अल्बर्टाईन धर्मबहनें यूक्रेन की सेवा में
अल्बर्टाईन धर्मबहनें यूक्रेनी शहर लविव में एक प्रतीक बन गई हैं, जहाँ भी गरीबी और परित्याग है, वे वहाँ दिखाई देती हैं। जब फरवरी 2022 में बड़े पैमाने पर युद्ध छिड़ गया, तो वे युद्ध से आतंकित और थके हुए लोगों को निकालने के लिए लविव सेंट्रल स्टेशन गईं, जो निकासी ट्रेनों से उतर गए थे। बहनें हाल ही में बनी अल्बर्टाईन शरण में स्थानांतरित हो गई हैं, जिसका वे प्रबंधन करती हैं, जहाँ वे युवा माताओं को दैनिक भोजन और आश्रय प्रदान करती हैं।
युद्ध की शुरुआत भयांकर थी। भावनात्मक तनाव बहुत ज़्यादा था। पश्चिमी सीमा की ओर भागते हुए लोगों की भीड़ लवीव से गुजरी। शरणार्थियों से भरी ट्रेनें लवीव स्टेशन पर पहुँचीं। थके हुए, गंदे और भ्रमित लोग ट्रेन की बोगियों से उतरकर स्टेशन के सामने चौक पर आ गए। वे आश्रय पाने की उम्मीद में शहर में इधर-उधर भटकते रहे।
युद्ध के तीसरे दिन वाटिकन न्यूज से बात करते हुए सिस्टर जेरोनिमा ने कहा, "हम लगातार सतर्क रहते हैं, खासकर, इस तनाव के समय में, और हम हर दिन सड़कों पर उन लोगों से मिलने जाते हैं जो इधर-उधर भटकते रहते हैं और नहीं जानते कि क्या करें।" "कल भी महागिरजाघर में, युवा लड़कियों का एक दल बहुत रो रहा था। वे ओडेसा से थीं और उन्हें नहीं पता था कि कहाँ शरण लेना है। लोगों में बहुत निराशा, डर, चिंता और अनिश्चितता है। हम उन्हें आध्यात्मिक रूप से सहारा देती हैं। कई लोग हमें प्रार्थना करने के लिए बुलाते हैं, क्योंकि उनका बेटा या पति युद्ध में चला गया है।"
हमें जल्द ही एहसास हो गया कि बाहरी मदद के बिना, पोलैंड की सीमा की ओर जानेवाले लोगों का पलायन मानवीय आपदा का खतरा बन रहा था। सीमा की ओर जानेवाली सड़क पर कारों की कतारें कई किलोमीटरों तक फैली हुई थीं। महिलाएँ, माताएँ, दादी, मौसी अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर भोजन की तलाश में थीं। वे खुद को गर्म रखने के लिए जगह और आराम एवं सांत्वना के शब्दों की तलाश कर रही थीं।
फरवरी 2022 में, उस समय, लविव के अल्बर्टाईन समुदाय में तीन धर्मबहनें थीं: सिस्टर जेरोनिमा, दोरोतेया और रदोस्लावा। युद्ध के छठे दिन, धर्मबहनें यूक्रेनी-पोलिश सीमा पर लोगों की मदद करने के लिए रावा रुस्का पहुंचीं। वे कारितास-स्पेस बिल्डिंग की दीवार के पास थीं, जो सीमा पार से कुछ ही मिनटों की दूरी पर पूर्व फ्रांसिस्कन मठ में है।
वास्तव में, 2022 में, फ्रायर्स माइनर का यह मठ सिर्फ खंडहर के रूप में था। शौचालयों के साथ स्वच्छता की सुविधाएँ जल्दी ही प्रदान की गईं, और गेट के सामने टेबल लगाई गईं। रोमन काथलिक कारितास-स्पेस की जैकेट पहनी हुईं, धर्मबहनों ने गर्म पेय और सैंडविच वितरित करना शुरू किया। यह बात ज़ापोरिज्जा की स्वेतलाना ने वाटिकन न्यूज़ के एक पत्रकार को बताया।
अपने पोते को गोद में लेते हुए उन्होंने कहा, “मैं अपना जीवन बचाना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि यह सब खत्म हो जाए क्योंकि यह हमारी भूमि है, मेरा देश है, मेरा शहर है, मेरी जगह है। मैं यहाँ वापस आना चाहती हूँ ताकि मेरे और मेरे बच्चों के लिए सब कुछ सही सलामत रहे। मैं चाहती हूँ कि मेरा पोता उस देश में रहे जहाँ उसका जन्म हुआ है। क्योंकि अपनी भूमि ही मातृभूमि है। यहाँ बहुत सारी अनिश्चितताएँ और आँसू हैं।”