पोप ने पुरोहिताई के पवित्र, निष्ठावान सेवा की सराहना की

पोप फ्राँसिस ने पुरोहितों के लिए रोम में आयोजित सतत् प्रशिक्षण हेतु अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के प्रतिभागियों से मुलाकात की और करुणा एवं कोमलता का आह्वान करते हुए, उन पवित्र पुरोहितों की सराहना की जो अपने विश्वासियों की सेवा निष्ठा के साथ करते हैं।

याजकों के लिए परमधर्मपीठीय विभाग ने सुसमाचार प्रचार विभाग और पूर्वी रीति की कलीसिया के लिए गठित विभाग के सहयोग से पुरोहितों के सतत् प्रशिक्षण के लिए वाटिकन में एक अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया है।

बृहस्पतिवार को वाटिकन के पौल षष्ठम सभागार में 1000 पुरोहितों से मुलाकात करते हुए पोप ने कहा, “हमारे जीवन के साक्ष्य द्वारा, सभी लोग येसु ख्रीस्त में प्रकट ईश्वर के मुक्तिदायी प्रेम की सुंदरता को देख सकें, जो मर गए और मृतकों में से जी उठे।"

पोप ने उन सभी पुरोहितों को धन्यवाद दिया जो अपने धर्मप्रांतों एवं देशों में सेवाएँ दे रहे हैं और उन्होंने उन्हें दयालु होने के महत्व पर जोर दिया, खासकर, पापस्वीकार संस्कार में, येसु के आपार प्रेम एवं धन्य कुँवारी मरियम की कोमलता को प्रदर्शित करते हुए।   

सम्मेलन के परिणामों की सराहना करते हुए, पोप ने पुरोहितों को एक-दूसरे को सुनने के लिए प्रोत्साहित किया, और संत पौलुस द्वारा तिमोथी को दिए गए उपदेश से प्रेरित होने की सलाह दी, जिसको सम्मेलन की विषयवस्तु चुना गया है: "ईश्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्वलित बनाये रखो, जो मेरे हाथों के आरोपन से तुम में विद्यामान है। (2 तिम.1:6)।

उन्होंने कहा, "उस वरदान को पुनःजागृत करें, उस अभिषेक को फिर से खोजें, उस लौ को फिर से जलाएँ, ताकि प्रेरितिक सेवा के लिए आपका उत्साह फीका न पड़े," उन्होंने कहा, "हमें जो वरदान मिला है उसे हम आग में कैसे झोंक सकते हैं?"

पोप फ्राँसिस ने तीन सलाहों के साथ इसका जवाब दिया: सुसमाचार के आनंद को विकसित करना, जो हमारे जीवन का आधार है; ईश्वर की प्रजा के साथ एक होने की भावना को बढ़ाना, जो हमारी देखभाल करते और हमारा भरण-पोषण करते हैं; और सजीव "सृजनात्मक' सेवा, जो हमें सच्चा पिता और पुरोहित बनाती है।

पोप फ्राँसिस ने जोर देकर कहा कि सुसमाचार का आनंद ख्रीस्तीय जीवन के केंद्र में है, क्योंकि प्रभु के साथ मित्रता का वरदान, हमें व्यक्तिवाद की नीरसता तथा प्रेम, आशा और अर्थ के बिना जीवन के जोखिम से मुक्त करता है।

पोप ने कहा, "सुसमाचार का आनंद, जो हमें खुशी देता है वह यह है : ईश्वर हमें कोमल और दयालु प्रेम से प्यार करते हैं। इसलिए, ईश्वर प्रदत्त इस आनंद का उदाहरण हमारे जीवन में होना चाहिए।”

