पोप : संकट, कदम उठाने व मानवता स्वीकार करने का आह्वान करता

अर्जेंटीना की समाचार एजेंसी तेलम को दिए एक साक्षात्कार में पोप फ्राँसिस ने चल रहे धर्माध्यक्षीय धर्मसभा, युद्ध और वैश्विक संकट, अर्जेंटीना एवं पापुआ न्यू गिनी की प्रेरितिक यात्रा की अपनी इच्छा पर चर्चा की।

"शोषण युद्ध की उत्पत्ति में से एक है। दूसरी उत्पत्ति क्षेत्रीय प्रभुत्व से संबंधित भू-राजनीतिक प्रकृति की है।"

पोप फ्राँसिस ने अर्जेंटीना तेलम समाचार एजेंसी के साथ एक साक्षात्कार में ये बात कही है, जिसमें उन्होंने झूठे मसीहा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, धर्मसभा और प्रेरितिक यात्रा जैसे अन्य विषयों पर भी चर्चा की।

उन्होंने सबसे पहले आज हमारी दुनिया के सामने मौजूद कई संकटों के बारे में बात की।

पोप ने कहा, "मुझे 'संकट' शब्द पसंद है क्योंकि इसमें आंतरिक गति है।" आप संकट से बाहर निकल सकते हैं लेकिन कुचक्र से नहीं, आप इससे ऊपर आ सकते हैं और आप इससे अकेले बाहर नहीं निकल सकते। जो लोग अकेले बाहर निकलना चाहते हैं वे उस रास्ते को एक उलझन में बदल देते हैं, जो हमेशा गोल चक्कर में घूमता रहता है।''

उन्होंने युवाओं को संकटों को हल करने के लिए सिखाने के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि यह "परिपक्वता लाता है" और हमें झूठे मसीहा को पहचानना सिखाता है।

साक्षात्कार आयोजित करनेवाली तेलम की पत्रकार बेर्नार्दा लोरेंते ने पोप से पूछा: "मानवता में किस चीज की कमी है, और किस चीज की अधिकता?"

पोप फ्राँसिस ने "सच्चे मूल्यों" को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए जवाब दिया। उन्होंने कहा, "हमारी दुनिया में मानवता के नायकों की कमी है जो अपनी मानवीय भूमिका प्रदर्शित करते।" कभी-कभी मैंने गौर किया है कि संकट का सामना करने एवं किसी की संस्कृति को सतह पर लाने की क्षमता का अभाव होता है। संकट उन आवाजों की तरह हैं जो बताती हैं कि हमें कहाँ काम करने की जरूरत है।"

श्रम के विषय पर, पोप फ्राँसिस ने काम की गरिमा और शोषण के गंभीर पाप पर जोर दिया।

उन्होंने कहा, "काम हमें गरिमा देता है। हालांकि, गरिमा के इस रास्ते पर सबसे बड़ा विश्वासघात शोषण है।" उन्होंने कहा, "व्यक्तिगत लाभ के लिए लोगों का शोषण करना सबसे गंभीर पापों में से एक है।" पोप ने कहा कि जब कुछ लोग उनके सामाजिक विश्वपत्र पर टिप्पणी करते हैं तो वे उन्हें तानाशाह कहते हैं।

"जो सच नहीं है। उन्होंने सुसमाचार को लेते हुए कहा, "पहले से ही पुराने नियम में, हिब्रू सहिंता में विधवाओं, अनाथों और पर्देशियों की देखभाल की आवश्यकता थी। यदि कोई समाज इन तीन चीजों को पूरा करता है, तो यह आश्चर्यजनक रूप से आगे बढ़ता है।"

पोप फ्राँसिस ने कहा, "और मैं स्पष्ट करता हूँ कि मैं कम्युनिस्ट नहीं हूँ, जैसा कि कुछ लोग कहते हैं। पोप सुसमाचार का पालन करते हैं।"

