मृतक विश्वासियों का पर्व
आज दो नवंबर को ईसाई समुदाय के सभी विश्वासियों के लिए एक विशेष दिन है।
आज के दिन हम सभी मृतक विश्वासियों के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं। उनके कब्रों को बड़ी भक्ति से मोमबत्तियों, अगरबत्तियों और फ़ूलों से सजाते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से प्रार्थना करते हैं l यह पर्व सिर्फ हमारे भारत में ही नहीं ब्लकि पूरे विश्व में मनाया जाता है।
हमारे समाज में एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण रीति है कि हम कभी भी जीवित लोगों को वह आदर, सम्मान नहीं देते जो उनके मरने के बाद उन्हें देते हैं उनके मरने के बाद ही हमें उनकी सारी अच्छाइयों का पता चलता है क्योंकि उनके जीवित रहने पर हम अक्सर उनसे तर्क-वितर्क और उनका अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
आज भी हमारे परिवार में, हमारे आसपास कई ऐसे बुजुर्ग, बीमार, सताए हुए लोग मिल जाएंगे क्या हम उनके जीते जी उन्हें वह प्यार, सम्मान और आदर नहीं दे सकते जिनके वे सही में हकदार हैं ? क्या हम उनके मरने का इंतजार कर रहे हैं (यह सुनाने या पढ़ने में दुःख जरूर देता है लेकिन यह एक कटु सत्य भी है जिसे हम इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर सकते।)
क्या यह उचित नहीं है कि हम अपने घरों में, अपने परिवार में, अपने आसपास में मौजूद जीवित लोगों का आदर करें, थोड़ा समय निकालकर उनसे साथ बैठें, उनके दुःख-दर्द को समझाने उसे दूर करने की थोड़ी कोशिश करें?
यह सत्य है कि बुजुर्ग लोगों, बीमार लोगों को संभालना थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन यह भी सत्य है कि जब भी हम ऐसे लोगों के साथ बैठकर उनके साथ बातचीत करते हैं, उन्हें उचित सम्मान देते हैं तो उनकी दुआएं हमेशा हमारे साथ, हमारे परिवार वालों के साथ रहती है क्योंकि उस समय वे अपने आपको बहुत ही असुरक्षित और असहाय महसूस करते हैं l हम व्यक्तिगत रूप से अक़्सर भूल जाते हैं कि एक दिन हम भी ऐसी परिस्थिति पहुँचेंगे और हम अपने बाल-बच्चों से ऐसी ही आशा रखेंगे कि हम हम उस परिस्थिति तक पहुँचे तो हमारे बच्चे हमारा आदर करें, वे हमें वही आदर और सम्मान दें जिसके हम हकदार हैं लेकिन अक्सर जो हम अपने बुजुर्गों के साथ जो व्यवहार करते हैं उसे हमारे बच्चे देखते हैं उसे महसूस करते हैं जो हमारे लिए एक अच्छे और स्वस्थ वातावरण का निर्माण नहीं करता।
आइए आज हम सभी अपने मृतक विश्वासियों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हुए जब अपने घर वापस लौटें तो अपने परिवार के बुजुर्ग लोगों के साथ बैठें, उनके साथ थोड़ा समय बिताएं, बीमार लोगों के लिए विशेष रूप से प्रार्थना करेंl मन को बहुत शान्ति मिलेगी l यदि हम आने वालो पीढी को अभी से सजग नहीं करेंगे तो आने वाले समय में स्थिति और भी भयावह हो सकती है यदि हम एक सुन्दर कलीसिया, एक स्वस्थ और शिक्षित समाज का सपना साकार करना चाहते हैं तो हमें व्यक्तिगत रूप से अभी से तैयारी करनी होगी।