पोप लियो ने आशा के अग्रदूत के रूप में दिवंगत धर्माध्यक्षों को श्रद्धांजलि दी
पोप लियो 14वें ने दिवंगत पोप फ्राँसिस और इस वर्ष के दिवंगत कार्डिनलों और धर्माध्यक्षों के लिए एक मिस्सा समारोह की अध्यक्षता की और प्रार्थना की कि उनकी आत्मा "हर दाग से धुल जाए" और वे "आकाश में तारों की तरह चमकें।"
पोप लियो 14वें ने सोमवार 3 नवंबर को संत पेत्रुस महागिरजाघर में कार्डिनलों, धर्माध्यक्षों और विश्वासियों के साथ दिवंगत पोप फ्राँसिस और इस वर्ष के सभी मृत कार्डिनलों और धर्माध्यक्षों की याद में पवित्र मिस्सा समारोह का अनुष्ठन किया।
ख्रीस्तीय आशा का ‘स्वाद’
अपने प्रवचन में पोप ने कहा, “आज हम सभी दिवंगत विश्वासियों की स्मृति के अवसर पर, उन कार्डिनलों और धर्माध्यक्षों के लिए, जो पिछले वर्ष हमसे बिछड़ गए, पवित्र मिस्सा का अनुष्ठान करने की सुंदर परंपरा को नवीनीकृत करते हैं। हम अत्यंत स्नेह के साथ, पोप फ्राँसिस की आत्मा के लिए इसे अर्पित करते हैं, जिनका निधन पवित्र द्वार खोलने और रोम तथा विश्व को ईस्टर का आशीर्वाद प्रदान करने के बाद हुआ। जयंती के कारण, यह उत्सव - मेरे लिए, पहला - एक विशिष्ट स्वाद प्रदान करता है: ख्रीस्तीय आशा का स्वाद।
हिंसक मौत की त्रासदी
संत लूकस के सुसमाचार पाठ 24,13-35 जिसमें एम्माऊस के शिष्यों के बारे में चर्चा की गई है, यह आशा की तीर्थयात्रा को स्पष्ट रूप से दर्शाता है, जो पुनर्जीवित मसीह के साथ मुलाकात से होकर गुज़रती है। इसका आरंभिक बिंदु मृत्यु का अनुभव है, हिंसक मृत्यु जो निर्दोषों को मार डालती है और इस प्रकार हमें निराश और हताश कर देती है। कितने लोग—कितने "छोटे बच्चे"!—हमारे समय में भी इस भयावह मृत्यु के आघात से पीड़ित हैं क्योंकि यह पाप द्वारा विकृत है। इस मृत्यु के लिए हम "लौदातो सी" नहीं कह सकते और न ही कहना चाहिए, क्योंकि पिता ईश्वर इसे नहीं चाहते, और उन्होंने हमें इससे मुक्त करने के लिए अपने पुत्र को संसार में भेजा। केवल उसी के पास अनन्त जीवन के वचन हैं और इन वचनों में हमारे हृदयों में पुनः विश्वास और आशा को प्रज्वलित करने की शक्ति है।
येसु हमारे हृदयों में विश्वास और आशा को पुनः जागृत करते हैं
पोप ने कहा कि जब येसु क्रूस पर कीलों से ठोंके गये हाथों में रोटी को लेते हैं, आशीर्वाद देते हैं, उसे तोड़ते हैं और उसे देते हैं, तो शिष्यों की आँखें खुल जाती हैं, उनके हृदय में विश्वास पनपता है, और विश्वास के साथ, एक नई आशा का संचार होता है। “हाँ! यह अब वह आशा नहीं रही जो उनके पास पहले थी और अब खो चुकी थी। यह एक नई वास्तविकता है, एक उपहार है, पुनर्जीवित येसु का अनुग्रह है: यह ईस्टर की आशा है।”
जैसे पुनर्जीवित येसु का जीवन अब पहले जैसा नहीं रहा, बल्कि पूर्णतः नया है, जिसे पिता ने आत्मा की शक्ति से रचा है, वैसे ही एक मसीही की आशा मानवीय आशा नहीं है, न यूनानियों की, न यहूदियों की, यह दार्शनिकों के ज्ञान या विधान से प्राप्त धार्मिकता पर आधारित नहीं है, बल्कि पूरी तरह से इस तथ्य पर आधारित है कि क्रूस पर चढ़ाया गया येसु पुनर्जीवित हो गया है और सिमोन को, स्त्रियों को और अन्य शिष्यों को दिखाई दिया है। यह एक ऐसी आशा है जो सांसारिक क्षितिज की ओर नहीं देखती, बल्कि उससे परे, यह ईश्वर की ओर देखती है, उस ऊंचाई और गहराई की ओर जहां से सूर्य उदय हुआ ताकि उन लोगों को प्रकाश दे जो अंधकार और मृत्यु की छाया में बैठे हैं।”
ईस्टर की आशा मृत्यु को बदल देती है
पोप ने कहा कि क्रूस पर चढ़े और पुनर्जीवित मसीह के प्रेम ने मृत्यु को रूपान्तरित कर दिया है। बेशक, जब कोई प्रिय हमें छोड़कर चला जाता है, तो हम दुःखी होते हैं। जब कोई इंसान, खासकर कोई बच्चा, कोई "छोटा", कोई नाज़ुक इंसान, बीमारी या उससे भी बदतर, मानवीय हिंसा के कारण हमसे दूर चला जाता है, तो हम स्तब्ध रह जाते हैं। ख्रीस्तीय होने के नाते, हम मसीह के साथ इन क्रूसों का भार उठाने के लिए बुलाये गये हैं। लेकिन हम उन लोगों की तरह दुखी नहीं होते जो आशाहीन हैं, क्योंकि सबसे दुखद मृत्यु भी हमारे प्रभु को हमारी आत्मा को अपनी बाहों में लेने और हमारे नश्वर शरीर को, यहाँ तक कि सबसे विकृत शरीर को भी, अपने गौरवशाली शरीर की छवि में बदलने से नहीं रोक सकती। इसी कारण, ख्रीस्तीय लोग कब्रगाहों को "क़ब्रिस्तान" नहीं कहते, जिसका अर्थ है "मृतकों का शहर", बल्कि "समाधि स्थल" कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ है "शयनगृह", यानी वे स्थान जहाँ व्यक्ति विश्राम करता है और पुनरुत्थान की प्रतीक्षा करता है। जैसा कि भजनहार भविष्यवाणी करता है: "मैं शान्ति से लेट जाऊँगा और सो जाऊँगा, / क्योंकि हे प्रभु, केवल तू ही मुझे निश्चिंत रहने देता है।"(स्तोत्र 4,9)
पास्का आशा के साक्षी और शिक्षक
अपने प्रवचन के अंत में पोप ने कहा कि पोप फ्राँसिस और कार्डिनलों और धर्माध्यक्षों ने, इस नई, पास्का आशा को जिया, इसके साक्षी बने और इसकी शिक्षा दी। प्रभु ने उन्हें बुलाया और अपनी कलीसिया का पुरोहित नियुक्त किया और अपनी सेवकाई से उन्होंने "बहुतों को धार्मिकता की ओर अग्रसर किया। उनकी आत्माएँ हर कलंक से शुद्ध हों और वे आकाश में तारों की तरह चमकें और उनका आध्यात्मिक प्रोत्साहन हम तक, जो अभी भी पृथ्वी पर तीर्थयात्री हैं, प्रार्थना के मौन में पहुँचे।"