"आतिथ्य की मेज़" नामक संघ के सदस्यों को सम्बोधन

वाटिकन में शुक्रवार को बुजुर्ग लोगों, परिवारों और कठिनाई में फंसे बच्चों, आप्रवासियों और परित्यक्त लोगों का स्वागत करनेवाले "आतिथ्य की मेज़" नामक संघ के सदस्यों ने पोप फ्राँसिस का साक्षात्कार कर उनका आशीर्वाद ग्रहण किया।

वाटिकन में शुक्रवार को बुजुर्ग लोगों, परिवारों और कठिनाई में फंसे बच्चों, आप्रवासियों और परित्यक्त लोगों का स्वागत करनेवाले "आतिथ्य की मेज़" नामक संघ के सदस्यों ने सन्त पापा फ्राँसिस का साक्षात्कार कर उनका आशीर्वाद ग्रहण किया।

इन दिनों में रोम में आयोजित सम्मेलन के विषय रूप में "आतिथ्य की मेज़" नामक संघ ने दुर्बलता विषय पर विशेष ध्यान दिया। सन्त पापा ने कहा कि दुर्बलता या कमज़ोरी विषय को केंद्र में रखने का अर्थ है स्वीकृति और कमज़ोरी को "प्रतिक्रिया" बना देना, उस तथ्य को स्वीकार करना जिसे स्वीकार करना आसान नहीं है। उन्होंने कहा, "मैं इस विकल्प की सराहना करता हूं, और सुसमचार संबंधी चिन्तन तथा आपकी तीर्थयात्रा के लिये कुछ विचार छोड़ना चाहता हूं।"

पोप ने कहा, "सबसे पहले: कमज़ोर भाइयों और बहनों का स्वागत करने के लिए मुझे ख़ुद को असुरक्षित महसूस करना चाहिए और उसी तरह स्वागत करना चाहिये जैसे येसु मसीह ने किया है। वे हमेशा हमारे आगे रहे हैं: उन्होंने खुद को, दुखभोग और मरण तक कमज़ोर बना लिया; उन्होंने हमारी कमज़ोरियों का स्वागत किया ताकि हम भी एक दूसरे की कमज़ोरियों को समझ सकें। सन्त पौल लिखते हैं: "जिस प्रकार मसीह ने हमें ईश्वर की महिमा के लिये अपनाया, उसी प्रकार आप एक दूसरे को भ्रातृभाव से अपनायें।"

पोप ने कहा कि "यदि हम बेल की शाखाओं की तरह मसीह में बने रहे, तो हम आतिथ्य के इस विशाल क्षेत्र में भी अच्छे फल लाएंगे।"

पोप ने कहा एक दूसरा विचार जिसपर वे चिन्तन करना चाहते थे वह यह कि येसु मसीह ने अपनी सार्वजनिक प्रेरिताई काल का अधिकांश समय, विशेषकर गलीलिया में व्यतीत किया था, जहाँ सभी प्रकार के निर्धन एवं बीमार लोग उनके सम्पर्क में आये थे। उन्होंने कहा कि यह तथ्य दर्शाता है कि हमारे लिए भेद्यता या कमज़ोरी "राजनीतिक रूप से सही" एक विषय या केवल प्रथाओं का संगठन नहीं है।

उन्होंने कहा कि वे ऐसा इसलिये कह रहे थे क्योंकि दुर्भाग्य से इस बात का जोखिम मौजूद है, तमाम सद्भावनाओं के बावजूद यह हमेशा छिपा रहता है। विशेष रूप से बड़ी और अधिक संरचित वास्तविकताओं में, लेकिन छोटी वास्तविकताओं में भी, दुर्बलता एक श्रेणी बन सकती है, सेवा एक "प्रदर्शन" बन सकती है, लोग चेहराविहीन व्यक्ति बन सकते हैं। ऐसी स्थति में, सन्त पापा ने कहा, हमें सुसमाचार के प्रति, येसु मसीह के प्रति अच्छी तरह से जुड़े रहना चाहिए, जिन्होंने अपने शिष्यों को बीमारों और गरीबों की देखभाल की योजना बनाना नहीं सिखाया, अपितु उन्हें कमजोर लोगों के संपर्क में रहकर जीवन शैली का प्रशिक्षण दिया।