देवदूत प्रार्थना में पोप : यूखरिस्त हमें नई दुनिया के नबी बनाता है

रविवार को देवदूत प्रार्थना के पूर्व पोप फ्राँसिस ने ख्रीस्त के पावन शरीर एवं रक्त पर चिंतन किया और कहा कि यूखरिस्त हमें स्वार्थ पर काबू पाने में मदद करता एवं हमें प्रेम और भ्रातृत्व के लिए खोलता है।

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 2 जून को येसु ख्रीस्त के पवित्रतम शरीर और रक्त महापर्व के अवसर पर भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, “प्रिय भाइयो एवं बहनो, शुभ रविवार।”

येसु ख्रीस्त के पावन शरीर और लोहू का महापर्व
आज इटली एवं कई अन्य देशों में प्रभु येसु के पावन शरीर और रक्त का महापर्व मनाया जाता है। आज की धर्मविधि का सुसमाचार पाठ हमें येसु की अंतिम व्यारी के बारे बतलाता है (मार.14,12-26) जिसके दौरान उन्होंने मुक्ति का संकेत दिया था : वास्तव में, तोड़ी गई रोटी में और शिष्यों को दिए गए प्याले में, खुद येसु हैं जो स्वयं को समस्त मानवता के लिए देते हैं और अपने को संसार के जीवन के लिए प्रस्तुत करता है।

येसु का उपहार
येसु का यह भाव जो रोटी तोड़ते हैं एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसे सुसमाचार इन शब्दों के साथ रेखांकित करता है "उन्होंने उसे शिष्यों को दिया।" (22) आइए, हम इन शब्दों को अपने हृदय में लें: उन्होंने उसे शिष्यों को दिया। वास्तव में, यूखारिस्ट, सबसे पहले उपहार के आयाम की याद दिलाता है। येसु रोटी को खुद खाने के लिए नहीं लेते, बल्कि उसे तोड़कर शिष्यों को देते हैं, इस प्रकार अपनी पहचान और अपने मिशन को प्रकट करते हैं। उन्होंने जीवन को अपने लिए नहीं रखा, बल्कि उसे हमें दिया; उन्होंने इसे ईर्ष्यापूर्ण खजाना नहीं माना कि वे ईश्वर हैं, बल्कि हमारी मानवता को साझा करने और हमें अनन्त जीवन में ले जाने के लिए अपनी महिमा को त्याग दिया (फिल. 2:1-11)। येसु ने अपने पूरे जीवन को एक उपहार बना दिया। हम इसे न भूलें, येसु ने अपने सम्पूर्ण जीवन को एक उपहार बना दिया।

पूरी कलीसिया से जुड़े हुए
इससे हम समझते हैं कि ख्रीस्तयाग समारोह मनाना और इस रोटी को खाना, जैसा कि हम खासकर रविवार को करते हैं, जीवन से अलग कोई उपासना नहीं है या सामान्य व्यक्तिगत सांत्वना का क्षण नहीं है। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि येसु रोटी लेते हैं, उसे तोड़ते और उन्हें देते हैं, इस प्रकार उनके साथ सहभागिता हमें दूसरों के लिए तोड़ी गई रोटी बनाता है, ताकि हम जो हमारे पास है उसे उनके साथ बांट सकें। संत लेओ महान कहते हैं, मसीह के शरीर और लहू में हमारी सहभागिता हमें वही बनाती है जो हम खाते हैं। (दुःखभोग पर उपदेश 12,7)

संत पापा ने कहा, “हम यही करने के लिए बुलाये गये हैं : हम वही बनें जो खाते हैं, अर्थात् यूखरिस्त, जिसमें व्यक्ति अपने लिए नहीं जीता।” (रोम.14.7) स्वामित्व और उपभोग के तर्क में, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि अपने जीवन से दूसरों को कैसे उपहार दिया जाए।

नई दुनिया के नबी
इस प्रकार, यूखारिस्त के द्वारा हम एक नये विश्व के निर्माता और नबी बनते हैं: जब हम स्वार्थ पर विजय पाते हैं तथा प्रेम के लिए अपने आपको खोलते हैं, जब हम भाईचारे के बंधन को विकसित करते हैं, जब हम अपने भाइयों के दुःखों में सहभागी होते हैं तथा जरूरतमंदों के साथ अपनी रोटी और संसाधन बांटते हैं, जब हम अपनी सारी प्रतिभाओं को उपलब्ध कराते हैं, तब हम येसु के समान अपने जीवन की रोटी तोड़ते हैं।

चिंतन
आइये, हम खुद से पूछें: क्या मैं अपना जीवन सिर्फ अपने लिए रखता हूँ या येसु की तरह इसे दूसरों को दे देता हूँ? क्या मैं खुद को दूसरों पर खर्च करता हूँ या मैं अपने छोटे से स्वार्थ में ही सीमित रहता हूँ? और, रोज़मर्रा की परिस्थितियों में, क्या मैं जानता हूँ कि कैसे बाँटना है या क्या मैं हमेशा अपने हित के बारे में सोचता हूँ?

कुँवारी मरियम जिन्होंने येसु (स्वर्ग की रोटी) का स्वागत किया और पूरी तरह अपने आपको उनके लिए दे दिया, हमें येसु (यूखरिस्त) से संयुक्त होकर, प्रेम उपहार बनने में हमारी मदद करें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना क पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।