पोप : आदिवासी लोगों को अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने का अधिकार है

पोप फ्राँसिस ने आदिवासी लोगों पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक में प्रतिभागियों को एक संदेश भेजा और अपनी सांस्कृतिक पहचान और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के उनके अधिकार पर जोर दिया, जिनसे वे निकटता से जुड़े हुए हैं।
10 से 11 फरवरी तक "स्वदेशी लोगों का आत्मनिर्णय का अधिकार: खाद्य सुरक्षा और संप्रभुता की ओर एक मार्ग" विषय पर रोम में सोमवार को संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी) द्वारा आयोजित आदिवासी लोगों के मंच की सातवीं वैश्विक बैठक के आयोजकों और प्रतिभागियों को संत पापा फ्रांसिस ने संदेश भेजा। जिसे आज सुबह एफएओ, आईएफएडी और डब्ल्यूएफपी के लिए परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक, मोनसिन्योर फर्नांडो चिका अरेलानो द्वारा पढ़ा गया।
पोप ने संदेश में सभी प्रतिभागियों का अभिवादन करते हुए शुभकामनाएं दी और आशा व्यक्त किया कि यह बैठक आदिवासी समुदायों की प्राथमिकताओं, चिंताओं और न्यायसंगत आकांक्षाओं पर बहस, अध्ययन और चिंतन के लिए एक महत्वपूर्ण मंच होगा।
आदिवासी लोगों का आत्मनिर्णय का अधिकार
पोप ने कहा कि चुना गया विषय, आदिवासी लोगों का आत्मनिर्णय का अधिकार: खाद्य सुरक्षा और संप्रभुता का मार्ग, हमसे आदिवासी लोगों के मूल्य को पहचानने का आह्वान करता है, साथ ही ज्ञान और प्रथाओं की पैतृक विरासत को भी, जो महान मानव परिवार को सकारात्मक रूप से समृद्ध करती है, तथा उसे उनकी परंपराओं की विविध विशेषताओं से रंग देती है। यह सब वर्तमान समय में आशा की एक किरण को उजागर करता है, जो तीव्र और जटिल चुनौतियों के साथ-साथ कुछ तनावों से भी भरा हुआ है।
खाद्य सुरक्षा और संप्रभुता की ओर एक मार्ग
अपनी संस्कृति और पहचान को सुरक्षित रखने के अधिकार की रक्षा में अनिवार्य रूप से समाज में उनके योगदान के मूल्य को पहचानना तथा उनके अस्तित्व और जीवन के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करना शामिल है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बड़े निवेशकों और राज्यों द्वारा भूमि हड़पने की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण यह गंभीर रूप से खतरे में है। ये ऐसी प्रथाएं हैं जो नुकसान पहुंचाती हैं तथा समुदायों के सम्मानजनक जीवन के अधिकार को खतरे में डालती हैं।
मानव परिवार से जुड़ाव की भावना
पोप ने कहा कि भूमि, जल और भोजन मात्र वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि ये जीवन और प्रकृति के साथ इन लोगों के संबंध का आधार हैं। इसलिए इन अधिकारों की रक्षा करना न केवल न्याय का प्रश्न है, बल्कि सभी के लिए एक स्थायी भविष्य की गारंटी भी है। मानव परिवार से जुड़ाव की भावना से प्रेरित होकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भावी पीढ़ियाँ उस सुंदरता और अच्छाई के साथ सामंजस्य में एक ऐसे संसार का आनंद लें, जिसने इसे बनाने में परमेश्वर के हाथों का मार्गदर्शन किया।
अपने संदेश को समाप्त करते हुए संत पापा सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना की कि ये प्रयास फलीभूत हों और राष्ट्रों के प्रभारी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें, ताकि यह सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए जा सकें कि मानव परिवार सामान्य भलाई की खोज में एक साथ चल सके, ताकि कोई भी वंचित या पीछे न रह जाए।