हमलों से चर्च की सेवाएँ नहीं रुकेंगी: काथलिक धर्माध्यक्ष
भारत के काथलिक धर्माध्यक्षों का दावा है कि भारत में ईसाई संस्थानों और उनके कर्मचारियों पर बढ़ते हमले और उत्पीड़न कलीसिया को गरीबों और वंचितों की सेवा करने से नहीं रोकेंगे।
भारत के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीबीसीआई) ने 36वीं द्विवार्षिक बैठक के अंतिम बयान में कहा है, "भारत के वफादार नागरिक के रूप में, हम अपने प्रभु येसु के पदचिन्हों पर चलते हुए, चाहे कुछ भी कीमत चुकानी पड़े, अपने देश की सेवा करना जारी रखेंगे।"
देश के 174 धर्मप्रांतों का प्रतिनिधित्व करनेवाले 170 से अधिक धर्माध्यक्षों ने 31 जनवरी से 7 फरवरी तक बेंगलूरू के संत जॉन राष्ट्रीय स्वास्थ्य विज्ञान अकादमी में एक आमसभा में भाग लिया।
सभा में उन्होंने जिन मुख्य विषयों पर ध्यान दिया, वे हैं, "देश की वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक स्थिति और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के लाभ और चुनौतियों पर कलीसिया की प्रतिक्रिया।"
बैठक में देश के सभी धर्मप्रांतों को, भारत के लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए ईश्वर की सहायता पाने हेतु 22 मार्च को प्रार्थना और उपवास दिवस के रूप में मनाने के लिए कहा गया है।
यह आह्वान देश में आम चुनाव से कुछ महीने पहले आया है। मौजूदा संघीय सरकार का कार्यकाल मई में ख़त्म हो जाएगा।
भारत में वर्तमान स्थिति की समीक्षा करते हुए, धर्माध्यक्षों ने देश की "वैज्ञानिक, तकनीकी, आर्थिक और अन्य क्षेत्रों में जबरदस्त प्रगति" पर ध्यान दिया, जिसने इसे एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने में मदद की है।
सीबीसीआई अध्यक्ष त्रिचूर के महाधर्माध्यक्ष एंड्रयूज थाज़थ और महासचिव, दिल्ली के महाधर्माध्यक्ष अनिल कूटो द्वारा हस्ताक्षरित छः पेज के बयान में कहा गया है कि "ख्रीस्तीय समुदाय हमारे देश की प्रगति पर गर्व महसूस करता है।"
हालाँकि, धर्माध्यक्षों को खेद है कि देश के विकास से "एक छोटे प्रतिशत को" लाभ हुआ है, जबकि बाकी आबादी, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, बढ़ती बेरोजगारी और बड़े पैमाने पर पलायन से जूझ रही है, जिसने लाखों लोगों के लिए दुःख पैदा किया है और जिसने उन्हें डिजिटल विभाजन के दूसरे पक्ष की ओर ढकेल दिया है।
धर्माध्यक्षों ने विभाजनकारी रवैये, नफरत भरे भाषणों और कट्टरपंथी आंदोलनों पर भी आशंका व्यक्त की, जो भारत और उसके संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है।
देश के विभिन्न हिस्सों में ईसाइयों पर हमलों का जिक्र करते हुए, धर्माध्यक्षों ने "धर्मांतरण के झूठे आरोपों" पर घरों एवं गिरजाघरों को ध्वस्त किये जाने और अनाथालयों, छात्रावासों, शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में सेवा करनेवालों के उत्पीड़न पर दुःख जताया है।
जब धर्माध्यक्ष सभा में भाग ले रहे थे, उत्तर प्रदेश में एक काथलिक पुरोहित, पांच प्रोटेस्ट पादरी और एक लोकधर्मी को गिरफ्तार किया गया और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
उन पर धर्मांतरण गतिविधियों का आरोप लगाया गया है एक निचली अदालत ने 7 फरवरी को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। कलीसिया के लोग अब उनकी रिहाई के लिए ऊपरी अदालतों में जाने की योजना बना रहे हैं।
धर्माध्यक्षों की बैठक का एक विषय पूर्वोत्तर भारतीय राज्य मणिपुर में चल रही हिंसा भी थी।
धर्माध्यक्षों ने कहा कि वे "मणिपुर में लंबे समय से चली आ रही हिंसा से स्तब्ध हैं, जिसके परिणामस्वरूप जीवन और आजीविका का भारी नुकसान हुआ है।"
मैतेई और कुकी जातीय समुदायों के बीच हिंसा 3 मई को शुरू हुई थी। कुकी की एक बड़ी संख्या ईसाई है जबकि मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं।
उन्होंने महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक संस्थानों और संघीय ढांचे के कमजोर होने एवं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में अपनी भूमिका निभाने में मीडिया की विफलता पर भी चिंता व्यक्त की है।
धर्माध्यक्षों ने कहा कि लोकतंत्र को कमजोर करनेवाला एक अन्य कारक अभूतपूर्व धार्मिक ध्रुवीकरण है जो सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाता है।
सम्मेलन ने देश के राजनीतिक नेताओं से संविधान की मूल संरचना, विशेष रूप से प्रस्तावना को सुरक्षित करने की अपील की है, जो भारत को एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लिए प्रतिबद्ध है।
आम चुनावों से पहले, धर्माध्यक्ष चाहते हैं कि सभी नागरिक मतदाता के रूप में नामांकन करें और ऐसे नेताओं का चुनाव करें जो संवैधानिक मूल्यों और गरीबों की उन्नति के लिए प्रतिबद्ध हैं।
बिशपों ने अपनी दशकों पुरानी मांग दोहराई कि सरकार दलित ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों को अनुसूचित जाति का दर्जा दे। उन्होंने सरकार से ख्रीस्तीय आदिवासियों को उनकी अनुसूचित जनजाति के दर्जे से वंचित नहीं करने का भी आग्रह किया है।
उन्होंने सद्भाव रखनेवाले लोगों के साथ यात्रा करने, एक-दूसरे के सुख-दुख को साझा करने के अपने फैसले की भी पुष्टि की है।
इसके लिए, उन्होंने अपने लोगों को अंतर-धार्मिक संवाद और पड़ोसी समुदायों के माध्यम से अन्य धर्मों के लोगों के साथ सेतु निर्माण हेतु शिक्षित करने का निर्णय लिया है।