ख्रीस्तयाग में पोप : प्रेम ही सुसमाचार का केंद्र है
पोप फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार को सिंगापुर के स्पोर्टस हब नैशनल स्टेडिम में विश्वासियों के साथ ख्रीस्तयाग अर्पित किया। सिंगापुर के नेशनल स्टेडियम में ख्रीस्तयाग के दौरान पोप फ्रांसिस ने विश्वासियों को याद दिलाया कि प्रेम ही, हम जो कुछ भी हैं और करते हैं, उसका आधार है।
पोप ने उपदेश में दिन के पाठ पर चिंतन करते हुए कहा, “ज्ञान घमंडी बनाता जबकि प्रेम निर्माण करता है।” (1 कोर. 8:1) संत पौलुस ने ये शब्द कुरिन्थ के ख्रीस्तीय समुदाय के भाइयों और बहनों को संबोधित करते हुए लिखे हैं, उस समुदाय को जो कई विशिष्ठताओं से समृद्ध था।(1 कोर. 1:4-5) प्रेरित अक्सर यह सलाह देते हैं कि दान में सहभागिता विकसित की जाए।
आइये, हम पौलुस के उन शब्दों को सुनें और साथ मिलकर सिंगापुर की कलीसिया के लिए प्रभु को धन्यवाद दें, जो वरदानों से समृद्ध है, एक ऐसी कलीसिया जो जीवंत है, बढ़ रही है और कई अन्य समुदायों और धर्मों के साथ रचनात्मक संवाद में संलग्न है जिनके साथ यह इस अद्भुत भूमि को साझा करती है।
प्रेम महान कार्यौं की नींव है
पोप ने कहा कि इस कारण से, मैं पौलुस के शब्दों पर विचार करना चाहूँगा, तथा इस शहर की सुन्दरता एवं इसकी महान एवं साहसिक वास्तुकला, विशेषकर, इस प्रभावशाली राष्ट्रीय स्टेडियम परिसर को प्रारंभिक बिन्दु के रूप में लेना चाहूँगा, जिसने सिंगापुर को इतना प्रसिद्ध और आकर्षक बनने में योगदान दिया है।
सबसे पहले, हमें यह याद रखना चाहिए कि, अंततः, इन भव्य इमारतों के मूल में, किसी अन्य उपक्रम की तरह, जो हमारी दुनिया पर सकारात्मक छाप छोड़ते हैं, वह प्रेम है, वही “प्रेम जो निर्माण करता है।”
कुछ लोग सोच सकते हैं कि यह एक अनुभवहीन कथन है, लेकिन इसपर विचार करने पर हम पा सकते हैं कि यह सच नहीं है। वास्तव में, अच्छे कामों के पीछे प्रतिभाशाली, मजबूत, अमीर और रचनात्मक लोगों के साथ साथ, हमेशा हमारे जैसे कमज़ोर महिलाएँ और पुरुष होते हैं, जिनके लिए प्यार के बिना कोई जीवन नहीं है, कोई प्रेरणा नहीं है, कोई कार्य करने का कारण नहीं है, कोई निर्माण करने की ताकत नहीं है।
पोप ने कहा, “प्यारे भाइयो और बहनो, अगर इस दुनिया में कोई अच्छी चीज, जीवित और टिकी रहती है, तो यह केवल इसलिए है क्योंकि, कई परिस्थितियों में, नफरत पर प्यार, उदासीनता पर एकजुटता, स्वार्थ पर उदारता की जीत हुई है। इसके बिना, यहाँ कोई भी इतने बड़े महानगर को जन्म नहीं दिया होता, वास्तुकारों ने इसे डिज़ाइन नहीं किया होता, श्रमिकों ने इस पर काम नहीं किया होता और कुछ भी हासिल नहीं हुआ होता।
ईश्वर हमारे प्रेम के मूल आधार
अतः जो हम देख रहे हैं वह एक संकेत है, और हमारे सामने मौजूद प्रत्येक कृति के पीछे प्रेम की अनेक कहानियाँ छिपी हैं: एक समुदाय में एक-दूसरे से जुड़े हुए स्त्री-पुरुष की, अपने देश के लिए समर्पित नागरिकों की, अपने परिवारों के लिए चिंतित माता-पिताओं की, विभिन्न भूमिकाओं और कार्यों में ईमानदारी से लगे हुए सभी प्रकार के पेशेवरों और श्रमिकों की। इसलिए हमारे लिए यह अच्छा है कि हम अपने घरों के सामने और सड़कों पर लिखी इन कहानियों को पढ़ना सीखें और उनकी स्मृति को आगे बढ़ाएँ, ताकि हमें याद रहे कि प्रेम के बिना कोई भी स्थायी चीज न तो जन्म लेती और न ही बढ़ती है।
कभी-कभी हमारी परियोजनाओं की महानता और भव्यता हमें भूलने और यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि हम अपने जीवन, अपनी संपत्ति, अपनी खुशहाली, अपनी खुशी के एकमात्र मालिक हैं। फिर भी, अंततः, जीवन हमें एक वास्तविकता पर वापस लाता है: प्रेम के बिना हम कुछ भी नहीं हैं।
विश्वास, इस धारणा के बारे में हमें और भी गहराई से पुष्ट और प्रबुद्ध करता है, क्योंकि यह हमें बताता है कि प्यार करने और प्यार पाने की हमारी क्षमता की जड़ में स्वयं ईश्वर हैं, जिन्होंने एक पिता के हृदय से हमें पूरी तरह से नि:शुल्क तरीके से अस्तित्व में लाने की इच्छा व्यक्त की है (1 कुरि 8:6) और जिन्होंने निःशुल्क तरीके से हमें छुड़ाया है और अपने इकलौते बेटे की मृत्यु और पुनरुत्थान के माध्यम से हमें पाप एवं मृत्यु से मुक्त किया है। ख्रीस्त हमारे हर निर्माण की उत्पत्ति और पूर्णता हैं।
इस प्रकार, हमारे प्रेम में हम ईश्वर के प्रेम का प्रतिबिंब देखते हैं, जैसा कि संत जॉन पॉल द्वितीय ने इस भूमि की अपनी यात्रा के दौरान कहा था। उन्होंने आगे यह महत्वपूर्ण बिंदु जोड़ा कि, "प्रेम की विशेषता सभी लोगों के प्रति गहरा सम्मान है, चाहे उनकी जाति, विश्वास या जो कुछ भी उन्हें हमसे अलग बनाता है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।"