पोप लियो ने हमारे मिशनरी बनने की बुलाहट को पुनः जागृत किया

मिशनरी जगत और प्रवासियों की जयंती के अवसर पर आयोजित प्रार्थना सभा में, पोप लियो ने हमें अपने मिशनरी बुलाहट के प्रति जागरूकता को पुनः जागृत करने के लिए प्रोत्साहित किया, जो “सभी के लिए सुसमाचार का आनंद और सांत्वना लाने” की इच्छा से उत्पन्न होता है, कठिनाई में रहनेवालों को याद करते हुए, और विशेषकर, “हमारे प्रवासी भाइयों और बहनों” को, जिन्हें अपनी मातृभूमि छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है।
मिशनरियों और प्रवासियों की जयंती के लिए संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में आयोजित प्रार्थना सभा में उपस्थित चालीस हजार से अधिक तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए, पोप लियो 14वें ने अपने प्रवचन में मिशनरी बुलाहट के दो विषयों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसके लिए हमें बुलाया गया है और हम "हमारे प्रवासी भाइयों और बहनों" तक एकजुट एवं मित्रता के साथ पहुंचते हैं।
उन्होंने याद दिलाया कि मिशनरी सेवा, उदारता और भाईचारा, ये सभी आपस में जुड़े हुए हैं और हमारे कर्तव्य एवं इच्छा के हिस्से हैं कि हम "सभी तक सुसमाचार का आनंद और सांत्वना पहुँचाएँ," खासकर उन लोगों तक जो मुश्किलों में हैं। प्रवासियों को याद करते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे बहुत से लोग विषम परिस्थितियों के कारण अपनी मातृभूमि छोड़ने को मजबूर होते हैं, "अक्सर अपने प्रियजनों को पीछे छोड़कर, भय और अकेलेपन की रातें बिताते हैं, भेदभाव और हिंसा का प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं।"
कलीसिया की मिशनरी भूमिका
पोप फ्राँसिस के प्रेरितिक प्रबोधन इवेंजेली गौदियुम का हवाला देते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि "सम्पूर्ण कलीसिया मिशनरी है, और यह जरूरी है कि हम आगे बढ़ें और सभी के लिए सुसमाचार का प्रचार करें: सभी स्थानों पर, सभी अवसरों पर, बिना किसी हिचकिचाहट, अनिच्छा या भय के।" और यह विशेष रूप से दुनिया के उन दूरदराज के इलाकों में रहनेवाले हमारे भाइयों और बहनों तक पहुँचने के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ युद्ध, अन्याय और पीड़ा अक्सर व्याप्त रहती है, लेकिन सुसमाचार की आशा को सुनना और उसका अनुभव करना सांत्वना प्रदान कर सकता है और विश्वास को मजबूत करने में मदद कर सकता है।
जीवंत विश्वास से मुक्ति
पोप ने जोर देकर कहा कि विश्वास से उत्पन्न होनेवाली मुक्ति और नए जीवन की सुसमाचारीय आशा जीवन को बदल सकती है, और हमें "उस मुक्ति के जीवंत साधन" बना सकती है जिसे ईश्वर आज भी दुनिया में लाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि मुक्ति तब पूरी होती है जब हम अपने आप से बाहर निकलकर दूसरों की देखभाल करते हैं जो पीड़ित हैं, और ऐसा करके ईश्वर का प्रेम दुनिया तक पहुँचाते हैं।
एक मिशनरी युग
पोप लियो ने बताया कि कैसे आज एक नया मिशनरी युग हमारे सामने है, क्योंकि सीमाएँ अब भूगोल या दूर देशों की यात्रा से बंधी नहीं हैं, "क्योंकि गरीबी, पीड़ा और एक बड़ी आशा की चाहत ने हम तक अपनी पहुँच बना ली है।" हम इसे "हमारे प्रवासी भाइयों और बहनों" की वास्तविकता में और खतरनाक समुद्री यात्राओं में सफल न होने के डर से हिंसा और पीड़ा से भागते उनके त्रासदीपूर्ण जीवन और "दुःख एवं हताशा की उनकी पुकार" में देखते हैं।
"भाइयो और बहनो, उन नावों को जिन्हें किसी सुरक्षित बंदरगाह की आशा है, और वे आँखें जो किनारे तक पहुँचने के लिए वेदना और आशा से भरी हैं, उन्हें उदासीनता की ठंडक या भेदभाव का कलंक नहीं मिल सकता और न ही मिलना चाहिए!"
इसलिए, मिशन का अर्थ है "बने रहना", "आतिथ्य और स्वागत, करुणा और एकजुटता के माध्यम से मसीह की घोषणा और प्रकटीकरण" करना, स्वयं से परे देखना, "उनके साथ रहना और उनके लिए अपनी बाहें और हृदय खोलना, उन्हें भाइयों और बहनों के रूप में स्वागत करना, और उनके लिए सांत्वना और आशा की उपस्थिति भी बनना" है।
मिशनरी सहयोग और बुलाहटें
पोप ने अपने उपदेश का समापन दो आवश्यक कार्यों का वर्णन करते हुए की : कलीसियाओं के बीच नए सिरे से मिशनरी सहयोग को बढ़ावा देना और मिशनरी बुलाहटों की “सुंदरता और महत्व” की सराहना करना। उन्होंने कहा कि दक्षिण के भाइयों और बहनों की उपस्थिति और उनसे मुलाक़ात एक ऐसा “अवसर” प्रदान करती है जिसका हमें स्वागत करना चाहिए, क्योंकि यह भाईचारे का आदान-प्रदान कलीसिया को नवीनीकृत कर सकता है और “एक ऐसी ख्रीस्तीय धर्म को बनाए रख सकता है जो अधिक खुला, अधिक जीवंत और अधिक गतिशील हो।” इसके बाद पोप ने मिशनरी बुलाहट के महत्व पर ज़ोर दिया, विशेषकर यूरोप में, जहाँ लोकधर्मी, धर्मसंघी और पुरोहित शामिल होते हैं जो मिशनरी देशों में सेवा कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि यहाँ नए विचारों और ऐसे व्यावसायिक अनुभवों की आवश्यकता है जो युवाओं को आकर्षित और प्रेरित करें।
संत पापा ने कहा, "प्रिय मित्रों, मैं इन स्थानीय कलीसियाओं के पुरोहितों, मिशनरियों और उन लोगों को अपना आशीर्वाद देता हूँ जो बुलाहट का प्रत्युत्तर देने की तैयारी कर रहे हैं। जबकि, प्रवासियों से मैं कहता हूँ: जान लीजिए कि आपका हमेशा स्वागत है! जिन समुद्रों और रेगिस्तानों को आपने पार किया है, उन्हें धर्मग्रंथ "मुक्ति स्थल" कहते हैं, जहाँ ईश्वर अपने लोगों को बचाने के लिए स्वयं उपस्थित होते हैं। मुझे आशा है कि आप जिन मिशनरियों से मिलेंगे, उनमें आपको ईश्वर का यह स्वरूप दिखाई देगा... माता मरियम हमें सहारा दें, ताकि हम में से प्रत्येक मसीह के राज्य, प्रेम, न्याय और शांति के राज्य के लिए सहकर्मी बन सकें।"