"हम संत पॉल छटवें के शब्दों पर गौर करें: गुरू बनने से पहले हमें गवाह बनने की जरूरत है, ईश्वर के प्रेम का गवाह बनना है, यह एकमात्र चीज है जो वास्तव में मायने रखती है।" इसलिए, ईश्वर के शिष्य होने के नाते, यह "बाहरी धार्मिकता" नहीं है, बल्कि "जीवन की एक शैली है, और इसके लिए हमारे मानवीय सदगुणों को जीने की आवश्यकता है।” पोप ने उनसे मानव विकास के लिए संसाधनों को समर्पित करने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा, "हमें ऐसे पुरोहितों की जरूरत है जो पूरी तरह से मानवीय हों, स्वस्थ रिश्ते बनाये रखने में सक्षम हों और प्रेरिताई की चुनौतियों का सामना करने में परिपक्व हों," ताकि सुसमाचार की सांत्वना येसु की आत्मा द्वारा परिवर्तित उनकी मानवता के माध्यम से ईश्वर की प्रजा तक पहुंच सके। आइए, हम सुसमाचार की मानवीय शक्ति को कभी न भूलें!"

प्रतिभागियों को ईश प्रजा के साथ होने की भावना विकसित करने के लिए आमंत्रित करते हुए पोप ने कहा, "हम केवल एक साथ मिलकर मिशनरी शिष्य बन सकते हैं।"

उन्होंने कहा, "यह एहसास कि हम ईश प्रजा के हिस्सा हैं - ईश्वर की पवित्र प्रजा की यात्रा से कभी अलग महसूस नहीं करते हैं - हमें बचाता और हमारे प्रयासों में हमारा समर्थन करता है।" इसके अलावा, उन्होंने रेखांकित किया, "यह हमारी प्रेरितिक चिंताओं में हमारा साथ देता है और हमें वास्तविकता से अलग होने और सर्व-शक्तिशाली महसूस करने की जोखिम से बचाता है।" पोप ने इसके प्रति विशेष रूप से आगाह करते हुए कहा, "यह हर प्रकार के दुरुपयोग की जड़ भी है।"

पोप ने कहा कि पुरोहितों के प्रशिक्षण को ईश प्रजा के योगदान और जीवन की विभिन्न परिस्थितियों, बुलाहटों, प्रेरिताई और करिश्मे के बीच आपस में और परस्पर क्रिया पर निरंतर ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने एक विनम्र प्रज्ञा का आह्वान किया जो उन्हें अपने लोगों के साथ, अपने धर्माध्यक्ष और अपने पुरोहित भाइयों के साथ भी मिलकर चलने को बढ़ावा देता है। "आइए हम पुरोहित भ्रातृत्व की उपेक्षा न करें!"

"सृजनात्मक" सेवा के बारे में बोलते हुए, पोप ने कहा, सेवा ख्रीस्त के प्रेरितों का "पहचान पत्र" है। उन्होंने याद किया कि प्रभु ने इसे अपने पूरे जीवन में और विशेष रूप से अंतिम भोज में प्रकट किया, जब उन्होंने अपने शिष्यों के पैर धोए।

पोप ने कहा, "इस आलोक में सेवा के रूप में प्रशिक्षण न केवल शिक्षा का प्रसार है, बल्कि दूसरों पर ध्यान केंद्रित करने, उनकी सुंदरता और उनके भीतर मौजूद सभी अच्छाइयों को बाहर लाने की कला भी है।" उनके वरदानों, साथ ही उनकी छायाओं, उनके घावों और उनकी इच्छाओं पर प्रकाश डालना है।"

उन्होंने कहा, इस तरह से प्रशिक्षित पुरोहित खुद को ईश्वर की प्रजा की सेवा में लगाएंगे, लोगों के करीब होंगे और क्रूसित येसु की तरह, "स्वेच्छा से सभी के लिए जिम्मेदारी निभाएंगे।"

पोप फ्राँसिस ने कहा, "भाइयो और बहनो, आइए हम क्रूस पर नजर डालें, जहाँ से, हमें अंत तक प्यार करके, प्रभु ने एक नई प्रजा को जन्म दिया है।"