कलीसिया सुखमृत्यु व सहायता प्राप्त आत्महत्या के खिलाफ़
वाटिकन स्थित जीवन सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमी के अध्यक्ष, महाधर्माध्यक्ष विन्चेन्सो पालिया ने "जीवन के अंत पर लघु शब्दकोश" शीर्षक से वाटिकन द्वारा प्रकाशित लेक्सिकॉन पर मीडिया रिपोर्टों के जवाब में, सुखमृत्यु और सहायता प्राप्त आत्महत्या के प्रति काथलिक कलीसिया के विरोध की पुष्टि की है।
महाधर्माध्यक्ष पालिया ने कहा कि काथलिक कलीसिया सहायता प्राप्त आत्महत्या और सुखमृत्यु का पूर्णतया विरोध करती है तथा प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से, सबसे कमज़ोर व्यक्तियों के जीवन के अधिकार की रक्षा करती है, साथ ही वह जीवन के अंतिम मुद्दों पर राजनीति के साथ सहयोग को प्रोत्साहन प्रदान करती है।
शब्दकोष, नैतिक मुद्दे के बारे में
उन्होंने "जीवन के अंत पर लघु शब्दकोश" में निहित कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण दिया और कहा कि यह शब्दकोश वाटिकन पब्लिशिंग हाउस "लेव" द्वारा प्रकाशित 88-पृष्ठों की शब्दावली है, जो जीवन के अंत से संबंधित वाद-विवाद पर नैतिक मुद्दों के बारे में है। इसमें सुखमृत्यु और सहायता प्राप्त आत्महत्या से लेकर उपशामक देखभाल और दाह संस्कार आदि विषय तक शामिल हैं।
जुलाई माह के आरंभ में प्रकाशित यह पुस्तिका हाल ही में जांच के दायरे में आई, इसलिये कि कुछ मीडिया आउटलेट्स ने इसमें परमधर्मपीठ द्वारा दी गई कथित "छूट" की बात की थी।
गुरुवार को महाधर्माध्यक्ष पालिया ने उक्त शब्दकोष की एक प्रति सन्त पापा फ्राँसिस के समक्ष प्रस्तुत की जिसके बाद महाधर्माध्यक्ष ने वाटिकन न्यूज़ से बातचीत में उक्त विषयों पर खुलासा किया तथा विगत 70 वर्षों से परमाध्यक्षीय धर्मशिक्षा में मूलबद्ध सिद्धान्तों का संकेत दिया।
जीवन सम्बन्धी धर्मशिक्षा
महाधर्माध्यक्ष ने बताया कि सन्त पापा फ्राँसिस ने जीवन सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमी तथा "जीवन के अंत पर लघु शब्दकोश" की सराहना की है। महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि जीवन के अंत का मुद्दा वास्तव में जटिल है, और कलीसिया के पास 1957 में सन्त पापा पियुस 12 वें से लेकर आज तक एक समृद्ध काथलिक कलीसियाई धर्मशिक्षा मौजूद है।
उन्होंने कहा, "जीवन की रक्षा हर क्षण पूर्ण रूप से की जानी चाहिए, न कि केवल कुछ खास मौकों पर। जीवन के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए, विशेष रूप से, कमज़ोर लोगों के लिए, ताकि आज के पुरुषों और महिलाओं के आत्मनिर्भरता और स्वायत्तता के दावे के पीछे छिपी “फेंकने की संस्कृति” का मुकाबला किया जा सके।"
परमधर्मपीठ का नया शब्दकोष रोगी के पोषण और जलयोजन के निलंबन की अनुमति देने की दिशा में पवित्र धर्मपीठ द्वारा किए गए बदलाव को दर्शाता है, ऐसा दावा करनेवालों को जवाब देते हुए महाधर्माध्यक्ष पालिया ने कहा, "मुझे याद है कि 1956 में सन्त पापा पियुस 12 वें ने कुछ गंभीर स्थितियों में वेंटिलेशन को निलंबित करने की अनुमति की पुष्टि की थी तथा 2007 में, विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त सम्बन्धी परमधर्मपीठीय परिषद ने मान्यता दी थी कि ऐसे उपचारों को कानूनी रूप से बंद किया जा सकता है अथवा शुरू नहीं किया जा सकता है, जिनमें "अत्यधिक बोझ या महत्वपूर्ण शारीरिक परेशानी" शामिल हो।"
असंगत उपचार अनुचित
महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि ये दो मानदंड जो असंगत उपचारों की परिभाषा का हिस्सा हैं, इन्हें निलंबित किया जा सकता है। यह एक ऐसा मूल्यांकन है जिसमें, जितना संभव हो सके, बीमार व्यक्ति की भागीदारी की आवश्यकता होती है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उक्त लेक्सिकॉन को इसकी संपूर्णता में पढ़ा जाना आवश्यक है।
महाधर्माध्यक्ष पालिया ने इस तथ्य को स्पष्ट किया कि काथलिक कलीसिया सुखमृत्यु और सहायता प्राप्त आत्महत्या के बिलकुल खिलाफ है, तथापि, उन्होंने कहा, "कलीसिया इस बात पर भी चिंतन करने को आमंत्रित करती है कि अनुचित हठ अथवा चिकित्सीय हठ, वास्तव में, रोगी-केंद्रित चिकित्सा और देखभाल की अभिव्यक्ति नहीं है।" उन्होंने कहा, "दुर्भाग्यवश, मृत्यु जीवन का एक आयाम है, यह अपरिहार्य है।"
“विधायी मध्यस्थता”
प्रकाशित लेक्सिकॉन में निहित “विधायी मध्यस्थता” शब्दावली को स्पष्ट करते हुए महाधर्माध्यक्ष पालिया ने कहा, "जीवन के अंत से जुड़े मौलिक और नाजुक मुद्दों पर कोई "स्वीकार्य मध्यस्थता" नहीं है, यह वांछनीय है कि इसपर उच्चतम संभव आम सहमति प्राप्त की जाए, जो विभिन्न संवेदनशीलताओं और धार्मिक विश्वासों पर सम्मानपूर्वक विचार करती हो। यह राजनीति का कार्य है। कलीसिया समाज की आम भलाई के लिए सहयोग कर सकती है, किन्तु कलीसिया की भूमिका कानूनों का मसौदा तैयार करने के बजाय लोगों के अन्तःकरण का निर्माण करना होता है।"