पोप : हम सृष्टि के संग अपने संबंध को नवीन करें
सृष्टि की देखभाल के लिए 2023 विश्व प्रार्थना दिवस के लिए पोप फ्राँसिस का संदेश “न्याय और शांति को प्रवाहित होने दें” यह नबी आमोस के शब्दों से प्रेरित है: “न्याय को एक नदी की तरह बहने दें, धार्मिकता कभी न खत्म होने वाली धारा की तरह।”
पोप फ्रांसिस ने 01 सितम्बर 2023 को होने वाली पृथ्वी की देख-रेख हेतु विश्व प्रार्थना दिवस के अवसर पर अपने संदेश में कहा कि न्याय और शांति नदी की धारा समान प्रवाहित हो।
इस वर्ष की अंतरधार्मिक सृष्टि की देख-रेख हेतु प्रार्थना की विषयवस्तु है, “न्याय और शांति प्रवाहित हो”, जो नबी आमोस के ग्रँथ से उदृधत है, “न्याय नदी की तरह बहता रहे और धार्मिकता कभी न सूखने वाली धारा की तरह” (5.24)।
पोप ने अपने संदेश में कहा कि यह विचारोत्तेजक छवि ईश्वर की चाह को व्यक्त करती है। ईश्वर प्रत्येक जन से, हर परिस्थिति में अपने रुप बनाये गये मानव के लिए न्याय की स्थापना हेतु कार्य करने की चाह रखते हैं जिससे सभों के लिए जीवन का विकास हो सके। “जब हम ईश्वर के राज्य की खोज करते हैं, ईश्वर, मानवता और प्रकृति के संग एक अच्छा संबंध बनाये रखते, तो न्याय और शांति हमारे लिए कभी न सूखने वाली शुद्ध नदी की धारा-सी तरह प्रवाहित होती है, जो मानवता और पृथ्वी के हर प्राणी को जीवन से पोषित करता है।”
सन् 2022 के जुलाई महीने में कनाडा की प्रेरितिक यात्रा के दौरान लैक स्टे झील के तट से उठते हुए अपने चिंतनों की याद करते हुए संत पापा ने अपने विचारों को व्यक्त किया। लैक स्टे झील असंख्य मूलवासियों के लिए एक तीर्थ का स्थल है। “कितने ही लोगों का हृदय यहाँ शांति की खोज में आता है, जो अपने जीवन के बोझिल भरे क्षणों में इसके तट पर सांत्वना और शक्ति का एहसास करते हैं।” धरती माता की उस गोद में संत पापा कहते हैं कि हम एक माता के गर्भ में पल रहे बच्चे की धड़कन को सुन सकते हैं।
पोप ने सृष्टि काल के इस समय में पृथ्वी और ईश्वर के हृदय की धड़कनों को सुनने का आहृवान किया। “हम इन दोनों के बीच आज सामजस्य को नहीं पाते हैं, उनमें न्याय और शांति की एकता का अभाव है।” उन्होंने कहा कि आज कितने ही हमारे भाई-बहनें हैं जिन्हें इस बृहृद नदी से पानी पीने नहीं दिया जाता है। आइए हम पर्यावरण और जलवायु अन्याय के शिकार लोगों के साथ खड़ा हों और सृष्टि के खिलाफ हो रहे विचारहीन युद्ध को समाप्त करें।
आंतरिक सूखेपन के कारण बाह्य सुखाड़
पोप ने आंतरिक सूखेपन के कारण विश्व के वाह्य स्थलों में बढ़ रहे सुखाड़ की ओर ध्यान आकर्षित कराया जहाँ हम भौतिकतावाद के लोभ, स्वार्थपूर्ण हृदय को पाते हैं। “हमें उन बुरी चीजों को रोकने की जरुरत है और हम इसे एक साथ आते हुए कर सकते हैं।” हम एक दूसरे के संग हाथ मिलाते हुए साहसपूर्ण कदम लें जिससे “पूरे विश्व में न्याय और शांति प्रवाहित हो”।
इस संदर्भ मे पोप ने हृदयों, जीवन शैली और समाजों के लिए नीति निर्धारण में परिवर्तन की ओर ध्यान आकर्षित कराया।
इस क्रम में हृदय परिवर्तन को उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बतलाते हुए इसे “पारिस्थितिक रूपांतरण” की संज्ञा दी जिसके बारे में संत पापा जोन पौलुस द्वितीय भी कहते हैं कि हमें सृष्टि से अपने संबंधों को नवीकृत करने की जरुरत है जिससे हम उसका दोहन करने से बचे रहें। “हमें सृष्टि को ईश्वर से मिले पवित्र उपहार के रुप में संजोकर रखने की जरुरत है।” हमें बात को अनुभव करने की जरूरत है कि पर्यावरण का सम्मान चार रिश्तों में शामिल है- जो हमें ईश्वर के संग, आज और कल के अपने भाई-बहनों के संग, पूरी प्रकृति के साथ, और स्वयं से उचित संबंध स्थापित करने की मांग करता है। संत पापा बेनेदिक्त 16वें इस संबंध की चर्चा करते हुए कहते हैं, “मुक्तिदाता ही सृष्टिकर्ता हैं और यदि हम ईश्वर को उनकी सृष्टि के वैभव में घोषित नहीं करते, तो हम अपनी मुक्ति को मूल्यहीन बनाते हैं।”
जीवनशैली में परिवर्तन के संदर्भ में संत पापा ने कहा कि इसके शुरूआत कृतज्ञता से होती है जहाँ हम सृष्टिकर्ता की सृष्टि के लिए आश्चर्य में धन्यवाद देते हुए “पारिस्थितिक पापों” के लिए क्षमा की याचना करते हैं। ईश्वर की कृपा से, हम कम बर्बादी और अनावश्यक खपत वाली जीवनशैली अपनाएं, खासकर जहां उत्पादन की प्रक्रियाएं जहरीली और अस्थिर हैं। “हम अपनी आदतों और आर्थिक निर्णयों पर विचार करें जिससे सभी नर-नारी और भविष्य की पीढ़ी का विकास हो।” हम सकारात्मक विकल्पों के माध्यम से ईश्वर की रचना में सहयोग करें: संसाधनों में संयम और उनका आनंदमय उपयोग, कचरे का निपटारा और पुनर्चक्रण करे तथा उपलब्ध उत्पादों और सेवाओं का अधिक से अधिक उपयोग करें।
समाज में नीति निर्धारणों के संबंध में पोप ने कहा कि हमें उन्हें बदले की जरुरत है जिससे समाज, युवाओं और आने वाले कल का संचालन उचित रूप में किया जा सके। कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए धन को बढ़ावा देने वाली आर्थिक नीतियां और अन्य लोगों के लिए दोयाम दर्जे की स्थिति, शांति और न्याय का विनाश करती हैं। यह स्पष्ट है कि अमीर देशों ने एक "पारिस्थितिक ऋण" का अनुबंध किया है जिसका भुगतान किया जाना चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए पेरिस समझौते में की गई प्रतिबद्धताओं पर बल देते हुए संत पापा ने कहा कि जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढांचें का निरंतर अन्वेषण और विस्तार की अनुमति देना बेतुका है। हम गरीबों और अपने बच्चों के प्रति इस अन्याय को रोकने के लिए आवाज उठाएं, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होंगे।