पोप : धर्मविधि ईश्वर के सभी लोगों के लिए हो

पोप फ्राँसिस ने दिव्य उपासना और संस्कारों के अनुशासन विभाग के सदस्यों से मुलाकात की और उन्हें याद दिलाया कि पूजन-पद्धति में सुधार के बिना कलीसिया में सुधार नहीं लाया जा सकता है, जिसको ईश्वर के सभी लोगों के लिए होना चाहिए।

पोप ने बृहस्पतिवार को दिव्य उपासना और संस्कारों के अनुशासन विभाग के सदस्यों से मुलाकात की जब वे अपनी आमसभा के लिए एकत्रित हुए हैं।

पोप ने अपने सम्बोधन में कहा, साक्रोसांतुम कॉन्सिलियुम की घोषणा के साठ साल बाद भी, यह अभी भी अत्यधिक प्रासंगिक है। इसमें कलीसिया को उसके मूलभूत आयामों में सुधार करने की एक विशेष इच्छाशक्ति शामिल है: विश्वासियों के ख्रीस्तीय जीवन को हर दिन अधिक से अधिक विकसित करना; हमारे समय की जरूरतों के अनुसार परिवर्तन के अधीन संस्थानों को बेहतर ढंग से अनुकूलित करना; उसे बढ़ावा देना जो मसीह में सभी विश्वासियों के मिलन में योगदान दे सकता है; उसे फिर से सशक्त बनाना जो सभी को कलीसिया की ओर बुलाने का काम करता है।

इसलिए यह आध्यात्मिक, प्रेरितिक, ख्रीस्तीय एकता और मिशनरी नवीनीकरण का एक गहन कार्य है, और कलीसिया के धर्माचार्य इस बात से अवगत थे कि "पूजन पद्धति में सुधार के बिना कलीसिया में कोई सुधार नहीं होगा।"

पोप फ्राँसिस ने यह भी बतलाया कि कलीसिया का सुधार कलीसिया का ख्रीस्त के प्रति प्रेम पर निर्भर करता है, एक "पति-पत्नी की निष्ठा" पूरी तरह से उनके अनुरूप होने की हद तक।

कलीसिया में महिलाओं की भूमिका के बारे में बोलते हुए पोप फ्राँसिस ने कलीसिया की महिला होने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा "यही कारण है जिसके लिए मैंने कहा कि कलीसिया के सुधार का हर उदाहरण हमेशा पति-पत्नी की निष्ठा के समान है, क्योंकि वह [कलीसिया] एक महिला है।"
पोप ने कहा, पूजन विधि में सुधार का उद्देश्य - कलीसिया के नवीनीकरण के व्यापक ढांचे के भीतर - "विश्वासियों के प्रशिक्षण को लाना और उस प्रेरितिक कार्रवाई को बढ़ावा देना है जिसके शिखर और स्रोत के रूप में धर्मविधिक अनुष्ठान है।"

पोप फ्राँसिस ने इस बात पर ध्यान दिया कि यद्यपि धर्मविधिक प्रशिक्षण आवश्यक है, "यह इस बात को बाहर नहीं करता कि उन लोगों के प्रशिक्षण में एक प्राथमिकता है, जो अभिषेक के आधार पर, रहस्यावादी कहलाते हैं", अर्थात् रहस्यवाद के शिक्षक।

पोप ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि विभागों के बीच आपसी सहयोग की भावना में, अभिषिक्त सदस्यों के धार्मिक प्रशिक्षण के प्रश्न को, संस्कृति और शिक्षा के लिए गठित विभाग, याजकों के लिए गठित विभाग और समर्पित जीवन के संस्थानों के लिए स्थापित विभाग के साथ मिलकर संभाला जाना चाहिए, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपना विशिष्ट योगदान दे सके।"

पोप ने कहा, "यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पुरोहितों के प्रशिक्षण में ईशशास्त्रीय अध्ययन के पाठ्यक्रम और सेमिनारियों के जीवन अनुभव में धर्मविधिक-शिक्षात्मक छाप हो।"

अपने प्रवचन को समाप्त करते हुए, पोप फ्राँसिस ने जोर देकर कहा, “जब हम पुरोहितों के लिए नया प्रशिक्षण पथ तैयार कर रहे हैं, हमें ईश प्रजा के लोगों के लिए इच्छित लोगों के बारे में सोचना चाहिए।" संत पापा ने कहा कि धर्मविधि के प्रशिक्षण के लिए पहला ठोस अवसर, रविवार और पूरे धर्मविधि वर्ष में मनाए जानेवाले पर्व हैं।

पोप ने संरक्षकों के पर्वों और ख्रीस्तीय दीक्षा के संस्कारों का जिक्र करते हुए कहा, "अन्य अवसर हैं जब लोग पर्वों और उनकी तैयारियों में अधिक भाग लेते हैं", सभी बपतिस्मा प्राप्त लोगों के धार्मिक प्रशिक्षण के क्षण हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि "प्रेरितिक देखभाल के साथ तैयार"  वे अवसर लोगों के लिए आज मुक्ति के रहस्य को मनाने के अर्थ को फिर से खोजने और गहरा करने हेतु अनुकूल अवसर बन जाते हैं।

अंत में, पोप फ्राँसिस ने उपस्थित सदस्यों को याद दिलाया कि उनका कार्य "महान और सुंदर है"। "मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ" और "मैं आपको दिल से आशीर्वाद देता हूँ।"