पोप पियुस 12वें की शांति अपील यादगार

आज से ठीक 86 साल पूर्व, पोप पियुस 12वें ने द्वितीय विश्व युद्ध को दूर करने के प्रयास में शांति की अपील की थी। उनके शब्द आज भी ध्वनित होते हैं।
24 अगस्त सन् 1939, बुधवार के उस दिन, पोप पियुस 12वें ने रेडियो प्रसारण के माध्यम विश्व में शांति का आह्वान प्रसारित किया था। रोम समयानुसार शाम के 7 बजे, उन्होंने नेताओं से - और सुनने को तैयार हर व्यक्ति से - विश्व युद्ध को रोकने का आग्रह किया। उनकी यह अपील सोवियत संघ और नाज़ी जर्मनी द्वारा अपने प्रभाव क्षेत्रों को विभाजित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही दिनों बाद आई थी।
रोम के निकट कस्तेल गंदोल्फो से वाटिकन रोडियो के माध्यम उन्होंने पूरे विश्व से कहा कि मानव परिवार एक गंभीर स्थिति का सामना कर रही हैः “यह गहन विचार-विमर्श की एक घड़ी है जिसके प्रति हमारा हृदय उदासीन नहीं रह सकता है।" उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि "शांति से कुछ नहीं खोता। युद्ध से सब कुछ खो सकता है।”
पोप के गहन अपील के बावजूद, उनकी आवाज़ अनसुनी रह गई। 1 सितंबर, 1939 को जर्मन सैनिकों ने पोलैंड पर आक्रमण किया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया और छह साल तक वैश्विक संघर्ष चला रहा।
फिर भी उनके शब्द गूंजते रहे हैं। "शांति से कुछ भी नहीं खोता" उनके इस कथन को हाल ही में संत पापा लियो 14वें ने वर्तमान दुनिया के लिए प्रासंगिक बताया।
हम पुनः यूक्रेन में युद्ध की स्थिति को देखते हैं- जहाँ रूस ने रविवार को पूर्वी डोनेट्स्क क्षेत्र में दो गाँवों पर कब्ज़ा करने का दावा किया है– वैसे ही स्थिति हम गाजा, इथियोपिया, सूडान, हैती, म्यांमार और अन्य प्रमुख क्षेत्रों में भी पाते हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि इन सशस्त्र संघर्षों में कम से कम लाखों की संख्या में लोग मारे और घायल हुए हैं तो वहीं लाखों लोग विस्थापित होना पड़ा है।
86 साल पूर्व पोप पियुस ने विध्वंस के बारे में चेतावनी दी- “न्याय तर्क के बल से स्थापित होता है, न कि हथियारों के बल से। राष्ट्रों जिसकी नींव न्याय पर नहीं टिकी है, उन्हें ईश्वर का आशीर्वाद नहीं मिलता है। नैतिकता से विमुख राजनीति उन लोगों के साथ विश्वासघात करती है जो इसे बढ़ावा देते हैं।"
सन् 1939 की उनकी आवाज, आज की अशांत दुनिया के लिए यह अभी भी एक चेतावनी है।