पोप: शांति सबसे प्रिय स्वप्न है, संवाद को उपजाऊ बनाकर इसे साकार करें

बांग्लादेश में अंतरधार्मिक सम्मेलन को प्रेषित अपने संदेश में पोप लियो 14वें ने अन्य धर्मों के साथ शांति के मार्ग पर चलने के लिए काथलिक कलीसिया की प्रतिबद्धता को फिर से दोहराया।
पोप लियो 14वें ने मंगलवार को बांग्लादेश के ढाका में 6-12 सितंबर को आयोजित “अंतरधार्मिक संवाद और सद्भाव पर सम्मेलन” को एक संदेश भेजा।
अंतरधार्मिक संवाद के लिए वाटिकन विभाग के प्रमुख कार्डिनल जॉर्ज कुवाकाड इस कार्यक्रम में पोप के संदेश पढ़े।
संत पापा ने प्रतिभागियों का अभिवादन करते हुए लिखा, “मैं चाहता हूँ कि आपको वही शांति मिले जो केवल ईश्वर से मिल सकती है – ऐसी शांति जो “अहिंसक और विनम्र हो, धैर्यवान और सहनशील हो” और जो “हमेशा करुणा का भाव रखती हो, और सबसे बढ़कर, दुःखी लोगों के करीब रहने की कोशिश करती हो।”
सभा की विषयवस्तु है, “भाई-बहनों के बीच सौहार्द की संस्कृति को बढ़ावा देना।”
पोप ने कहा, “वास्तव में, यह विषयवस्तु भाईचारे की भावना को दर्शाता है, जिसे अच्छी सोचवाले लोग अन्य धार्मिक परंपराओं के माननेवालों के साथ बढ़ावा देना चाहते हैं।”
सद्भाव और शांति बनाये रखने की जिम्मेदारी
उन्होंने आगे कहा, “हम सभी उनकी संतान हैं और इसलिए आपस में भाई-बहन हैं। एक परिवार के रूप में, हमारे पास सद्भाव और शांति के माहौल को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी और अवसर दोनों हैं। इस संदर्भ में, हम 'संस्कृति' शब्द का इस्तेमाल दो अर्थों में कर सकते हैं। संस्कृति का मतलब है कला, विचार और सामाजिक संस्थाओं की समृद्ध विरासत जो हर समाज की पहचान होती है। साथ ही, संस्कृति को एक ऐसा माहौल भी माना जा सकता है जो विकास को बढ़ावा देता है। जिस तरह एक स्वस्थ पर्यावरण में अलग-अलग तरह के पौधे एक साथ पनपते हैं, उसी तरह एक स्वस्थ सामाजिक संस्कृति में भी अलग-अलग समुदाय शांति से रह सकते हैं। ऐसी संस्कृति को सावधानी से विकसित करना चाहिए। इसके लिए सच्चाई की रोशनी, करुणा का पानी और आजादी व न्याय की धरती की जरूरत होती है।
समाज के सबसे कमजोर तबके की सेवा
संत पापा ने कहा, “सद्भाव का माहौल बनाने का मतलब सिर्फ विचार साझा करना नहीं, बल्कि ठोस अनुभव भी साझा करना है। जैसा कि संत योहन हमें याद दिलाते हैं, “ईश्वर के सामने सच्चा और पवित्र धर्म वही है जो अनाथों और विधवाओं की विपत्ति में मदद करता है” (याकूब 1:27)। इस नज़रिए से, हम कह सकते हैं कि धर्मों के बीच सच्ची दोस्ती का पैमाना यह है कि हम समाज के सबसे कमजोर तबके की सेवा में एक साथ खड़े हों। बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में इस एकता के प्रेरणादायक उदाहरण देखे हैं, जब प्राकृतिक आपदा या त्रासदी के समय अलग-अलग धर्मों के लोग एकजुट होकर प्रार्थना करते और एक-दूसरे की मदद करते दिखे। ऐसे कदम धर्मों, सिद्धांत और व्यवहार, एवं समुदायों के बीच पुल बनाते हैं, ताकि सभी बांग्लादेशी, और वास्तव में पूरी मानवता, संदेह से विश्वास की ओर, अलगाव से सहयोग की ओर बढ़ सके।
काथलिक कलीसिया की प्रतिबद्धता
इस दिशा में कलीसिया का पूर्ण सहयोग व्यक्त करते संत पापा ने कहा, “मैं यह दोहराना चाहता हूँ कि काथलिक कलीसिया इस रास्ते पर आपके साथ चलने के अपने वादे पर अटल है। कभी-कभी गलतफहमी या पुरानी गलतियाँ हमारे कदम रोक सकती हैं, लेकिन हमें एक-दूसरे को हिम्मत देनी चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए।
अंत में संत पापा ने सभी प्रतिभागियों को भाईचारे के प्रेम और प्रार्थनाओं का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा, “ईश्वर आप सभी को, आपके परिवारों और समुदायों को आशीष दें। वे आपके देश में आपसी सद्भाव और शांति बनाए रखे तथा हमारी दुनिया को भी आशीष दें, जिसे भाईचारे की रोशनी की बहुत जरूरत है।”