विकास मानव गरिमा के अनुरूप होना चाहिए, वाटिकन धर्माधिकारी

"विकास के लिए वित्तपोषण" विषय पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघीय सम्मेलन में प्रतिनिधि देशों के सदस्यों को सम्बोधित कर वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष गाब्रिएल काच्चिया ने कहा कि विकास को मानव गरिमा के अनुरूप होना चाहिये।
स्पेन के आन्दालूसिया प्रान्त स्थित सिविलिया नगर में "विकास के लिए वित्तपोषण" विषय पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघीय सम्मेलन में प्रतिनिधि देशों के सदस्यों को सम्बोधित कर वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष गाब्रिएल काच्चिया ने कहा कि विकास को मानव गरिमा के अनुरूप होना चाहिये।
विकास "लोगों" का प्रश्न
"एकजुटता और सामान्य भलाई की खोज पर आधारित समावेशी, मुख्यधारा और निष्पक्ष बहुपक्षवाद" के महत्व की पुष्टि करते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि विकास "लोगों" का प्रश्न है, न केवल "संकेतकों, उपकरणों या संस्थानों" का।
महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि विकास को सभी की गरिमा को प्रोत्साहन देना चाहिये, क्योंकि इसका लक्ष्य अर्थव्यवस्था की नहीं बल्कि सभी की भलाई होता है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि परमधर्मपीठ ऋण में कमी को मौलिक और "बड़े पैमाने पर तत्काल और सुसंगत कार्रवाई" के रूप में आवश्यक मानती है।
महाधर्माध्यक्ष काच्चिया ने कहा कि विकास के लिए वित्तपोषण "समग्र मानव विकास को प्राप्त करने” का सबसे प्रभावी तरीका इंगित करता है।
आम भलाई को ध्यान में रखें
वाटिकन धर्माधिकारी के अनुसार, परमधर्मपीठ का मानना है कि मौजूदा वित्तीय ढांचा विकास के इस समग्र दृष्टिकोण को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करता है, जो विशेष रूप से उन लोगों के लिए आवश्यक है जो सबसे अधिक कठिनाई में हैं। दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अक्सर ऐसे "निर्णयों और प्राथमिकताओं" को व्यक्त करता है, जो आम भलाई की सेवा करने के बजाय, सबसे कमज़ोर लोगों को कठिनाई में छोड़ देते हैं और "पेयजल, पर्याप्त भोजन, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच" जैसी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं करते हैं।
मानवीय गरिमा के सम्मान का मर्म समझाते हुए महाधर्माध्यक्ष काच्चिया ने कहा कि इसका अर्थ है व्यक्ति का “समग्र विकास, जिसमें हर व्यक्ति की आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रगति शामिल हो”।
कर्ज के कारण विकास अवरुद्ध
वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक ने देशों पर बने ऋण बोझ की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि ऋण की अस्थिरता "बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधाओं" में से एक है। विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका "ऋण की ज़िम्मेदार लेन-देन" द्वारा निभाई जाती है, जिसे स्थिरता और मानवीय गरिमा की सुरक्षा पर आधारित होनी चाहिए। तथापि, दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं है: वर्तमान "ऋण संरचना" और "परिणामी ऋण बोझ" "कई विकासशील देशों की विकास संभावनाओं" को दबाते हैं तथा "स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचे और जलवायु परिवर्तन" में निवेश को रोकते हैं, जो "लोगों के समग्र विकास और राज्यों के दीर्घकालिक विकास के लिए" महत्वपूर्ण हैं।
ऋण राहत का अनुरोध
उन्होंने कहा कि परमधर्मपीठ ने इसीलिये इस तथ्य की पुनः पुष्टि की है कि "ऋण राहत केवल एक वित्तीय मुद्दा ही नहीं बल्कि यह एक नैतिक अनिवार्यता है", काथलिक कलीसिया इस पवित्र वर्ष के दौरान ऋणदाताओं से अनुरोध करती है कि वे "विशेष परिस्थितियों वाले देशों के लिए, ऋण रद्द करने सहित, पूर्ण और समय पर ऋण राहत प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करें"।