बच्चों के श्रम अभिशाप पर पोप की धर्मशिक्षा

पोप फ्रांसिस ने अपने आमदर्शन समारोह में बच्चों पर श्रम अभिश्राप पर अपनी धर्मशिक्षा दी।

पोप फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह हेतु संत पापा पौल षष्ठम के सभागार में एकत्रित सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए कहा-प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

मैं इस धर्मशिक्षा को और आने वाले दिनों की धर्मशिक्षा माला को बच्चों के लिए समर्पित करना चाहता हूँ। उन्होंने कहा कि हम विशेष रूप से बाल श्रम के अभिश्राप पर चिंतन करेंगे। आज हम अपनी निगाहें आभासी दुनिया की ओर फेरना चाहते हैं लेकिन हम एक बच्चे की आंखों में आंखें डालकर देखने में कनिनाई का अनुभव करते हैं, जो हाशिये में पड़ा रहता तथा दुराचार या शोषण का शिकार होता है। यह सदी जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता उत्पन्न करती है और बहुग्रहीय अस्तित्व की योजना बनाती है, उसने अभी तक अपमानित, शोषित, प्राणघातक रूप से घायल बचपन के अभिशाप का सामना करने की गणना नहीं की है। हम इस पर विचार करें।

संतान ईश्वर के उपहार
पोप ने कहा कि सर्वप्रथम हम अपने में पूछें- “पवित्र धर्मग्रंथ हमारे लिए बच्चों के संबंध में क्या संदेश देता हैॽ” यह जानना दिलचस्प है कि पुराने विधान में याहवे के दिव्य नाम के बाद जो शब्द सबसे अधिक आता है, वह बेन शब्द है, अर्थ “बेटा”, यह लगभग पांच हजार बार आता है। “संतानें, प्रभु द्वारा दी हुई विरासत हैं; गर्भ का फल, एक उपहार” (स्तो. 127.3)। बच्चे ईश्वर के उपहार हैं, दुर्भाग्य से, इस उपहार को हमेशा सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। स्वयं धर्मग्रंथ बाईबल हमें इतिहास की उन गलियों में ले जाती है जहां खुशी के गीत तो गूंजते ही हैं, लेकिन हमें पीड़ितों की चीखें भी सुनाई देती हैं।

बच्चों की त्रासदी
पोप फ्रांसिस ने कहा कि हेरोद की हिंसा, बालक येसु के जन्म के ठीक बाद होता है जहाँ वह बेतलेहेम के नवजात शिशुओं को मौत के घात उतारवा देता है। एक निराशाजनक त्रासदी जो आज भी पूरे इतिहास में कई अन्य रूपों में दोहराई जाती है। और यहाँ, येसु और उसके माता-पिता के लिए, हम एक अति बुरे अनुभव को देखते हैं जिन्हें एक अपरिचित देश में शरणार्थी बनना पड़ता है जैसा कि आज भी कई लोगों, बहुत से बच्चों के साथ होता है।

येसु परांपरा से आगे
अपने जनसामान्य जीवन में येसु अपने शिष्यों के संग गाँव-गाँव जा कर सुसमाचार का प्रचार करते हैं। एक दिन कुछ माताएं उनके पास अपने बच्चों को लेकर आती हैं जिससे वे उन्हें आशीर्वाद दें, लेकिन शिष्यगण उन्हें गालियाँ देते हैं। इस पर येसु परांपरा को तोड़ते हुए जहाँ बच्चे केवल निष्क्रिय चीजों की तरह देखे जाते थे, अपने शिष्यों को बुलाते और उन्हें कहते हैं, “बच्चों को मेरे पास आने दो उन्हें मत रोको, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन जैसे बच्चों के लिए है।”

ऐसे ही एक अन्य पद में, येसु एक बच्चे को बुलाते, उसे शिष्यों के बीच में खड़ा करते और कहते हैं, “यदि तुम फिर छोटे बालकों जैसे नहीं बन जाओगे, तो स्वर्ग राज्य में प्रवेश नहीं करोगे”  (मत्ती.18.3)। हम आज छोटे बच्चों के बारे में विचार करें।

शोषण की अर्थव्यवस्था
आज भी, विशेष रुप से, संत पापा फ्रांसिस ने कहा, “बहुत से बच्चें है जिन्हें श्रम करने को बाध्या किया जाता है।” लेकिन एक बच्चा जो अपने में नहीं मुस्कुराता और सपना नहीं देखा सकता, तो वह अपने स्वाभाविक गुणों के बारे में नहीं जानता सकता है। दुनिया के हर हिस्से में ऐसे बच्चे हैं जिनका ऐसी अर्थव्यवस्था द्वारा शोषण किया जाता है जो जीवन का सम्मान नहीं करती; एक ऐसी अर्थव्यवस्था, जो ऐसा करते हुए, हमारी आशा और प्रेम के बहुत बड़े भंडार को ख़त्म कर देती है।