पोप लियो : जब से शब्द देहधारी हुआ, मानवता बोलती है

पोप लियो 14वें ने क्रिसमस के दिन संत पेत्रुस, महागिरजाघर में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया और अपने प्रवचन में याद दिलाया कि ईश्वर के वचन में, जो शरीरधारी हुए, “अब मानवता बोल रही है, और ईश्वर की हमसे मिलने की अपनी इच्छा के साथ पुकार रही है।”

ख्रीस्त जयन्ती के महापर्व के अवसर  25 दिसम्बर को काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष पोप लियो 14वें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने अपने उपदेश में कहा, प्यारे भाइयो एवं बहनो, “आनन्दविभोर हो कर जयकार करें!” (इसा.52.9)

शांति का दूत उन लोगों से कहता है जो एक ऐसे शहर के खंडहरों के बीच खड़े हैं जिसे फिर से बनाना बहुत जरूरी है। नबी लिखते हैं कि धूल भरे और घायल होने के बावजूद, उसके पैर सुंदर हैं। (इसा. 52:7)

क्योंकि, ऊबड़-खाबड़ और थके हुए रास्तों पर वे एक खुशी की घोषणा लेकर आए हैं जिसमें सब कुछ नया जन्म ले रहा है। एक नया दिन शुरू हो गया है!

पोप ने कहा, “हम भी इस नई शुरुआत के हिस्से हैं, भले ही अभी कुछ ही लोग इस पर विश्वास करते हों: शांति सच्ची है, और यह पहले से ही हमारे बीच है।”

“मैं तुम्हारे लिये शांति छोड़ जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ।” (यो. 14:27)। येसु ने अपने चेलों से कहा, जिनके पैर उन्होंने अभी-अभी धोए थे। उन्हें शांति का संदेशवाहक बनना था, जिन्हें दुनियाभर में बिना थके यात्रा करने के लिए भेजा जा रहा था ताकि सभी के लिए “ईश्वर की संतान बनने की शक्ति” प्रकट की जा सके (यो. 1:12)। इसलिए, आज हम न केवल यहाँ पहले से मौजूद शांति से विस्मित हैं, बल्कि हम इस बात की भी खुशी मना रहे हैं कि यह उपहार हमें कैसे दिया गया है। इस “कैसे” में, असल में, वह दिव्य अंतर झलकता है जो हमें खुशी के गीत गाने के लिए प्रेरित करता है। यही कारण है कि पूरी दुनिया में, क्रिसमस संगीत और गीतों का एक बेहतरीन त्योहार है।

चौथे सुसमाचार की प्रस्तावना अपने आप में एक भजन है, जिसमें ईश्वर का वचन प्रमुख है। "वचन" एक ऐसा शब्द है जो कार्य करता है। यह ईश्वर के वचन की पहचान है: यह कभी प्रभाव के बिना नहीं होता। वास्तव में, हमारे अपने शब्दों का भी प्रभाव होता है, कभी-कभी अनजाने में। जी हाँ, शब्द "कार्य करते हैं।" फिर भी यहाँ एक आश्चर्य की बात है जो क्रिसमस की धर्मविधि हमारे सामने प्रस्तुत करती है: ईश्वर का वचन प्रकट होता है लेकिन बोल नहीं सकता। वह हमारे पास एक नवजात शिशु के रूप में आता है जो केवल रो सकता है और किलकारियाँ मार सकता है। "वचन देहधारी बना" (यो.1:14)। यद्यपि वह बड़ा होगा और एक दिन अपने लोगों की भाषा सीखेगा, क्योंकि अभी वह केवल अपनी सरल, नाजुक उपस्थिति के माध्यम से बोल रहा है। "शरीर" वह मौलिक नग्नता है, जो बेथलेहम में भी, कलवारी की तरह, बिना शब्दों के रहती है - ठीक वैसे ही जैसे बहुत से भाई-बहन, अपनी गरिमा से वंचित होकर चुप हो गए हैं, उनके पास आज कोई शब्द नहीं है। मानव शरीर देखभाल मांगता है; यह स्वागत और पहचान की याचना करता है यह दयालुता के शब्दों के लिए तरसता है। यह कोमलता से भरे हाथों और सुनने को तैयार मन की तलाश करता है; यह करुणामय शब्दों की खोज करता है।

“वह अपने लोगों के पास आया, और उसके अपने लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया। लेकिन जितनों ने उसे अपनाया, उसके नाम पर विश्वास किया, उसने उन्हें ईश्वर की संतान होने का अधिकार दिया” (यो.1:11-12)। यह विरोधाभासी तरीका है जिससे शांति पहले से ही हमारे बीच है: ईश्वर का वरदान हमें अंदर बुलाता है; यह स्वागत किए जाने की कोशिश करता है और बदले में, हमें खुद को देने के लिए प्रेरित करता है। ईश्वर हमें आश्चर्य चकित करते हैं क्योंकि वे खुद को बहिष्कार के लिए खुला छोड़ देते हैं। वे हमें इसलिए भी आकर्षित करते हैं क्योंकि हमें उदासीनता से दूर खींचते हैं। ईश्वर की संतान बनना एक सच्ची शक्ति है – जो तब तक दबी रहती है जब तक हम बच्चों के रोने और बुज़ुर्गों की कमजोरी से, पीड़ितों की बेबसी भरी चुप्पी से और उन लोगों की उदासी से दूरी बनाए रखते हैं जो उस बुराई को करते जिसको वे नहीं चाहते।

हमें सुसमाचार की खुशी याद दिलाने के लिए, हमारे प्यारे पोप फ्राँसिस ने लिखा: “कभी-कभी हम उस तरह के ख्रीस्तीय बनने के लालच में पड़ जाते हैं जो प्रभु के घावों को दूर रखते हैं। फिर भी येसु चाहते हैं कि हम मानवीय दुःख को छुएं, दूसरों के दुखते शरीर का स्पर्श करें। उन्हें उम्मीद है कि हम उन व्यक्तिगत या सामुदायिक जगहों को ढूंढना बंद कर देंगे जो हमें इंसानी दुर्भाग्य के भंवर से बचाती हैं, और इसके बजाय दूसरे लोगों की जिदगी की सच्चाई में शामिल होंगे और कोमलता की ताकत को जानेंगे।” (एवंजेली गौदियुम, 270)