येसु समाजी शिक्षकों से पोप : हमेशा व्यक्ति को केंद्र में रखें
पोप फ्राँसिस ने शिक्षण की प्रेरिताई हेतु गठित येसु समाजियों के अंतरराष्ट्रीय संघ के सदस्यों से मुलाकात की तथा उनसे भ्रातृत्वपूर्ण समाज के निर्माण के लिए येसु पर केंद्रित समग्र शिक्षा को प्राथमिकता देने का आग्रह किया।
पोप फ्राँसिस ने येसु संघ के अंतराराष्ट्रीय शिक्षण प्रेरिताई के प्रतिनिधियों को कलीसिया और अपनी ओर से कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि यह सच है कि संत इग्नासियुस और उनके प्रथम सहपाठियों ने धर्मसामज की स्थापना करते हुए स्कूली शिक्षा को महत्वपूर्ण नहीं समझा। लेकिन उन्होंने शीघ्र ही सुसमाचार के प्रचार हेतु शिक्षण के महत्व का अनुभव किया और उसके संबंध में उत्साह और निष्ठा में अपने को समर्पित किया।
उन्होंने कहा कि इसमें संदेह की कोई बात नहीं है कि येसु संघी विद्यालयों में सुसमाचार का प्रचार बौद्धिक विकास के साथ-साथ चलता है।
पोप ने कहा, “हमारी शिक्षा का केन्द्र-विन्दु निरंतर येसु हो।” और इसी कारण येसु सामाजी अपनी स्कूली पाठक्रमों और क्रिया-कलापों में सेवा और मानवीय भलाई के कार्यों को संलग्न करते हैं जो सुसमाचार से युवाओं को जोड़े रखता है। उन्होंने मरियम को इस संदर्भ का एक अद्वितीय उदाहरण कहा जो युवाओं को अपने कार्यों के मध्य गरीबों और दीन-दुःखियों में ईश्वर की उपस्थिति को देखने में मदद करती हैं। पोप ने कहा कि सच्ची शिक्षा युवाओं के संग चलना है जिससे वे दूसरों की भलाई करते हुए भातृत्वपूर्ण मानव समाज का निर्माण कर सकें।
पोप ने नई वैश्विक शिक्षण प्रणाली की ओर ध्यान आकृष्ट कराया जो शिक्षण की निष्ठा पर बल देती है, जो युवाओं की “मैं” मानसिकता में परिवर्तन लाती, जहाँ वे मेरी सफलता की भावना से परे जाते और “हम” की संस्कृति का आलिंगन करते हैं, जो उन्हें व्यक्तिगत उपहारों और योग्यताओं को एक मानवीय और भातृत्वमय विश्व के निर्माण में उपयोग करने में अग्रसर करता है। संत पापा ने कहा,“यह शिक्षण की गुणवत्ता को अर्थिक परिमाण के बदले मानवीय परिणाम के आधार पर देखता है जिसका अर्थ पूरी प्रक्रिया में व्यक्ति को केन्द्रीय स्थान देना है।” उन्होंने फादर अरूप्पे की बातों को उद्धृत करते कहा कि यह “व्यक्तियों को दूसरों के लिए तैयार करना है, जिसे हम येसु ख्रीस्त में पाते हैं।”
इस संदर्भ में पोप ने उदाहरण के माध्यम शिक्षण की बातों पर बल दिया जिसका उपयोग येसु ने अपने शिष्यों को शिक्षित करने हेतु किया। “आज के विद्लायों में ऐसे ही शिक्षा देने की आवश्यकता है।” व्यक्ति को केंन्द्र-विन्दु में रखने का अर्थ विद्यार्थियों को सभी चीजों के केन्द्र में रखना जो उन्हें अपनी योग्यताओं और गुणों को खोजने में मदद करता है, जिसके परिणाम स्वरुप वे दूसरों के साथ चलने के योग्य बनते हैं। व्यक्ति को केन्द्र में रखने का अर्थ गरीबों और हाशिए में रहनेवालों को ध्यान देना है, जिनके पास हमें देने को बहुत सारी चीजें हैं।
येसु सामाजियों के लिए अपनी प्रथम वैश्विक प्रेरिताई के विकल्प की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए पोप ने कहा कि यह शिक्षण को अपरिहार्य रुप में येसु के संग संयुक्त करता है क्योंकि येसु के संग सच्चे संबंध के बिना कुछ भी संभव नहीं है। “हमें इस बात पर जोर देने की आवश्यकता है।” उन्होंने शिक्षण कार्य के संबंध में धर्मसंघ द्वारा आयोजित अंतराष्ट्रीय संगोष्ठियों की प्रंशसा की जो युवाओं में, शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों द्वारा येसु की अनमोल निधियों को साझा करने में मदद करता है, जिसके फलस्वरुप विद्यार्थी ख्रीस्त में स्वतंत्र और मुक्ति पाये जाने का अनुभव करते हैं।
धर्मसंघ के कार्यों के प्रति प्रंशसा के भाव प्रकट करते हुए पोप फ्राँसिस ने कहा,“प्रशिक्षण बोने का एक कार्य है”, जैसे की हम इसे धर्मग्रंथ में पाते हैं, “बहुधा हम आंसू के साथ बोते, जिसे हम आनंद में बटोरते हैं” यह एक लम्बी अवधि कार्य है जिसमें धैर्य की जरुरत है, जिसके परिमाण कभी-कभी स्पष्ट नहीं होते, येसु को भी शुरू में शिष्यों से अच्छा फल नहीं मिला, लेकिन वे धैर्यवान बने रहे, और धैर्य रखकर निरंतर उन्हें शिक्षा दी। “प्रशिक्षण का अर्थ प्रतिक्षा करना, निरंतरता में बने रहना और प्रेमपूर्ण तरीके से जोर देना है।