वाटिकन का दीपावली संदेश: साझा मूल्यों के साथ, आइए हाथ मिलाएँ

परमधर्मपीठीय अंतरधार्मिक संवाद विभाग, हिंदू पर्व दीपावली मनाने वालों को शुभकामनाएँ भेजता है और ख्रीस्तियों तथा हिंदुओं को "अपने घरों, समुदायों और समाजों में शांति स्थापित करने के लिए छोटे और बड़े, दोनों तरीकों से हाथ मिलाने" का आह्वान करता है।

"अपनी-अपनी धार्मिक परंपराओं में आस्था रखने वाले और साझा मूल्यों व शांति के प्रति समान चिंता से एकजुट लोगों के रूप में, हम - हिंदू और ख्रीस्तीय, अन्य धर्मों के लोगों और सद्भावना रखने वाले सभी लोगों के साथ - अपने घरों, समुदायों और समाजों में शांति स्थापित करने के लिए छोटे-बड़े, दोनों तरीकों से हाथ मिलाएँ।"

यही वाटिकन के अंतरधार्मिक संवाद विभाग द्वारा हिंदू पर्व दीपावली (या दिवाली) मनाने वालों को दिए गए संदेश का मूल था, जो इस वर्ष सोमवार, 20 अक्टूबर को मनाया जा रहा है।

"हिंदू और ख्रीस्तीय: नोस्त्रा ऐताते की भावना में संवाद और सहयोग के माध्यम से विश्व शांति का निर्माण" विषय पर लिखे गए इस पत्र पर विभाग के प्रीफेक्ट कार्डिनल जॉर्ज जैकब कूवाकाड और सचिव मोन्सिन्योर इंदुनिल जनकरत्ने कोडिथुवाक्कु कंकनमलागे ने हस्ताक्षर किए थे।

दीपावली का त्यौहार, जिसका संस्कृत में अर्थ है "तेल के दीपों की पंक्ति" और यह सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहारों में से एक है, असत्य पर सत्य की, अंधकार पर प्रकाश की, और बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव है।

यह त्योहार आपके जीवन को रोशन करे
अपने पत्र में, वाटिकन के अधिकारियों ने अपनी कामना व्यक्त करते हुए शुरुआत की कि प्रकाश का यह त्योहार "आपके जीवन को रोशन करे और आपके परिवारों और समुदायों में खुशी, एकता और शांति लाए!"

उन्होंने याद दिलाया कि इस वर्ष दीपावली के बाद आठवें दिन नोस्त्रा ऐताते (28 अक्टूबर 1965) की साठवीं वर्षगांठ होगी। यह काथलिक कलीसिया का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ था जिसने दुनिया भर के काथलिकों को अन्य धार्मिक परंपराओं के लोगों के साथ संवाद और सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस हीरक जयंती पर, कार्डिनल कूवाकाड ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ‘नोस्त्रा ऐताते’ हमें शांति के मार्ग के रूप में अंतर्धार्मिक संवाद को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करने का आह्वान करता है।

उन्होंने कहा, "इस त्योहार के मौसम में, हम आपको इस बात पर चिंतन करने के लिए आमंत्रित करते हैं कि कैसे ख्रीस्तीय और हिंदू, सभी धर्मों और सद्भावना के लोगों के साथ मिलकर, नोस्त्रा ऐताते की भावना में संवाद और सहयोग के माध्यम से शांति के लिए हमारे साझा प्रयासों को मज़बूत कर सकते हैं।"

ऐसी भावना “लोगों के बीच, वास्तव में राष्ट्रों के बीच एकता और प्रेम को बढ़ावा देने” में निहित है और इस पर ध्यान केंद्रित करता है कि “लोगों में क्या समानता है और क्या उन्हें संगति की ओर आकर्षित करता है।”

अभी और प्रगति करनी है
हालांकि ‘नोस्त्रा ऐताते’ के बाद से काफी प्रगति हुई है, फिर भी अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

वाटिकन के अधिकारियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "आज की दुनिया में, जहाँ अविश्वास, ध्रुवीकरण, तनाव और विभाजन बढ़ रहे हैं, अंतरधार्मिक संवाद पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। इसे एकता और सद्भाव के बीज बोते रहना चाहिए और सभी के लिए आशा की किरण बनना चाहिए।"

पुल बनाने के संत पापा लियो 14वें के शब्दों को याद करते हुए, वाटिकन के अधिकारियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "अंतरधार्मिक समझ और सहयोग को हमारे दैनिक जीवन में जगह मिलनी चाहिए और साथ रहने का एक स्वाभाविक तरीका बनना चाहिए।"

सभी को सौंपा गया कार्य
उन्होंने दोहराया कि संत पापा हमें याद दिलाते हैं कि शांति के लिए संवाद और सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना "सभी को सौंपा गया कार्य है, चाहे वे आस्तिक हों या नास्तिक, जिन्हें इसे आत्मचिंतन और व्यक्तिगत गरिमा और सर्वहित से प्रेरित व्यवहार के माध्यम से आगे बढ़ाना चाहिए।"

उन्होंने कहा कि केवल एक साथ मिलकर काम करने से ही हम सत्य, न्याय, प्रेम और स्वतंत्रता पर आधारित शांति को सुरक्षित और कायम रख सकते हैं। (संत पापा जॉन पॉल द्वितीय, विश्व शांति दिवस संदेश, 1 जनवरी 2003)

परिवार और धार्मिक परंपराओं की भूमिका
पाठ में, विभाग के अधिकारियों ने जीवन और आस्था में शिक्षा के प्राथमिक स्थान के रूप में परिवार की भूमिका पर प्रकाश डाला है, और इन मूल्यों के पोषण में इसकी प्रमुख भूमिका है। धार्मिक परंपराओं की भी शांति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका है और धार्मिक नेताओं का यह नैतिक कर्तव्य है कि वे उदाहरण प्रस्तुत करते हुए नेतृत्व करें - अपने अनुयायियों को विविधता का सम्मान करने और मित्रता एवं भाईचारे के सेतु बनाने के लिए प्रोत्साहित करें।

उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों और मीडिया की भूमिका को भी याद किया, जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की दिशा में हृदय और मन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

अंत में, संदेश ख्रीस्तियों और हिंदुओं को "अपने घरों, समुदायों और समाजों में शांति का पोषण करने" के लिए छोटे और बड़े, दोनों तरीकों से एक साथ आने के लिए आमंत्रित करता है।