स्थिति में वह तुरंत दूसरों की तरह व्यवहार करने लगता है, जिसकी उसने कभी आशा नहीं की थी। इस भांति दूसरा पेत्रुस जो अपने चेहरे को उठा नहीं पाता लेकिन केवल आंसू बहाता है, येसु के द्वारा चंगा किया जाता और वह कलीसिया के बोझ को अपने में लेने हेतु तैयार होता है। वह अपने में एक सोच का दिखावा करता है जिसका दिखावा न करना बेहतर था, लेकिन वह विश्वासी शिष्य बन गया जैसे कि एक दृष्टांत कहता है, ”जिसे स्वामी अपनी संपत्ति  पर नियुक्त करेगा।”