तकनीकी प्रगति और उनके निहितार्थों के बारे में पूछे जाने पर, पोप ने वैज्ञानिक प्रगति पर मानव व्यक्ति की प्रधानता पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा, "सांस्कृतिक प्रगति की कसौटी समेत कृत्रिम बुद्धिमता, पुरुषों और महिलाओं की इसे प्रबंध करने, आत्मसात करने और नियंत्रित करने की क्षमता है।" दूसरे शब्दों में, स्त्री और पुरूष सृष्टि के स्वामी हैं और हमें उसे नहीं छोड़ना चाहिए। हर चीज पर व्यक्तिगत स्वामित्व, गंभीर वैज्ञानिक परिवर्तन ही प्रगति है। हमें इसके लिए खुला रहना चाहिए।”

युद्ध के विषय पर लौटते हुए, उन्होंने राष्ट्रों से शांति की आशा में बातचीत को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, ''मेरा मानना है कि बातचीत केवल राष्ट्रवादी नहीं हो सकती।'' “यह सार्वभौमिक है, खासकर, आज सभी संचार सुविधाओं के साथ। इसीलिए मैं सार्वभौमिक संवाद, विश्वव्यापी सद्भाव और सार्वभौमिक मुलाकात की बात करता हूँ। बेशक, इसका दुश्मन युद्ध है।"

पोप फ्राँसिस ने कहा कि उनका मानना है कि "शोषण" और "क्षेत्रीय प्रभुत्व" "तानाशाही द्वारा पोषित" युद्धों की उत्पत्ति हैं।

शांति के निर्माण और आमहित के निर्माण के लिए, संत पापा ने राष्ट्रीय आत्म-जागरूकता का आह्वान किया। “अगर आपको इस बात की जानकारी नहीं है कि आप कहाँ खड़े हैं तो आप दूसरों से बातचीत नहीं कर सकते। जब दो जागरूक पहचानें मिलती हैं, तो वे बातचीत कर सकती हैं और एक समझौते, प्रगति और साथ चलने की दिशा में कदम उठा सकती हैं।"

कलीसिया सद्भाव में आगे बढ़ रहा है
धर्मसभा पर चल रही धर्मसभा के संबंध में पोप फ्राँसिस ने स्वीकार किया कि कलीसिया को हर युग के समय के अनुसार ढलने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, "द्वितीय वाटिकन महासभा की शुरुआत से, जॉन 23वें की बहुत स्पष्ट धारणा थी कि कलीसिया को बदलना होगा। पोप पॉल छठवें इससे सहमत हुए और इस कार्य को आगे बढ़ाया, जैसा कि उनके उत्तराधिकारी संत पापाओं ने भी किया।" उन्होंने कहा, "यह सिर्फ फैशन बदलना नहीं है, लेकिन एक ऐसे बदलाव के बारे में है जो व्यक्तियों की गरिमा को बढ़ावा देता है। और यहीं पर ईशशास्त्रीय प्रगति निहित है, नैतिक ईशशास्त्र में और सभी कलीसियाई विज्ञानों में, यहां तक कि धर्मग्रंथों की व्याख्या में भी, जो कलीसिया की भावनाओं के अनुसार हमेशा सद्भाव में आगे बढ़ी है।"

पोप फ्राँसिस ने ईश्वर के साथ अपने संबंधों के बारे में चर्चा के साथ साक्षात्कार का समापन किया।

उन्होंने कहा, "प्रभु एक अच्छे मित्र हैं।" "वे मेरे साथ अच्छा व्यवहार करते हैं।"

उन्होंने हंसने और आशा के गुण को अपनाने में सक्षम होने के महत्व पर भी जोर दिया।

उन्होंने कहा, "हम आशा के बिना नहीं रह सकते। अगर हम हर दिन की छोटी-छोटी उम्मीदें तोड़ देते हैं, तो हम अपनी पहचान खो देंगे।" हम महसूस नहीं कर सकेंगे कि हम आशा में जीते हैं, और ईशशास्त्रीय आशा बहुत विनम्र है लेकिन यही वह मसाला है जो हर दिन को स्वाद से भर देता है।