पोप लियो 14वें 1 सितम्बर को अगुस्तीनियन महासभा का उद्घाटन करेंगे

पोप लियो 14वें 1 सितंबर को रोम के कम्पो मारजो स्थित संत अगुस्टीन महागिरजाघर में संत अगुस्तीनियन धर्मसंघ की महासभा के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करेंगे।

1 सितंबर को अगुस्तिनियन धर्मसंघ के 188वें महासभा का आधिकारिक उद्घाटन होगा, और यह तिथि 1977 में पोप लियो के नवशिष्यालय में प्रवेश का वर्षगांठ भी है।

महासभा का उद्घाटन पोप लियो 14वें पवित्र ख्रीस्तयाग के साथ करेंगे, जो 18 सितंबर तक पोंटिफिकल पैट्रिस्टिक इंस्टीट्यूट अगुस्तिनियनुम में जारी रहेगा।

इस समारोह का सीधा प्रसारण वाटिकन न्यूज़ की वेबसाइट, के यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज पर किया जाएगा।  अंग्रेजी के साथ-साथ इतालवी, स्पेनिश, पुर्तगाली, जर्मन और पोलिश भाषाओं में भी इसकी व्याख्या दी जाएगी।

महासभा के आँकड़े
हर छह साल में आयोजित होनेवाले इस महासभा में लगभग 100 अगुस्तीनी सदस्य शामिल होंगे।

इनमें से 73 प्रतिनिधि, जो 46 देशों और धर्मसंघ के 41 अधिकार क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, मतदान के अधिकार के साथ भाग लेंगे।

परमधर्मपीठ की कलीसिया की सांख्यिकी के केंद्रीय कार्यालय के अनुसार, ये प्रतिनिधि मिलकर 2,341 अगुस्तीनी धर्मसंघियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो पाँच महाद्वीपों के 395 समुदायों में सेवा करते हैं।

प्रतिनिधियों को फादर एलेजांद्रो मोरल, जिन्होंने अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर लिया है, के 12 वर्षों के नेतृत्व के बाद, धर्मसंघ के 98वें प्रायर जनरल का चुनाव करने का कार्य सौंपा जाएगा।

इस कार्यक्रम में अगुस्टीनियन धर्मबहनों के संघों के अध्यक्षों और अगुस्टीनियन परिवार के लोकधर्मी सदस्यों के योगदान वाले सत्र भी शामिल हैं, हालाँकि उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होगा।

2013 में पोप फ्राँसिस द्वारा स्थापित मिसाल
बारह साल पहले, दिवंगत पोप फ्राँसिस ने इसी रोमन बेसिलिका में महासभा का उद्घाटन किया था, जो दो छह-वर्षीय कार्यकालों के बाद प्रायर जनरल के रूप में रॉबर्ट प्रीवोस्ट के कार्यकाल के समापन का प्रतीक था।

उस समय, फादर प्रीवोस्ट ने—जो अब संत पेत्रुस के 266वें उत्तराधिकारी हैं—अपनी समिति के साथ, तत्कालीन नव-निर्वाचित पोप को 28 अगस्त को महासभा के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया था।

उन्होंने वाटिकन न्यूज़ के साथ कार्डिनल के रूप में अपने अंतिम साक्षात्कार में याद किया था "सभी को बहुत आश्चर्य हुआ," पोप फ्राँसिस ने स्वीकार किया।

2013 में अपने ख्रीस्तयाग प्रवचन में, पोप फ्राँसिस ने इस बात पर जोर दिया कि "हृदय की बेचैनी ही हमें ईश्वर और प्रेम की ओर ले जाती है।"

उन्होंने जोर देकर कहा कि संत अगुस्टीन हमें "आध्यात्मिक खोज की बेचैनी, ईश्वर से साक्षात्कार की बेचैनी, प्रेम की बेचैनी" को जीवित रखने के लिए कहते हैं।

अर्जेंटीना के पोप ने संत अगुस्टीन की आध्यात्मिक विरासत को "सदैव ईश्वर की ओर और झुंड की ओर जाने" के दृष्टिकोण के रूप में वर्णित किया।

उन्होंने हिप्पो के धर्माध्यक्ष (संत अगुस्टीन के बारे) कहा "इन दो दिशाओं के बीच तनाव में फँसा हुआ एक व्यक्ति - हमेशा रास्ते पर, हमेशा बेचैन! और यही बेचैनी की शांति है।"

पोप फ्राँसिस ने "प्रेम के निजीकरण" के खिलाफ भी चेतावनी दी और यह समझाते हुए निष्कर्ष निकाला कि "बेचैनी भी प्रेम है - हमेशा, बिना रुके, दूसरे की भलाई की तलाश करना।"