द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों की रक्षा में जान देनेवालों को पोलैंड का सम्मान

यहूदियों को बचानेवाले पोलिश लोगों की याद में राष्ट्रीय दिवस पर, पोप जॉन पॉल द्वितीय काथलिक विश्वविद्यालय ल्यूबलिन (केयूएल) ने एक स्मृति दिवस का आयोजन किया, जिसमें पवित्र मिस्सा और प्रेस ब्रीफिंग के साथ उन सभी लोगों की याद में एक स्मृति दिवस का आयोजन किया गया, जिन्होंने दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी।

4 मार्च एक महत्वपूर्ण दिन है। 1944 में इसी दिन जर्मन सैनिकों ने उल्मा परिवार को मौत के घाट उतार दिया था। जोज़ेफ उल्मा, उनकी गर्भवती पत्नी विक्टोरिया और उनके छह छोटे बच्चों की हत्या कर दी गई थी, साथ ही उन आठ यहूदियों की भी हत्या हो गई थी जिन्हें वे शरण दे रहे थे: गोल्डा ग्रुन्फ़ेल्ड, ली डिडनर और उनकी बेटी, साथ ही सॉल गोल्डमैन और उनके चार बेटे। 2018 से, पोलैंड ने 24 मार्च को जर्मन कब्जे के तहत यहूदियों को बचाने वाले पोलैंड के लोगों की याद में राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया है।

जॉन पॉल द्वितीय ल्यूबलिन विश्वविद्यालय (केयूएल) के रेक्टर फादर प्रो. मिरोस्लाव कलिनोवस्की ने कहा, 24 मार्च, 1941 को इतिहास में एक और काला अध्याय भी दर्ज हुआ - ल्यूबलिन यहूदी बस्ती की स्थापना, जो यहूदी विरोधी घृणा का एक स्पष्ट प्रतीक है। "एक ऐसा शहर जो कभी विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों को गले लगाता था, विभिन्न पृष्ठभूमि के नागरिकों को एकीकृत करता था, उसे तोड़ दिया गया। एक संस्कृति, एक धर्म को जबरन हटा दिया गया और एक बाड़ के पीछे बंद कर दिया गया।"

साहस और दृढ़ता का कार्य
सोमवार को इस दिन को मनाने के लिए एक प्रेस ब्रीफिंग की गई, जिसके बाद ल्यूबलिन में आधिकारिक स्मरणोत्सव आयोजित किया गया, जिसमें स्थानीय और क्षेत्रीय अधिकारियों के साथ-साथ इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल रिमेंबरेंस की ल्यूबलिन शाखा के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। दिन के कार्यक्रम ल्यूबलिन महागिरजाघर में पवित्र मिस्सा के साथ शुरू हुए, जिसके बाद उल्मा परिवार को समर्पित एक प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया। सिस्टर मार्ता वोलोव्स्का के घर पर भी फूल चढ़ाए गए, जिन्हें स्लोनिम के पास यहूदियों को शरण देने के लिए फांसी दी गई थी।

राष्ट्रीय स्मरण दिवस का उल्लेख करते हुए फादर प्रो. कलिनोवस्की ने जोर दिया: "यह दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह जीवन की पवित्रता के दिन से पहले आता है। हम उन लोगों का सम्मान करते हैं जिन्होंने सताए गए यहूदियों की मदद करने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। उन्होंने बहुत साहस और दृढ़ता का प्रदर्शन किया, पूरी तरह यह जानते हुए कि उन्हें और उनके प्रियजनों को मृत्युदंड का सामना करना पड़ सकता है। इन छिपित हिरो लोगों का आदर्श चमकता है और हमें प्रोत्साहित करता है कि जब दूसरे हमारी मदद मांगें तो हमें संकोच नहीं करना चाहिए।"

विदेश में कम जाना जाता है
पत्रकार ने कहा कि पोलैंड में व्यापक रूप से ज्ञात उल्मा परिवार की कहानी विदेशों में अब तक एक अज्ञात कहानी बनी रही, इस तथ्य को मानुएला टुली ने उजागर किया, जो काथलिक यूनिवर्सिटी ऑफ़ ल्यूबलिन के सहयोग से निर्मित पुस्तक उन्होंने बच्चों को भी मार डाला: उल्मा परिवार की कहानी, यहूदियों को बचाने वाले शहीद की सह-लेखिका हैं। "विदेश में यहूदियों को बचानेवाले पोल्स के बारे में बहुत कम कहा जाता है। फादर पावेल राइटेल-एंड्रियानिक के साथ मिलकर हमने उल्मा की कहानी इटली में पेश की। अब, यह अविश्वसनीय रूप से प्रसिद्ध है - हमने एक पूरे देश को हिला दिया है।"

धर्मसंघी परिधानों में वीर महिलाएँ
"धर्मबहनों की युद्धकालीन गतिविधियों और यहूदी बच्चों एवं परिवारों को उनकी सहायता पर कई अध्ययन प्रकाशित हुए हैं। फिर भी, सिस्टर मार्ता वोलोव्स्का जैसी हस्तियाँ काफी हद तक अज्ञात हैं। एक ऐतिहासिक आयोग के भीतर धर्मबहनों की एक टीम द्वारा किए गए शोध का उद्देश्य प्रत्येक बहन को नाम से पहचानना है। अब हम जानते हैं कि 2,345 बहनें यहूदियों की मदद करने में शामिल थीं। ल्यूबेल्स्की स्थित शोधकर्ता उनके जीवन और प्रयासों का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं," केयूएल में कलीसिया के ऐतिहासिक भूगोल केंद्र की सिस्टर डॉ. मोनिका कुपज़ेवस्का ने बताया, जो पोलैंड में महिला धर्मसंघियों की मेजर सुपीरियर्स के सम्मेलन के ऐतिहासिक आयोग की अध्यक्ष भी हैं।

उन्होंने आगे कहा कि ये बहादुर महिलाएँ पोलैंड के कई धर्मसंघों की हैं - मठवासी और प्रेरितिक धर्मसंघ दोनों से, धर्मसंघी परिधान (हैबिट) के साथ और बिना धर्मसंघी परिधान के। अन्य यूरोपीय देशों में यहूदियों को बचाना कहीं ज़्यादा आसान था, जबकि पोलैंड में, ऐसे कामों के लिए मौत की सजा दी जाती थी।

यहूदियों को बचानेवाले पुरोहितों की अनूठी गवाही
काथलिक-यहूदी संबंधों के लिए अब्राहम जे. हेशेल केंद्र के काम के जरिए, ल्यूबेल्स्की का काथलिक विश्वविद्यालय न केवल पोलैंड में बल्कि विश्व स्तर पर यहूदी विरासत की स्मृति को सुरक्षित करता है। ऐसा ही एक प्रयास उल्मा परिवार पर किताब है, साथ ही वकील और इतिहासकार रेज़ार्ड टिंडोर्फ द्वारा दो-खंडों वाला अंग्रेजी भाषा का मोनोग्राफ़, जिसका शीर्षक है "पोलिश काथलिक पुरोहित द्वारा यहूदियों का युद्धकालीन बचाव।" यह व्यापक, 1,200 पृष्टों की कहानी https://tiny.pl/s8xxn5vc पर मुफ़्त में ऑनलाइन उपलब्ध है। पुस्तक में मुख्य रूप से होलोकॉस्ट के दौरान पोलैंड में धर्मबहनों और पुरोहितों द्वारा बचाए गए यहूदियों की गवाही शामिल है।