पोप : कलीसिया सभी के लिए विनम्रता सीखने का स्थान हो

रविवारीय देवदूत प्रार्थना का पाठ करने से पहले अपने चिंतन में, पोप लियो 14वें ने प्रार्थना की कि कलीसिया हमेशा येसु के उदाहरण का अनुसरण करते हुए "विनम्रता का विद्यालय" बने, साथ ही "एक ऐसा घर बने जहाँ सभी का स्वागत हो", जहाँ प्रतिद्वंद्विता को किनारे रखा जाए।
वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 31 अगस्त को पोप लियो 14 वें ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
एक साथ मेज पर आना, विशेषकर, आराम और पर्व के दिनों में, हर संस्कृति में शांति और सहभागिता का प्रतीक है। इस रविवार के सुसमाचार पाठ में (लूक. 14,1.7-14) फरीसियों के एक नेता ने भोजन पर येसु को आमंत्रित किया। पोप ने कहा, “मेहमानों के आने से हृदय का विस्तार होता है और मेहमान बनने के लिए दूसरों की दुनिया में प्रवेश करने की विनम्रता की आवश्यकता होती है।”
सच्ची मुलाकात करने की कोशिश करें
लेकिन, उन्होंने कहा, “मुलाकात करना हमेशा आसान नहीं होता। सुसमाचार लेखक लिखते हैं कि मेज पर बैठे लोग येसु को देख रहे थे, और परंपरा के सबसे कड़े व्याख्याकारों द्वारा उन्हें एक निश्चित संदेह के साथ देखा जा रहा था।
फिर भी, मुलाकात होती है क्योंकि येसु निकट आते हैं, वे परिस्थिति से बाहर नहीं रहते। वे वास्तव में, सम्मान एवं सच्चाई से मेहमान बनते हैं। उन शिष्टाचारों को त्यागते हैं जो आपसी उलझन से बचने के लिए केवल औपचारिकताएँ हैं। इस तरह अपनी शैली में, एक दृष्टांत के माध्यम से, वे जो देखते उसका वर्णन करते हैं, और दर्शकों को सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। दरअसल, उन्होंने देखा कि प्रथम स्थान पाने की होड़ मची हुई है।
संत पापा ने कहा, “यह आज भी होता है, परिवार के अंदर नहीं, बल्कि ऐसे मौकों पर जब "ध्यान आकर्षित करना" मायने रखता; तब एक साथ रहना एक प्रतिस्पर्धा में बदल जाता है।”
प्रभु को सुनें
प्यारे भाइयो एवं बहनो, एक साथ प्रभु के दिन में यूखरीस्तीय भोज में एकत्रित होने का अर्थ यह भी है कि हम वचन को येसु पर छोड़ दें। वे स्वेच्छा से हमारे मेहमान बनते हैं और हमें अपनी नज़र से देखते हैं। खुद को उनकी नज़र से देखना बहुत ज़रूरी है: इस बात पर पुनर्विचार करते हुए कि कैसे हम अक्सर ज़िंदगी को एक प्रतिस्पर्धा तक सीमित कर लेते हैं, कैसे हम पहचान पाने के लिए बेतरतीब हो जाते हैं, और हम बेवजह एक-दूसरे से अपनी तुलना करते हैं।
आगे चिंतन करने हेतु प्रेरित करते हुए संत पापा ने कहा, “रुककर चिंतन करना, उस वचन से हिल जाना जो हमारे हृदय में व्याप्त प्राथमिकताओं को चुनौती देता है: यह स्वतंत्रता का अनुभव है। येसु हमें स्वतंत्रता के लिए बुलाते हैं।
विनम्रता में सच्ची स्वतंत्रता है
सुसमाचार पाठ में उन्होंने स्वतंत्रता की पूर्ति का वर्णन करने के लिए विनम्रता शब्द का प्रयोग किया है। विनम्रता वास्तव में अपने आप से मुक्ति है। ये तब उत्पन्न होता है जब ईश्वर का राज्य और उसका न्याय, सचमुच हमारी रूचि को अपनी ओर खींच लेते और हम दूर तक देख पाने में सक्षम होते हैं। सिर्फ हमारे पैर की उंगली तक नहीं लेकिन दूर तक।
जो लोग खुद को उठाने में लगे रहते हैं उन्हें अपने आप से अधिक दिलचस्प कुछ भी नहीं दिखता और अंततः वे अपने अंदर अधिक आश्वस्त नहीं होते। परन्तु जो लोग यह समझ गए हैं कि वे ईश्वर की दृष्टि में कितने मूल्यवान हैं, और जो गहराई से महसूस करते हैं कि वे ईश्वर के पुत्र या पुत्री हैं, उनके पास आनन्दित होने के लिए और भी अधिक बातें हैं तथा उनके पास एक गरिमा है जो स्वयं ही चमकती है। वह बिना किसी प्रयास और बिना किसी रणनीति के सबसे आगे, पहले स्थान पर आता है।
चिंतन
संत पापा ने विश्वासियों का आह्वान करते हुए कहा, “प्यारे भाइयो एवं बहनो, आज हम प्रार्थना करते हैं कि कलीसिया सभी के लिए विनम्रता का प्रशिक्षण स्थल बने, अर्थात् एक ऐसा घर जहाँ हमेशा सभी का स्वागत हो,जहाँ स्थान जीता न जाए, जहाँ येसु अभी भी बोल सकें और हमें अपनी विनम्रता, अपनी स्वतंत्रता सिखा सकें। मरियम, जिनसे हम अब प्रार्थना करेंगे, वास्तव में इस घर की माता हैं।”