व्यावसायिक प्रशिक्षण, अद्यतनीकरण के राष्ट्रीय परिसंघ को सम्बोधन

वाटिकन में शुक्रवार को व्यावसायिक प्रशिक्षण और  अद्यतनीकरण के राष्ट्रीय परिसंघ "कॉनफाप" के प्राध्यापकों, युवाओं एवं परिसंघ में सक्रिय सदस्यों ने अपनी पचासवीं जयन्ती के उपलक्ष्य में पोप फ्राँसिस का साक्षात्कार कर उनका सन्देश सुना। इस अवसर पर सन्त पापा ने परिसंघ के समस्त सदस्यों के प्रति हार्दिक धन्यवाद दिया जो कलीसिया की सामाजिक धर्मशिक्षा के अनुकूल युवाओं के प्रशिक्षण में संलग्न हैं।

पोप ने कहा कि अपनी दैनिक प्रतिबद्धता के साथ, आप विभिन्न धार्मिक संस्थानों की समृद्ध और विविध आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति हैं, जो व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से युवाओं की करिश्माई सेवा में संलग्न हैं। ये अत्याधुनिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम हैं, जो उच्च गुणवत्ता वाली पद्धतियों, प्रयोगशाला अनुभवों और शिक्षण की संभावनाओं के साथ नौकरी प्रशिक्षण के परिदृश्य में प्रमुख रूप से महत्वपूर्ण हैं।

उन्होंने कहा कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आपका प्रशिक्षण प्रस्ताव अभिन्न है, क्योंकि उपकरण और शिक्षण की गुणवत्ता के अलावा, आप विशेष रूप से उन युवाओं का विशेष ध्यान रखते हैं जो खुद को सामाजिक और कलीसियाई जीवन के हाशिये पर पाते हैं। पोप ने उन प्रशिक्षकों के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया जो पूरे जुनून के साथ युवाओं के प्रशिक्षण के प्रति समर्पित हैं।

इसी सन्दर्भ में पोप ने कहा कि तीन शब्द अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं और वे हैं: युवा लोग, प्रशिक्षण और व्यवसाय।

पोप ने कहा कि सर्वप्रथम हम युवाओं पर विचार करें जो हमारे समय की सबसे नाजुक श्रेणियों में से एक हैं। यह नहीं भुलाया जाना चहिये कि युवा लोग, जो हमेशा प्रतिभाओं और संभावनाओं से भरे रहते हैं, कुछ मानवशास्त्रीय स्थितियों और जिस समय में हम रहते हैं, उसके विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं के कारण भी विशेष रूप से असुरक्षित हैं।

उन्होंने कहा कि वास्तव में, कई युवा लोग अपने मूल क्षेत्रों को छोड़कर कहीं और रोजगार की तलाश करते हैं, अक्सर उन्हें अपने सपनों से मेल खाने वाले अवसर नहीं मिल पाते हैं; फिर, कुछ लोग काम करने का इरादा रखते हैं लेकिन उन्हें अनिश्चित और कम भुगतान वाले अनुबंधों से समझौता करना पड़ता है; फिर बहुत से युवा  शोषण के कारण असंतोष की स्थिति में रहते हैं और अपनी नौकरियों से इस्तीफा दे देते हैं। अस्तु, हम सभी को एक बात से अवगत होना चाहिए कि शैक्षिक और प्रशिक्षण परित्याग एक त्रासदी है! इस सन्दर्भ में सन्त पापा ने कहा कि वे कॉनफाप परिसंघ के सदस्यों से आग्रह करते हैं कि वे युवाओं पर विशेष ध्यान केन्द्रित करें।  

पोप ने कहा कि दूसरा शब्द है प्रशिक्षण, जो भविष्य निर्माण के लिए एक अपरिहार्य प्रतिबद्धता को इंगित करता है। उन्होंने कहा कि नई प्रौद्योगिकियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास के कारण भी कार्य परिवर्तन तेजी से जटिल होते जा रहे हैं।

इस सन्दर्भ में पोप ने कहा कि हमें दो प्रलोभनों को अस्वीकार करना चाहिये,  एक ओर टेक्नोफोबिया, यानी प्रौद्योगिकी का डर जो इसे अस्वीकार करने की ओर ले जाता है; दूसरी ओर, टेक्नोक्रेसी, यानी यह भ्रम कि प्रौद्योगिकी सभी समस्याओं का समाधान कर सकती है। इसके बजाय, उन्होंने कहा कि हमें संसाधनों और ऊर्जा में  निवेश करना चाहिये, क्योंकि कार्य के परिवर्तन के लिए निरंतर, रचनात्मक और हमेशा अद्यतन प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है और साथ ही कुछ नौकरियों, विशेष रूप से मैनुअल नौकरियों की गरिमा बहाल करने के लिए भी प्रतिबद्ध होना चाहिए, जिन्हें आज सामाजिक रूप से बहुत कम मान्यता प्राप्त है।

पोप ने कहा कि तीसरा शब्द है, व्यवसाय या पेशा, जो यह परिभाषित करता है कि "आप आजीविका के लिए क्या करते हैं?" उन्होंने कहा कि हम दूसरों को उनके काम से जानते हैं। यही स्थिति येसु के मामले में भी थी, जिन्हें "बढ़ई के बेटे" या बस "बढ़ई" के रूप में पहचाना गया था।

पोप ने कहा कि कार्य हमारे जीवन और हमारे व्यवसाय का एक मूलभूत पहलू है। फिर भी, आज हम काम के अर्थ में गिरावट देख रहे हैं, जिसकी व्याख्या आम भलाई में किसी की गरिमा और योगदान की अभिव्यक्ति के बजाय कमाई के संबंध में की जा रही है, इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि प्रशिक्षण पाठ्यक्रम व्यक्ति के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और कामकाजी आयामों में उसके अखण्ड विकास की सेवा में हों।