कानूनी संस्थाओं में महिलाओं को सीटें देने का स्वागत

भारत के कलीसियाई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का स्वागत किया है जिसमें राज्य की बार परिषदों में महिलाओं के लिये 30 प्रतिशत साटें सुरक्षित रखने का आदेश दिया गया है।

भारत के कलीसियाई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का स्वागत किया है जिसमें राज्य की बार परिषदों में महिलाओं के लिये 30 प्रतिशत साटें सुरक्षित रखने का आदेश दिया गया है। कलीसियाई नेताओं का कहना है कि यह निर्देश कानूनी पेशे में लिंग समानता की दिशा में एक महान कदम है।

अदालती आदेश
8 दिसंबर को जारी एक फैसले में, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस कदम का लक्ष्य बार काउंसिल के शासी निकाय में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाना है, जहाँ वे नहीं के बराबर हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि जहां नियुक्त प्रतिनिधित्व 30 प्रतिशत की सीमा को पूरा नहीं कर पाता, वहां काउंसिल को 20 प्रतिशत कोटा चुनाव से और बाकी 10 प्रतिशत  योग्य उम्मीदवारों के विकल्प से भरना होगा।

काथलिक नेताओं का वकतव्य
काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के प्रवक्ता फादर रॉबिनसन रॉडरिग्ज़्स ने कहा, “यह एक शानदार आदेश है, जो हमारे समाज में हो रहे अच्छे बदलावों को दर्शाता है।”

उन्होंने कहा कि इस फैसले से वकीलों के शासी निकायों में लिंग असमानता को कम करने में मदद मिलेगी और बार काउंसिल्स को बनाने में महिलाओं की भूमिका मज़बूत होगी, जो कि समाज में सुधार के लिए ज़रूरी है।

तमिलनाडु में कानूनी वकील और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता येसु धर्मसमाजी फादर ए. संथानम ने इस फैसले को “ऐतिहासिक” निरूपित किया और कहा कि इससे कानूनी निकाय में “लिंग भेदभाव एवं और पितृसत्तात्मक” मानसिकता का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।

बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया
बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल कानूनी शिक्षा को नियमित करती हैं, व्यावसायिक और पेशेवर व्यवहार को लागू करती हैं, कानून सुधार में हिस्सा लेती हैं, और कानूनी पेशे की आज़ादी को सुरक्षित रखने के लिए काम करती हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला दो महिला वकीलों की अर्ज़ी के जवाब में आया, जिन्होंने कहा था कि राज्य की बार काउंसिल परिषदों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया था कि 18 बार काउंसिल में 441 नियुक्त सदस्यों में से सिर्फ़ 9 – लगभग 2 प्रतिशत – महिलाएँ थीं, और 11 स्टेट काउंसिल में कोई भी महिला सदस्य नहीं थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संरचना बराबरी की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करती है और कानूनी पेशे में आने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या को दिखाने में नाकाम रही है।