पोप : धार्मिक स्वतंत्रता 'सत्य की खोज और उसके अनुसार जीने का एक अनिवार्य तत्व'

पोप लियो 14वें ने “एड टू द चर्च इन नीड” नामक एक परमधर्मपीठीय संस्था के सदस्यों से मुलाकात की और धार्मिक स्वतंत्रता को मानव जीवन के एक अनिवार्य तत्व के रूप में बनाए रखने के उनके कार्य की प्रशंसा की।
21 अक्टूबर को विश्व में धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट के प्रकाशन से पहले, पोप लियो 14वें ने शुक्रवार को परमधर्मपीठीय संस्था एड टू द चर्च इन नीड इंटरनेशनल (एसीएन) (जरूरतमंद कलीसिया को सहायता) के सदस्यों के साथ एक बैठक की।
सताए गए ख्रीस्तियों को न छोड़ें
अपने संबोधन में, पोप ने कहा कि उनकी रोम यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब "ख्रीस्तियों सहित विभिन्न विश्वास रखने वालों के विरुद्ध" शत्रुता और हिंसा बढ़ रही है। इसके विपरीत, आपका मिशन यह घोषणा करता है कि, मसीह में एक परिवार के रूप में, हम अपने सताए गए भाइयों और बहनों का परित्याग नहीं करते। बल्कि, हम उन्हें याद करते हैं, उनके साथ खड़े होते हैं, और उनकी ईश्वर प्रदत्त स्वतंत्रताओं को सुरक्षित करने के लिए प्रयास करते हैं।” पोप ने कहा कि कुरिंथियों को लिखे पत्र में संत पौलुस हमें याद दिलाते हैं कि "यदि एक सदस्य दुःख उठाता है, तो सब मिलकर दुःख उठाते हैं।" ये शब्द आज हमारे हृदय में गूंजते हैं, क्योंकि मसीह के शरीर के किसी भी सदस्य का दुःख पूरी कलीसिया द्वारा साझा किया जाता है।
सत्य और अर्थ की आवश्यकता
पोप ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य अपने हृदय में सत्य, अर्थ, और दूसरों तथा ईश्वर के साथ एकाकार होने की गहन लालसा रखता है। यह लालसा हमारे अस्तित्व की गहराई से उत्पन्न होती है। इसीलिए, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वैकल्पिक नहीं, बल्कि अनिवार्य है। ईश्वर की छवि में सृजित, तर्क और स्वतंत्र इच्छा से संपन्न, मानव व्यक्ति की गरिमा में निहित, धार्मिक स्वतंत्रता व्यक्तियों और समुदायों को सत्य की खोज करने, उसे स्वतंत्र रूप से जीने और खुले तौर पर उसकी गवाही देने का अवसर देती है। इसलिए यह किसी भी न्यायपूर्ण समाज की आधारशिला है, क्योंकि यह उस नैतिक स्थान की रक्षा करती है जिसमें विवेक का निर्माण और प्रयोग किया जा सकता है।
इसलिए, धार्मिक स्वतंत्रता केवल सरकारों द्वारा हमें दिया गया एक कानूनी अधिकार या विशेषाधिकार नहीं है; यह एक आधारभूत शर्त है जो प्रामाणिक मेल-मिलाप को संभव बनाती है। जब इस स्वतंत्रता से इनकार किया जाता है, तो मानव व्यक्ति सत्य की पुकार पर स्वतंत्र रूप से प्रतिक्रिया करने की क्षमता से वंचित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप समुदायों को बनाए रखने वाले नैतिक और आध्यात्मिक बंधन धीरे-धीरे बिखरते हैं; विश्वास भय का स्थान लेता है, संवाद का स्थान संदेह ले लेता है, और उत्पीड़न हिंसा को जन्म देता है।
धार्मिक स्वतंत्रता के बिना शांति नहीं है
पोप लियो 14वें ने पोप फ्राँसिस की बातों को उद्धरित करते हुए कहा कि, "धार्मिक स्वतंत्रता, विचार की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरों के विचारों के सम्मान के बिना शांति संभव नहीं है।" इसी कारण से, काथलिक कलीसिया ने हमेशा सभी लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता का बचाव किया है। उन्होंने द्वितीय वाटिकन परिषद की इस घोषणा को याद दिलाया कि धार्मिक स्वतंत्रता एक अधिकार है जिसे प्रत्येक राष्ट्र को मान्यता देनी चाहिए।
जरूरतमंद कलीसिया को सहायता की प्रतिबद्धता
पोप लियो ने कहा कि "एड टू द चर्च इन नीड" की स्थापना 1947 में युद्ध से उत्पन्न पीड़ा के समाधान के लिए की गई थी। इसका उद्देश्य क्षमा और मेल-मिलाप को बढ़ावा देना है और साथ ही उन जगहों पर कलीसिया की आवाज़ बनना है जहाँ उसे कष्ट या खतरा हो। उन्होंने एसीएन की "विश्व में धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट" की प्रशंसा की, जो हर दो साल में प्रकाशित होती है, और इसे जागरूकता बढ़ाने और "कई लोगों के छिपे हुए दुख" को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण साधन बताया। संत पापा ने दुनिया भर में कलीसियाई संस्थानों, विशेष रूप से मध्य अफ्रीकी गणराज्य, बुर्किना फासो और मोज़ाम्बिक को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए एसीएन को धन्यवाद दिया।
उन्होंने कहा, "जहाँ भी "एड टू द चर्च इन नीड" किसी गिरजाघर का पुनर्निर्माण करता है, किसी धर्मबहन का समर्थन करता है, या किसी रेडियो स्टेशन या वाहन के लिए धन मुहैया कराता है, वहाँ आप कलीसिया के जीवन के साथ-साथ समाज के आध्यात्मिक और नैतिक ताने-बाने को भी मज़बूत करते हैं।"
पोप लियो ने कहा कि स्थानीय ख्रीस्तियों के लिए समर्थन, अल्पसंख्यकों को अपने गृहभूमि में शांति स्थापित करने का अवसर देता है, ताकि वे "सामाजिक सद्भाव और बंधुत्व के जीवंत प्रतीक बन सकें, तथा अपने पड़ोसियों को दिखा सकें कि एक अलग दुनिया संभव है।" संत पापा ने उनके कार्यों के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि भलाई करने में कभी न थकें, क्योंकि आपकी सेवा अनगिनत जीवनों में फल लाती है और स्वर्ग में हमारे पिता की महिमा करती है।